मुजफ्फरनगर के भीषण दंगे के बाद मुसलमानों को सरकारी मदद देने के मामले में सुप्रीम कोर्ट ने उत्तरप्रदेश की सरकार को जिस तरह से लताड़ा है, उससे साफ होता जा रहा है कि यूपी सरकार भले ही मुस्लिमों का मसीहा होने के बड़े-बड़े दावे करे, मगर हकीकत में यह महज दिखावा है। पीछे मुड़कर देखें, तो साफ हो जाता है कि पिछले साल रमजान के महीने में ग्रेटर नोएडा के गांव कादलपुर में एक निर्माणाधीन मस्जिद की दीवार की आड़ में एक महिला आईएएस अफसर की कुर्सी लुढ़काकर मुलायम सिंह यादव ने उत्तरप्रदेश में सांप्रदायिक आधार पर मत-विभाजन का जो दांव खेला था, वह एक लंबी साजिश ही थी। उसके बाद पश्चिमी उत्तरप्रदेश में कई दंगे हुए। दुर्गाशक्ति नागपाल वाले मामले में भले ही मुलायम ने यह संदेश दिया था कि एक मस्जिद के लिए वे एक वरिष्ठ अधिकारी की बलि भी चढ़ा सकते हैं, परयह बात अब छिपाए भी नहीं छिप रही है कि मुसलमानों के साथ दंगा पीडि़तों के राहत शिविर की बेहद खराब हालत, कड़कड़ाती ठंड में उनके शिविरों को बुलडोजर से उजाडऩा, उसी समय कई करोड़ खर्च करके सैफइ्र में फिल्मी सितारों के ठुमके लगवाना, दंगे के आरोपियों की जमानत और छोटे मोटे पत्थरबाजी के मुकदमों में जेल गए मुसलमानों की जमानत न होना, दंगे में भड़काऊ भाषण देने के आरोपी मुस्लिम नेताओं से मुकदमे हटाने की अफवाह फैला देना, ये अनगिनत घटनाएं बानगी हैं कि अब मुलायम सिंह का समाजवाद लाल टोपी की जगह भगवा की ओर झुक चुका है। मुलायम सिंह भले ही कोशिश कर रहे हों कि उनकी पार्टी के तौर पर पहचानी जाए, पर उनकी नीयत निमेश कमेटी की रपट पर उनके रूख से साफ हो जाती है, जो कि बेहद ठंडा ही है। यह रहे नवंबर 2007 में राज्य के कचहरी बम धमाकों के आरोप में गिरफ्तार तारिफ काजमी व खालिद मुजाहिद जिसकी तीन महीने पहले संदिग्ध हालत में पुलिस अभिरक्षा में मौत हो गई। के फर्जीवाड़े की जांच के लिए 2008 में तब की बसपा सरकार ने सेवानिवृत्त सत्र व जिला जज आरडी निमेश की अगुआई में आयोग बनाया था, जिसकी रपट में साफ इशारा है कि किस तरह निर्दोष मुसलमानों को एसटीएफ ने झूठे तरीके से फंसाया। यह रपट करीब डेढ़ साल पहले अखिलेश यादव को सौंपी गई, पर अभी तक सरकार ने उस पर कोई कार्रवाई नहीं की है। दो महीने पहले राज्य सरकार को सुप्रीम कोर्ट ने तब झटका दिया था, जब आतंकवाद के आरोप में जेल में बंद कुछ मुस्लिम युवकों पर से मुकदमे हटाने की घोषणा हुई थी। अखिलेश यादव और उनके सरकारी व सियासी सिपहसालार इतने मासूम भी नहीं थे कि उन्हें पता नहीं था कि आतंकवाद के आरोपों में विचाराधीन लोगों पर से मुकदमे वापस लेना वैधानिक तौर पर संभव नहीं होगा, मगर खुद को मुसलमानों का सबसे बड़ा हितैषी बताने के लिए यह पूरा ड्रामा रचा गया। यह वोटों के धु्रवीकरण की चाल थी। उत्तरप्रदेश, जो कि लोकसभा में सबसे ज्यादा सदस्य भेजता है, की राजनीति वोट के धार्मिक आधार पर धु्रवीकरण के लिए सब कुछ कर गुजरने के लिए बदनाम रही है। अब तो दो दलों की राजनीति का जमाना भी लद गया है व दो कथित राष्ट्रीय दल सूबे में तीसरे-चौथे स्थान के लिए दावेदारी करते हैं।