Tuesday, September 23

आज चौथा स्तंभ बना मीडिया

Midiay

चौथे स्तंभ का मतलब क्या है? क्या इसका मतलब सरकार बनना नहीं है? जब संविधान ने लोकतंत्र के तीन ही स्तंभ बताए हैं तब मीडिया अपने आप कब और कैसे उसका चौथा पाया बन गया? और यदि वह चौथा पाया बन ही गया है तब फिर क्या वह देश की वर्तमान दुर्दशा के लिए अन्य तीन स्तंभों की तरह चार आने का दोषी नहीं है? सारा मीडिया ही नहीं लेकिन उसका वह हिस्सा जो जब से स्वंयभू चौथा खम्भा बना है, जनता से दूर हो गया, उसकी आवाज नहीं रहा। सरकार और जनता के बीच सेतु भी नहीं रहा। देश में लोकतंत्र के इतने प्रहरी हैं लेकिन किसी के यह बात समझ में क्यों नहीं आ रही। विधायिका का मीडिया के जरिए जनता से जो सम्पर्क था वो टूट गया यानी मतदान होते ही जनप्रतिनिधियों सहित मीडिया भी तीन पायों के साथ मिलकर सरकार चलाने लग गया। जनता कहीं दृष्टिगत नहीं होता। मीडिया के चौथा पाया बनते ही चारों पाए एक तरफ हो गए और जनता दूसरी तरफ अकेली रह गई। चारों पायों का स्वरूप सामंती जैसा हो गया जिनसे छुटकारा पाने को हमने लोकतंत्र स्वीकार किया था। आज जनता से इकटïï्ठा किया धन इन चारों पायों के लिए ही कम पड़ जाता है। धिक्कार है ऐसे लोकतंत्र के प्रहरियों को जो जनता के लिए किए जाने वाले हर कार्य का सम्पादन उधार के धन से करते हैं और आने वाली पीढिय़ों के सर नया बोझ चढ़ाते जाते हैं। देश में बढ़ते भ्रष्टाचार का एक बड़ा कारण मीडिया का चौथा पाया बन जाना ही है। जनता जिस दिन इस चौथे पाए को उखाड़ फेंकेगी अथवा पुन: सेतु बनने को मजबूर कर देगी उसी दिन भ्रष्टाचार मुक्त लोकतंत्र का नाया सूर्योदय होगा। तब न पेड न्यूट रहेगी न वार्षिक पैकेज प्रभावी होंगे। आज मीडिया जिस तरह सरे बाजार अपनी इज्जत की बोली लगा रहा है वह भी लोकतंत्र का अपमान ही है। तथाकथित चौथा पाया सरकारों से ताकत की हिस्सेदारी करने लग गया। यदि कोई सरकार उसे ये सब मुहैया नहीं कराए तो वह उसे ब्लैकमेल करने से भी नहीं चूकता।
सरकारों के साथ निजी घरानों तक को। दूसरी तरफ जो अखबार संविधान के हिसाब से काम करने की कोशिश करें उसे सरकारें जिंदा देखना ही नहीं चाहतीं। कुचल देना चाहती हैं। वह सारा ढांचा जो संविधान ने तैयार किया था, आज ढह सा गया है। देश को यदि भ्रष्टाचार और विदेशियों के चंगुल से मुक्त कराना है, गरीबी के अभिशाप से स्वतंत्र कराना है तो उसका एक ही मार्ग है- सबको अपनी अपनी जगह प्रतिष्ठित किया जाए। और उसमें मीडिया चौथा पाया न रहकर स्वयं को लोकतंत्र का प्रहारी बन अपना पेट भर सो जाना ही उचित माने, तब क्या उसे बाहर निकाल देना उचित नहीं होगा? गणतंत्र दिवस के रूप में आज हमारे देश की स्वतंत्रा का बड़ा उत्सव है। इस आजादी को हमने गोरों से प्राप्त किया था किंतु हमसे एक भूल हुई। लोकतंत्र जनता का और जनता के लिए तो है लेकिन जनता के द्वारा भी है। यहां जनता एक दिन मतदान करके पांच साल के लिए सो जाती है। उसी के दुष्परिणाम आज देश भुगत रहा है। मेरे देश की नई पीढ़ी जागरूक है और उसके पास सूचना का अधिकार भी है। उसको यह संकल्प कर लेना चाहिए कि जिस तरह वह लोकतंत्र के तीनों पायों की स्वतंत्रा के लिए संघर्ष कर रही है, उसी तरह उसे मीडिया की गंदगी पर भी झाडू मार देना चाहिए। कोई भी बिकाऊ पत्र या चैनल बेडरूम तो क्या घर की चाहरदीवारी में भी प्रवेश नहीं कर पाए। आपके मन में तरंगित पवित्र संस्कारों से छेड़छाड़ न कर पाए। घटिया मनोरंजन के लालच में आपके वर्तमान को डस ना ले। बेशक मीडिया आज के नौजवान के जीवन का अभिन्न अंग है किंतु क्या कोई भी व्यक्ति रोज अपनी रोटी में पेस्टीसाईड मिलाकर खा सकता है? जिस तरह हमारा खाना शुद्ध होना चाहिए, वैसे ही घर तक पहुंचने वाला मीडिया भी शुद्ध होना चाहिए। यदि वह कमाना चाहता है तो खूब कमाए लेकिन मीडिया से अलग हो जाए। कम से कम स्वतंत्रता के अधिकार की मांग तो नहीं करे। ऐसे में हमें आंखें और कान खोलकर रखने हैं। हमें अपने आत्मविश्वास के सहारे ही देश की चोरों से आजादी दिलानी है। ताकि हमारा देश ना सिरे से फिर आत्मनिर्भर हो सके।
संभार पत्रिका