शारीरिक रूप से अक्षम अथवा विकलांगों के प्रति समाज व सरकार दोनों का दायित्व है कि उन्हें सामान्य जिंदगी जीने के लिए प्रेरित किया जाए, पर दोनों स्तर पर ही कोताही नजर आती है। उनके प्रति सामाजिक नजरिया तो तंग होता ही है, लेकिन जब कोई लाकतांत्रिक सरकार उनकी उपेक्षा करती है, तो इसे समावेशी विकास की जरूरत के विरूद्ध माना जाता है। यह उपेक्षा का ही नतीजा है कि विकलांगों के कल्याणार्थ अब तक एक अधिकार संपन्न कानून नहीं बन सका है। कुछ समय पहले सरकारी भवनों में विकलांगों की पहुंच के मुद्दे पर चर्चा हुई थी कि इन इमारतों की संरचना विकलांगों के लिए काफी असुविधाजनक है, पर कुछ ही दिनों के बाद यह मुद्दा कहीं गुम ही गया। समाज का महत्वपूर्ण अंक होने के बावजूद प्राय: वे इस उपेक्षापूर्ण रवैए के कारण ही अपनी क्षमताओं और उत्पादकता का लाभ समाज को नहीं दे पाते हैं, जबकि शारीरिक अक्षमता के बावजूद ऐसे लोग समाज को बहुत कुछ दे सकते हैं। दुनिया के सबसे बड़े भौतिक विज्ञानी स्टीफन हॉकिंग शारीरिक रूप से अक्षम होने के बावजूद अपनी योग्यता का लोहा मनवा रहे हैं। इतिहास में और आज भी ऐसे प्रतिभावान विकलांगों की कमी नहीं है, जो प्रेरित करते है ंकि शारीरिक अक्षमता कोई बाधा नहीं। वर्ष 2011 की जनगणना के अनुसार देश में करीब 2.20 करोड़ विकलांग हैं। यानी, कुल आबादी के करीब 2.13 फीसदी। इनके विकास और सशक्तिकरण के लिए भारतीय संविधान ने राज्यों को जिम्मेदार बनाया है। उनकी पूर्ण भागीदारी एवं समानता पर एशिया-प्रशांत क्षेत्र संधि उद्घोषणा पर भारत ने हस्ताक्षर किए हैं। इसके साथ ही विकलांगों के अधिकारों की रक्षा और संवर्धन पर संयुक्त राष्ट्रसंघ संधि पर भी भारत ने अक्टूबर 2008 में हस्ताक्षर किए थे।
विकलांगों के कल्याणार्थ और रचनात्मकता को प्रोत्साहित करने के लिए 1995 में विकलांग कानून पारित हुआ। उन्हें आर्थिक रूप से सशक्त बनाने के लिए वर्ष 1977 के शासनादेश के तहत सरकारी नौकरियों में ग्रुप सी व डी पदों में तीन फीसदी आरक्षण दिया गया। 1986 में इसमें गु्रप ए व बी में भी शामिल कर लिए गए। समस्याओं के निवारण हेतु देश में विकलांगों के लिए पांच समन्वित केंद्र श्रीनगर, लखनऊ, भोपाल, सुंदर नगर और गुवाहटी में बने हैं। इनमें प्रशिक्षण कार्यक्रम चलाए जाते व विकलागों को पुनर्वास सेवा दी जाती है। विकलांगों को समान अवसर उनके अधिकारों की रक्षा और पूर्ण सहभागिता अधिनियम भी फरवरी-1976 से लागू हुआ। इसके तहत केंद्र व राज्य स्तर पर विकलांगों के पुनर्वास को बढ़ावा देने वाले कार्यक्रमों पर जोर दिया गया। इसकी धारा 57 के तहत एक संवैधानिक मुख्य आयुक्त का पद सृजित किया गया, जो कि विकलांगों हेतु राज्यों के आयुक्तों के साथ समन्वयन, केेंद्रीय सहायता की निगरानी और साथ ही विकलांगों की शिकायतों का निवारण करेंगे।
सरकार ने सामान्य रोजगार केंद्रों में विशेष प्रकोष्ठों के माध्यम से विकलांगों के रोजगार हेतु विशेष रोजगार केंद्रों का गठन भी किया है। जरूरतमंद विकलांगों के लिए टिकाऊ, अत्याधुनिक और वैज्ञानिक मानक उपकरण उपलब्ध कराने के लिए उद्देश्य से कृत्रिम अंग योजना भी संचालित है। संभार राजएक्सप्रेस