Saturday, October 18

संपादकीय

भारत को फिर जगद्गुरू बनाना है
संपादकीय

भारत को फिर जगद्गुरू बनाना है

संस्कार हमारे जीवन के श्वास है उनके बगैर हम आदर्श जीवन की कल्पना नहीं कर सकते। उसी प्रकार नागरिकता के बिना आदर्श राष्ट्र का निर्माण संभव नहीं है। नागरिकता केवल एक शब्द नहीं बल्कि गुण है का रोपण करन ेकी प्रक्रिया है संस्कार। संस्कारवान आदर्श नागरिकों की बहुलता शक्त राष्ट्र का निर्माण करती है। हमारा संविधान उन गुणों से युक्त है, जिनसे एक आदर्श, बलशाली एवं प्रगतिशील राष्ट्र का निर्माण संभव है। आवश्यकता यह कि हम जनसंख्या को नागरिक में परिवर्तित करने के लिए क्या कर सकते हैं? आवश्यकता यह भी है कि संविधान के ज्ञान को आज की युवा पीढ़ी तक पहुंचाकर एक गुणात्मक प्रक्रिया प्रारंभ करें। हमें यह सोचना होगा कि वर्तमान में जहां हर मानव भयभीत हो संकीर्ण विचारधारा में भी जी रहा हो, तब सरकार व्यवस्था का रूप शांतिमय होना चाहिए, क्योंकि जब तक प्रजा भयमुक्त नहीं होगी, तब तक शांति स्थापित नहीं होगी जब तक शांति स...
हमें पुन: खोजना होगा गांधी को
संपादकीय

हमें पुन: खोजना होगा गांधी को

महात्मा गांधी अदï्भुत थे। अद्वितीय थे। विलक्षण थे। शायद यही वजह है है कि उनके एक प्रतिष्ठित समकालीन वैज्ञानिक को कहना पड़ा कि भावी पीढिय़ां मुश्किल से यकीन करेंगी कि हाड़-मांस का कोई ऐसा इंसान सचमुच इस धरती पर धूमता था। यद्यपि हमने उनसे अनुग्रहीत व सम्मोहित होकर उन्हें राष्ट्रपिता कहा, लेकिन आज हमारे बीच ऐसे लोग भी हैं, जो उन्हें प्रासंगिक नहीं मानते। मोटे तौर पर आज हमारे बीच दो तरह के लोग हैं। एक तो वे हैं, जो गांधीजी की मूर्तिपूजा करके दुकानदारी कर रहे हैं और दूसरे वे हैं, जो उनका मूर्तिभंजन भले ही न करते हों, लेकिन उन्हें अप्रासंगिक मानकर निरस्त जरूर कर देते हैं। कालजयी महात्मागांधी को लेकर इस दुविधापूर्ण वैचारिक संक्रांति के युग में हमारा ध्यान स्वभावत: देश के एक शीर्ष वैज्ञानिक डॉ. रघुनाथ मशेलकर की ओर जाता है, जिन्हें इसी गणतंत्र दिवस पर पद्म विभूषण सम्मान से अलंकृत किया गया है। एक वै...
आज चौथा स्तंभ बना मीडिया
संपादकीय

आज चौथा स्तंभ बना मीडिया

चौथे स्तंभ का मतलब क्या है? क्या इसका मतलब सरकार बनना नहीं है? जब संविधान ने लोकतंत्र के तीन ही स्तंभ बताए हैं तब मीडिया अपने आप कब और कैसे उसका चौथा पाया बन गया? और यदि वह चौथा पाया बन ही गया है तब फिर क्या वह देश की वर्तमान दुर्दशा के लिए अन्य तीन स्तंभों की तरह चार आने का दोषी नहीं है? सारा मीडिया ही नहीं लेकिन उसका वह हिस्सा जो जब से स्वंयभू चौथा खम्भा बना है, जनता से दूर हो गया, उसकी आवाज नहीं रहा। सरकार और जनता के बीच सेतु भी नहीं रहा। देश में लोकतंत्र के इतने प्रहरी हैं लेकिन किसी के यह बात समझ में क्यों नहीं आ रही। विधायिका का मीडिया के जरिए जनता से जो सम्पर्क था वो टूट गया यानी मतदान होते ही जनप्रतिनिधियों सहित मीडिया भी तीन पायों के साथ मिलकर सरकार चलाने लग गया। जनता कहीं दृष्टिगत नहीं होता। मीडिया के चौथा पाया बनते ही चारों पाए एक तरफ हो गए और जनता दूसरी तरफ अकेली रह गई। चारों प...
संपादकीय

मुस्लिमों का भयादोहन करते मुलायम

मुजफ्फरनगर के भीषण दंगे के बाद मुसलमानों को सरकारी मदद देने के मामले में सुप्रीम कोर्ट ने उत्तरप्रदेश की सरकार को जिस तरह से लताड़ा है, उससे साफ होता जा रहा है कि यूपी सरकार भले ही मुस्लिमों का मसीहा होने के बड़े-बड़े दावे करे, मगर हकीकत में यह महज दिखावा है। पीछे मुड़कर देखें, तो साफ हो जाता है कि पिछले साल रमजान के महीने में ग्रेटर नोएडा के गांव कादलपुर में एक निर्माणाधीन मस्जिद की दीवार की आड़ में एक महिला आईएएस अफसर की कुर्सी लुढ़काकर मुलायम सिंह यादव ने उत्तरप्रदेश में सांप्रदायिक आधार पर मत-विभाजन का जो दांव खेला था, वह एक लंबी साजिश ही थी। उसके बाद पश्चिमी उत्तरप्रदेश में कई दंगे हुए। दुर्गाशक्ति नागपाल वाले मामले में भले ही मुलायम ने यह संदेश दिया था कि एक मस्जिद के लिए वे एक वरिष्ठ अधिकारी की बलि भी चढ़ा सकते हैं, परयह बात अब छिपाए भी नहीं छिप रही है कि मुसलमानों के साथ दंगा पीडि़...
समाज के रोके रूकेंगे बलात्कार
संपादकीय

समाज के रोके रूकेंगे बलात्कार

मैट्रो एक्सप्रेस डेनमार्क के प्रमुख समाचार पत्रों में से एक है। पहले उसकी उन पंक्तियों पर गौर कीजिए जो कि उसने हमारे देश की राजधानी दिल्ली में डेनमार्क की महिला के साथ हुई सामूहिक दुष्कर्म की घटना के बाद लिखी हैं। पत्र लिखता है कि भारत में महिलाएं पूरी तरह से असुरक्षित हैं। उनके मान-सम्मान को बरकरार रखने की कोई गारंटी भारत सरकार नहीं देता है। दिसंबर 2012 में हुई बहुचर्चित सामूहिक बलात्कार की घटना के बाद भारत ने इस अपराध को रोकने के लिए कानूनों को कठोर किया था, लेकिन अब कोई पूछने वाला नहीं है कि कठोर कानून के बाद क्या हुआ? महिलाएं सुरक्षित क्यों नहीं हो पाई हैं? पत्र लिखता है कि डेनमार्क की महिला से बलात्कार होने के बाद पूरा डेनमार्क दुखी है, लेकिन हम केवल उन्हीं महिलाओं की सुरक्षा नहीं चाहते हैं, जो कि हमारे देश से भारत जाती हैं, बल्कि हम तो यह चाहते हैं कि भारत सरकार कुछ ऐसा करे, जिससे व...
संपादकीय

आखिर विकलांग भी समाज के अंग हैं

शारीरिक रूप से अक्षम अथवा विकलांगों के प्रति समाज व सरकार दोनों का दायित्व है कि उन्हें सामान्य जिंदगी जीने के लिए प्रेरित किया जाए, पर दोनों स्तर पर ही कोताही नजर आती है। उनके प्रति सामाजिक नजरिया तो तंग होता ही है, लेकिन जब कोई लाकतांत्रिक सरकार उनकी उपेक्षा करती है, तो इसे समावेशी विकास की जरूरत के विरूद्ध माना जाता है। यह उपेक्षा का ही नतीजा है कि विकलांगों के कल्याणार्थ अब तक एक अधिकार संपन्न कानून नहीं बन सका है। कुछ समय पहले सरकारी भवनों में विकलांगों की पहुंच के मुद्दे पर चर्चा हुई थी कि इन इमारतों की संरचना विकलांगों के लिए काफी असुविधाजनक है, पर कुछ ही दिनों के बाद यह मुद्दा कहीं गुम ही गया। समाज का महत्वपूर्ण अंक होने के बावजूद प्राय: वे इस उपेक्षापूर्ण रवैए के कारण ही अपनी क्षमताओं और उत्पादकता का लाभ समाज को नहीं दे पाते हैं, जबकि शारीरिक अक्षमता के बावजूद ऐसे लोग समाज को बहुत...
संपादकीय

सैफईवादी समाजवाद की सीमाएं

सत्ता और सिद्धांतों के बीच क्या सिर्फ छत्तीस का ही रिश्ता हो सकता है? क्या हाथों में सत्ता के आते ही मूल्यों का तिरोहित हो जाना नियति है? क्या सत्ता उन मूल्यों की स्वभाव से ही विरोधी है, जिनके बहाने राजनीति और समाज संघर्ष करता है? उत्तरप्रदेश के समाजवादी आंदोलन व उसके मौजूदा रहनुमाओं के कारनामों को देखकर ये सवाल कुछ ज्यादा ही गंभीर हो जाते हैं। हैबरमॉस ने जिस लोकवृत यानी पब्लिक स्फीयर की कल्पना की थी, उसी लोकवृत्त में इन मूल्यों को बढ़ावा मिलता रहा है। यह लोकवृत्त ही है, जो नए तरह की संघर्ममयी चेतना विकसित करता रहा है। उसी चेतना की संघर्षशील परिणति सत्ताएं होती हैं। इस लिहाज से सत्ताओं से यह उम्मीद करना बेमानी नहीं होती कि वे मूल्यों का पालन करें। समाजवाद चूंकि सबके विकास की अवधारणा पर आधारित है, लिहाजा उससे उम्मीद बाकी विचारधाराओं की तुलना में कुछ ज्यादा ही बढ़ जाती है, मगर सैफई महोत्सव क...
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कहीं नौकरशाही केजरीवाल को अपने सांचे में न ढाल ले

राजनीति के पारंपरिक तौर-तरीकों, तकाजो और मुहावरों से आम आदमी पार्टी का परहेज इस तरह खत्म होगा, शायद ही किसी ने सोचा हो। अरविंद केजरीवाल ने बाकायदा जनमत संग्रह कराकर दिल्ली में वीवीआईपी संस्कृति के खात्मे का दावा करने वाली ईमानदार सरकार बनाई, तो स्वाभाविक ही था कि नाना प्रकार की समस्याओं से पीडि़त आम लोग उन्हें तारनहार मान उनके कौशाम्बी स्थिति निवास का रूख करते, पर अरविंद उनकी अपेक्षाओं का बोझ एक दिन भी नहीं ढो पाए और यह टका-सा जवाब देने पर उतार आए कि उनके पास कोई जादू की छड़ी नहीं है, जिससे पलक झपकते सब ठीक कर दें। पता नहीं, ऐसा कहते हुए केजरीवाल को याद था या नहीं कि न सिर्फ दिल्ली, बल्कि पूरे देश की जनता इस आप्त-वाक्य को थोड़े हेर-फेर के साथ अभी थोड़े दिनों पहले प्रधानमंत्री डॉ. मनमोहन सिंह व वित्त मंत्री पी. चिदंबरम और इनसे बहुत पहले 1977 में बड़े ही अरमानों से गठित जनता पार्टी की सरकार...
इस अंदाज व आगाज के मुकाम
संपादकीय

इस अंदाज व आगाज के मुकाम

वर्ष 2014 का राजनीतिक आगाज जिस अंदाज में हुआ है, उसने पूरे देश में कौतूहल का केंद्र दिल्ली में सरकार बनाने वाली आम आदमी पार्टी की कार्यशैली है। उसके नेता जिस शैली में सरकारी फैसले कर रहे हैं, जिस तरह विधायक मंत्री पैदल, मैट्रो, बसों, टैंपो, रिक्शा से जनता के बीच या दफ्तर जा रहे हें, उन सबसे ऐसा परिदृश्य बन रहा है, मानो भारत की स्थापित राजनीतिक शैली को ध्वस्त कर ऐसी जनशैली हावल होने को आतुर है, जिसकी मजन प्रतीक्षा कर रहा था। दूसरे रूप में देश के बड़े वर्ग के अंदर कौतूहल नरेंद्र मोदी को लेकर इस वर्ष के पूर्व से ही पैदा हो गया था, जो लगातार सुदृढ़ होता दिख रहा है। मोदी स्थापित सत्ता के प्रतिनिधि होते हुए भी उसके खिलाफ हुंकार भरते देश भर में रैलियां कर रहे हैं और उनमें आती भीड़ ऐसा दृश्य पैदा कर रही है, जैसा इसके पहले हमने नहीं देखा। राजनीति में हमने पहली बार 2013 में ही ऐसा कौतूहल देखा, जो 20...
एमसीएमसी के दायित्वों से अवगत हुए मीडियाकर्मी
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एमसीएमसी के दायित्वों से अवगत हुए मीडियाकर्मी

विदिशा: विधानसभा निर्वाचन के दौरान पेड न्यूज के नियंत्रण एवं माॅनिटरिंग के लिए गठित मीडिया सर्टिफिकेशन एण्ड माॅनिटरिंग कमेटी ;डब्डब्द्ध की कार्यप्रणाली से शुक्रवार को मीडियाकर्मियों को अवगत कराया गया। कलेक्टर एवं जिला निर्वाचन अधिकारी श्री एम0बी0ओझा की अध्यक्षता में सम्पन्न हुई उक्त बैठक में प्रिन्ट एवं इलेक्ट्राॅनिक मीडियाकर्मियों के अलावा पुलिस अधीक्षक श्री धर्मेन्द्र चैधरी, अपर कलेक्टर श्री के0डी0त्रिपाठी, अतिरिक्त पुलिस अधीक्षक श्री राय सिंह नरवरिया, उप जिला निर्वाचन अधिकारी श्री जयप्रकाश शर्मा, व्यय प्रकोष्ठ के नोड्ल अधिकारी श्री राकेश सक्सेना मौजूद थे। कलेक्टेªट के सभाकक्ष में हुई इस बैठक में कलेक्टर श्री ओझा ने मीडियाकर्मियों को पेड न्यूज के लिए निर्वाचन आयोग द्वारा निर्धारित मापदण्डों से अवगत कराया। उन्होंने कहा कि मीडियाकर्मी पेड न्यूज के दुष्प्रभावों से स्वंय बचें और ऐसी ही प्रे...