मैट्रो एक्सप्रेस डेनमार्क के प्रमुख समाचार पत्रों में से एक है। पहले उसकी उन पंक्तियों पर गौर कीजिए जो कि उसने हमारे देश की राजधानी दिल्ली में डेनमार्क की महिला के साथ हुई सामूहिक दुष्कर्म की घटना के बाद लिखी हैं। पत्र लिखता है कि भारत में महिलाएं पूरी तरह से असुरक्षित हैं। उनके मान-सम्मान को बरकरार रखने की कोई गारंटी भारत सरकार नहीं देता है। दिसंबर 2012 में हुई बहुचर्चित सामूहिक बलात्कार की घटना के बाद भारत ने इस अपराध को रोकने के लिए कानूनों को कठोर किया था, लेकिन अब कोई पूछने वाला नहीं है कि कठोर कानून के बाद क्या हुआ? महिलाएं सुरक्षित क्यों नहीं हो पाई हैं?
पत्र लिखता है कि डेनमार्क की महिला से बलात्कार होने के बाद पूरा डेनमार्क दुखी है, लेकिन हम केवल उन्हीं महिलाओं की सुरक्षा नहीं चाहते हैं, जो कि हमारे देश से भारत जाती हैं, बल्कि हम तो यह चाहते हैं कि भारत सरकार कुछ ऐसा करे, जिससे वहां सभी महिलाएं सुरक्षित रहें। पत्र ने डेनमार्क सरकार से अपील की है कि वह इस विषय में भारत सरकार से बात करे। हालांकि उसने यह भी लिखा है कि भारत सरकार को ऐसा नहीं लगना चाहिए कि डेनमार्क उसकी आंतरिक गतिविधियों में दखल दे रहा है। भारत की सबसे बड़ी खूबसूरती यह है कि वह लोकतंत्र है और डेनमार्क दुनिया के सभी लोकतांत्रिक देशों का सम्मान करता आया है। मैट्रो एक्सप्रेस की तरह ही डेनमार्क के कुछ अन्य अखबारों ने भी भारत को तमाम नसीहतें दी हैं, मगर सबसे ज्यादा तल्ख तेवर कोपेनहेगन पोस्ट के हैं, जो कि वहां का साप्ताहिक अखबार है। यह पत्र लिखता है कि डेनमार्क में तो बलात्कार को एक दुर्घटना मात्र माना जाता है। जैसे सड़क चलते कोई व्यक्ति किसी कार की चपेट में आ आए और अपने हाथ पांव तुड़ा बैठे। मगर भारत में तो इसे स्त्री अस्मिता से जोड़ा जाता है, तो फिर भारत सरकार स्त्रियों की अस्मिता की रक्षा के लिए कुछ करती क्यों नहीं? वह सोती क्यों रहती है?मेरे द्वारा इस स्तंभ में इन टिप्पणियों का उल्लेख करने का आशय यह नहीं है कि डेनमार्क के अखबार भारत को जो नसीहतें दे रहा हैं, उन्हें सही मान लिया जाए। हमारा आशय यह भी नहीं है कि उन नसीहतों को पूरी तरह से खारिज कर दिया जाए। आखिर, जिस देश की महिला के साथ न केवल लूटपात हुई हो, बल्कि उसके साथ सामूहिक बलात्कार भी हुआ हो, तो उस देश का मीडिया कुछ तो कहेगा। फिर महिला भी कौन? वह जो भारत का अपना दूसरा घर जैसा मानती रही है और यहां पिछले चार-पांच वर्षो से हर साल आती है, कभी मुंबई घूमने के मकसद से, कभी दिल्ली घूमने के मकसद से, तो कभी अध्यात्म की अपनी प्यास बुझाने के लिए हमारे देश के तीर्थस्थलों का वह भ्रमण करने आती है। फिर, महिला भी अधेड़ है। उसके साथ नई दिल्ली के कनाट प्लेस जैसे इलाके में बलात्कार हुआ है और आरोपी भी आठ नौ बताए जा रहे हैं, जिनकी उम्र भी ज्यादा नहीं बताई जा रही है। वे यह कोई 20 से 25 वर्ष उम्र के युवक हैं। यानी, इस घटना में वे पूरे तत्व मौजूद हैं, जिससे डेनमार्क के मीडिया को गुस्सा आए और इसे अस्वाभाविक भी नहीं कहा जा सकता। मगर फिर साफ कर दें कि हमारा आशय डेनमार्क के मीडिया के गुस्से को बताना नहीं है, बल्कि सिर्फ इतना है कि भारत में जब किसी विदेश महिला के साथ बलात्कार होता है तो हमारी छवि पूरी दुनिया में खराब होती है। वैसे, यह तो तब भी होता है, जब हमारी ही कोई महिला दरिंदगी का शिकार बन जाती है। याद कीजिए, दामिनी सामूहिक बलात्कार कांड की चर्चा पूरी दुनिया के साथ ही साथ संयुक्त राष्ट्रसंघ में तक हुई थी और तब माना यही गया था कि भारत महिलाओं के लिए पूरी तरह से असुरक्षित है और साफ है कि जब दुनिया ऐसे किसी निष्कर्ष पर पहुंचती है, तो यह भारत की छवि का खराब होना ही है, जिसे विदेशों में रहने वाले मुझे जैसे भारतीय बर्दाश्त नहीं कर पाते। इससे एक धक्का सा लगता है। लिहाजा, हम जैसों की चाहत यही है कि भारत को किसी भी कीमत पर बलात्कार जैसे अपराधों पर काबू पाना ही होगा। दरअसल, यह बहुत शर्म की बात होती है, जब भारत घूमने आई किसी विदेशी महिला के साथ दुष्कर्म होता है। हमारे यहां पिछले एक वर्ष में ऐसे चार-पांच हादसे हो चुके हैं।