संस्कार हमारे जीवन के श्वास है उनके बगैर हम आदर्श जीवन की कल्पना नहीं कर सकते। उसी प्रकार नागरिकता के बिना आदर्श राष्ट्र का निर्माण संभव नहीं है। नागरिकता केवल एक शब्द नहीं बल्कि गुण है का रोपण करन ेकी प्रक्रिया है संस्कार। संस्कारवान आदर्श नागरिकों की बहुलता शक्त राष्ट्र का निर्माण करती है। हमारा संविधान उन गुणों से युक्त है, जिनसे एक आदर्श, बलशाली एवं प्रगतिशील राष्ट्र का निर्माण संभव है। आवश्यकता यह कि हम जनसंख्या को नागरिक में परिवर्तित करने के लिए क्या कर सकते हैं? आवश्यकता यह भी है कि संविधान के ज्ञान को आज की युवा पीढ़ी तक पहुंचाकर एक गुणात्मक प्रक्रिया प्रारंभ करें। हमें यह सोचना होगा कि वर्तमान में जहां हर मानव भयभीत हो संकीर्ण विचारधारा में भी जी रहा हो, तब सरकार व्यवस्था का रूप शांतिमय होना चाहिए, क्योंकि जब तक प्रजा भयमुक्त नहीं होगी, तब तक शांति स्थापित नहीं होगी जब तक शांति स्थापित नहीं होगी तब तक सत्ता और प्रजा भयमुक्त नहीं होगी, जब तक राज्य सत्ता और प्रजा में आनंद नहीं होगा, तब राज्य सुरक्षित नहीं होगा। राज्य को सुरक्षित रखने के लिए सरकार व्यवस्था का प्रथम कर्तव्य है कि उसकी प्रजा भयमुक्त होकर जीवन जिए सरकार व्यवस्था का दूसरा कर्तव्य है कि शस्त्र एवं शास्त्र के समन्वय से अपनी प्रजा में सदाचरण की व्यवस्था लागू करे, जिससे प्रजा में शांति हो। सत्ता और प्रजा को भयमुक्त कर, शांति की स्थापना की जा सकती है इसके माध्यम से पृथ्वी आनंद राष्ट, आनंद, मातृत्व आनंद धर्म आनंद और गौ सेवा आनंद की प्रक्रिया लागू कर राज्य में परमानंदी व्यवस्था लागू की जा सकती है। सरकार व्यवस्था का कर्तव्य है कि अपनी प्रजा को सत्य, आनंद ज्ञान के माध्यम से साक्षर बनाने का प्रयत्न करे जिससे प्रजा के विचारों में सुदृढ़ता आकर उसके पुरूषार्थ को बल मिले, जिससे उसके कर्मों को दिशा मिले सरकार व्यवस्था का कर्तव्य है, प्रजा को अधिकार देने के साथ उसे राज्य के प्रति कर्तव्यनिष्ठ बनाए और कर्तव्रूनिष्ठ संविधान की रचना पर सृजात्मक अर्थव्यवस्था सुधारने वाली प्रक्रिया के लिए वर्तमान स्थिति को दृष्टिगत रखते हुए भविष्य के लिए स्पष्ट उत्थानात्मक कल्याणकारी नीति की तैयारी कर, उसका क्रियान्वयन करे।
सरकार व्यवस्था का यह कर्तव्य है कि वर्तमान नीतियों को स्पष्ट रखते हुए अगले पचास वर्ष के लिए नीति का निर्धारण करे। वर्तमान युग की व्यवस्थ व्यवस्तत को देखते हुए त्वरित निर्णय की क्षमता रखें बढ़ती प्रतिस्पर्धा को देखते हुए प्रजा के कार्यों को सुनियोजित विकेंद्रीकरण करें, देश के प्रत्येक नागरिक को अपने हृदय में राष्ट्र धर्म धारण करना होगा। इतिहास से सीखे और वर्तमान पर नजर रखे तो भारत एक बार फिर जगद्गुरू बन सकता है गणतंत्र दिवस पर हम भारत को जगद्गुरू बनाने का संकल्प लें। जिससे ही क्षेत्र में प्रतिस्पर्धा कम होकर गुणवत्ता कायम रहे सरकार व्यवस्था अपनी प्रजा को स्वास्थ्य कर धर्म शिक्षा और धर्म आचरण अर्थ सुलभ कराने में समर्थ होती है उसकी प्रजा संस्कारित होती है और राज्य की संस्कृति हजारों वर्ष जीवित रहती है और सभ्यता का निर्माण करती है शासक को हमेशा इसका ध्यान रखना चाहिए कि प्रजा की आवश्यकता क्या है इच्छा और विलासिता के साधन एवं अर्थव्यवस्था से धर्म सिद्धांतों को अलग कर मात्र मांग के अनुसार अर्थ का तालमेल बैठाने का प्रयत्न किया जाए तो इस स्वार्थशील अर्थव्यवस्था से मात्र व्यक्तियों को ही लाभ होता है राष्ट्र को नहीं जिसके कारण राष्ट्र की उन्नति का मार्ग अवरूद्ध होता है तो विधान प्रत्येक क्षेत्र के विकास के लिए निणार्यक होकर और सभी वर्गों को प्रवाह में लेकर समान न्याय व्यवस्था के माध्यम से प्रत्येक क्षेत्र के विकास के लिए निर्णायक होकर सभी वर्गो को प्रवाह में लेकर समान न्याय व्यवस्था के माध्यम से प्रत्येक व्यक्ति का विकास मंत्र देता है वही राष्ट्र का संविधान कहलाता है। इसके पूर्व हमें यह सोचना होगा कि जब धर्मवाद का भारतीय समाज पर प्रभाव था, तब परिस्थितियां कैसी थी? जब राजसत्ता का भारतीय समाज पर प्रभाव था तब जबकि सरकार व्यवस्था का भारतीय समाज पर प्रभाव है, परिस्थितियां कैसी भी अर्थात धर्मवाद से बाजारवाद तक के लम्बे अंतराल में हमने क्या खोया क्या पाया? क्या वास्तव में हमने राष्ट्र सर्वागीण विकास में संविधान के प्रति समर्पण में विकास के साथ जागृति लाने में अपने कर्तव्यों के पूर्णरूपेण पालन में क्या योगदान दिया? वर्तमान परिदृश्य की दुहाई देने वाले हम भारतीय ममता, करूणा प्रेम वात्सल्य सहिष्णुता विनम्रता को क्यों तिरस्कृत करते जा रहे हैं दरअसल हमें एक दिन पर्व मनाकर 365 दिन तक पर्वों के महत्व को भूलने की मानसिकता से उबरना होगा क्या हम इस सत्य को स्वीकार कर पाएंगे कि हम पर्वों को तात्कालिक रूप से मनाकर उनके महत्व को विस्मृत कर देते हैं। संभार दैनिक भास्कर