Saturday, October 18

संपादकीय

जंगे-आजादी का वह स्वर्णिम पृष्ठ
संपादकीय

जंगे-आजादी का वह स्वर्णिम पृष्ठ

भारत छोड़ो आंदोलन नौ अगस्त 1942 को प्रारंभ हुआ था, मगर यह एक ऐतिहासिक तथ्य है कि यह अचानक शुरू हो गया था। हुआ यह था कि आठ अगस्त को बंबई में अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटी का अधिवेशन था। इसमें भविष्य का कार्यक्रम तय होना था। इसके प्रस्ताव में जोरदार शब्दों में यह मांग की गई थी कि भारत को शीघ्र आजाद किया जाए। इससे अंग्रेज डर गए कि अब कोई बड़ा आंदोलन होने वाला है। इसे रोकने के लिए उन्होंने कांग्रेस के सभी प्रमुख नेताओं को गिरफ्तार करने का निर्णय लिया और यही गिरफ्तारियां भारत छोड़ो आंदोलन की वजह बनीं। कांग्रेस के कुछ नेताओं को आठ अगस्त की रात्रि को ही पता लग गया था कि शीघ्र ही उनकी गिरफ्तारी होने वाली है। मौलाना आजाद उस समय कांग्रेस के अध्यक्ष थे। वे बंबई में भूलाभाई देसाई के घर ठहरे हुए थे। पुलिस में भूलाभाई देसाई के एक परिचित थे। उन्होंने सूचित कर दिया कि सुबह मौलाना की गिरफ्तारी होगी मौलाना को...
संपादकीय

वस्त्रों की स्वतंत्रता पर उंगली न उठाइये

आज आये दिन महिलाओं के वस्त्रों को लेकर वबाल मचा हुआ है कोई कम वस्त्रों की वकालात करता है तो कोई आलोचना। कोई संस्कृति की दुहाई देता है तो कोई अपराधों के लिए कारण भी इसी को मान रहा है, पर अब इस बदलते समाज में सच बोलना भी एक परेशानी बन गया है। क्योंकि महिलाएं अपनी स्वतंत्रता की दुहाई देने लगी हैं। उनके तर्को के आगे पुरूष भी शर्मा जाते हैं पर सच को झुटलाया नहीं जा सकता। महिलाओं को जितनी स्वतंत्रता प्राप्त होती जा रही है। उतनी ही वह अपने आपको स्वतंत्रत करती जा रही हैं। कभी महिलाओं के आभूषणों के तौर पर माथे की बिंदी, हाथों के कंगन, गले में मंगलसूत्र, कमर में करधोनी, पैरों में पायलेें और बिछिया हुआ करती थीं। पर बदलते समय में ये सब अब पुराने समय व रूढी प्रथा की निशानी मानी जाने लगी। जबकि पुराने विचारों वालों का तर्क माने तो उनका कहना था कि औरत एक शक्ति है उसको मर्यादा में बांधने के लिए सिर से लेकर...
संपादकीय

दम चीन से लडऩे का भरते हैं, और आलू प्याज पर रोते हैं

प्रदीप अंकल देश में इन दिनों एक समाचार प्रमुखता से दिखाया जा रहा है चीन भारत की सीमा में घुस आया है, चीन की हिमाकत को देखों, चीन रेल लाईन बिछा रहा है, चीन ने स्टेम्प बीजा देना शुरू किया, चीन के हेलीकॉप्टर भारतीय सीमा में घुसे बगैरा-बगैरा। फिर दो चार लोग पकड़ कर उनसे इस बारे में प्रतिक्रिया ली जाती है वो इस तरह करते हैं मानो भारत अभी हाल ही जाए और चीन को सबक सिखा दे। कुछ तो बिचारे ऐसा करते हैं जैसे कोई साधारणस खेल हो चीन को सबक सिखाना। पर एक बड़ा प्रश्न यह उठ रहा है कि आखिर चीन ऐसा क्यों कर रहा है, यह सोचना होगा कि चीन भारत से ज्यादा संपन्न देश है। चीन ने आज विश्व बाजार में अपनी धाक जमा रखी है, चीन के हौंसले इतने बुलंद क्यों है इस पर ध्यान देने की आवश्यकता है और उससे सीखने की भी आवश्यकता है। आज हम चीन से मुकाबला करना चाहते हैं कोई बड़ी बात नहीं है हम कर सकते हैं पर सबसे बड़ी दिक्कत तो यह ...
रेल वृद्धि के मायने
संपादकीय

रेल वृद्धि के मायने

भोपाल। देश में सुविधा सबको चाहिए पर मुफ्त में, देश में विकास सब देखना चाहते हैं पर मुफ्त मे, ट्रेन में सफर का आनंद सब लेना चाहते हैं पर मुफ्त में, देश को विदेशों जैसा देखना चाहते हैं पर मुफ्त में। ये है देश के लोगों की मानसिकता क्योंकि आजादी के इन 60-65 वर्षों में देश के नागरिकों ने मुफ्त की सेवा लेकर ये इतने मुफ्तखोर हो गए हैं। कि जरासा भी देश में आर्थिक परिवर्तन होता है तो देश के चंद लोग चिल्लाना शुरू हो जाते हैं। देश में 60 सालों के विकास की तुलना एक महीने के शासन से करना शुरू कर देते हैं। दु:ख इस बात का है कि देश का जिम्मेदार मीडिया भी ऐसे लोगों की प्रतिक्रियाएं दिखाने लगता है जिसे मोहल्ले का ज्ञान भी नहीं होता। वह राष्ट्रीय व अंतराष्ट्रीय मुद्दों पर अपनी राय देना शुरू कर देते हैं और मीडिय़ा उसे पूरे दिन दिखा दिखा कर कान पका देता है। जब विकास की बात होती है तो विकास त्याग मांगता है पर...
संपादकीय

मुशर्रफ सजा से तो बच जाएंगे

एक देश के सेना प्रमुख और राष्ट्रपति रहे किसी व्यक्ति के लिए इससे बुरा और कोई दिन नहीं हो सकता है कि उसके खिलाफ देशद्रोह का मुकदमा चलाया जाए, मगर पाकिस्तान के पूर्व राष्ट्रपति और सेना प्रमुख रहे परवेज मुर्शरफ को फिलहाल ऐसे ही बुरे दिन देखने पड़ रहे हैं7 उनके ऊपर मुकदमे तो अनेक चल रहे हैं, मगर नवाज शरीफ का तख्ता पटल करने, संविधान को निलंबित करने मार्शल लॉ लगाने और लोकतंत्र की तौहीन करने के आरोप में उन पर देशद्रोह का मुकदमा चलना अब तो पक्का हो गया है, क्योंकि एक निचली अदालत ने उन पर इसके आरोप तय कर दिए हैं। इसके उपरांत यह सवाल उठ खड़ा हुआ है कि आगे मुशर्रफ का होगा क्या? दरअसल, उन पर देशद्रोह का मुकदमा चलना है और उनके खिलाफ परिस्थितिजन्य साक्ष्य इनते हैं कि कहा जा रहा है कि उन्हें फंासी के फंदे पर भी लटकाया जा सकता है। आखिरकार इसके लिए किसी साक्ष्य की क्या जरूरत है कि नवाज शरीफ का तख्ता पटल क...
संपादकीय

भारत का राष्ट्रीय आचरण नहीं है भ्रष्टाचार

हमारे देश में आजकर बेईमानी व भ्रष्टाचार की बड़ी चर्चा है। असलियत तो यह है कि 16वीं लोकसभा के चुनाव इसी मुद्दे पर लड़े जा रहे हैं। लगता है कि सारा भारत भ्रष्ट हो गया है। नेता भ्रष्ट हैं, नौकरशाह भ्रष्ट हो गया है, इस भारत में कौन भ्रष्ट नहीं है? मगर ऐसे भ्रष्टकाल में भी देश में करोड़ों लोग ऐसे हैं, जिन्हें भ्रष्टाचार अब भी छू तक नहीं पाया है। भ्रष्ट होना तो बहुत निकृष्ट काम है, वे लोग ईमानदार बने रहने के लिए अपनी कुर्बानियां करने के लिए भी तैयार रहते हैं। ऐसे ही एक ईमानदार स्वाभिमानी ऑटो रिक्शा चालक का किस्सा यहां मुंबई में मेरी जानकारी में आया। मैंने यह समझा कि मेरे असंख्य पाठकों को मैं यह बात बताऊं, ताकि उनके दिल से निराशा के बादल छंटे और उनके दिल में यह आशा जगे कि भारत में अब भी करोड़ों लोग ऐसे हैं, जिन्हें चाहे दो वक्त की रोटी भी ठीक से नसीब नहीं होती हो, मगर वे अपने ईमान को पैसे के लिए ...
चुनाव का नीतियों की जगह व्यक्ति केंद्रित होना गलत
संपादकीय

चुनाव का नीतियों की जगह व्यक्ति केंद्रित होना गलत

देश की राजनीति में शीर्ष तक को लपेट चुके भ्रष्टाचार के खिलाफ देशव्यापी आंदोलनों के बीच पिछले साल तक उम्मीद थी कि 2014 के चुनाव पिछले लोकसभा चुनावों के उलट वास्तविक सामाजिक व आर्थिक मुद्दों पर लड़े जाएंगे। नीतिगत बहस-मुहबिसे उनके केंद्र में होंगे और संकीर्णताओं सांप्रदायिकताओं की कोख से निकलने वाले दुर्भावना के उत्पादक मुद्दे हाशिए पर चले जाएंगे। कई प्रेक्षक आशावान थे कि इससे लोगों को सब्जबाग दिखाकर या उद्वेलित कर चुनाव जीतने की मंशा रखने रखने वाली पार्टियों और नेताओं पर बुरी बीतेगी, पर अब घड़ी की सुइयां उलटी दिशा में घूमती दिखने लगी हैं। क्या आश्चर्य कि इससे उन सारी पार्टियों का खोया हुआ चैन और करार वापस लौट आया है, जो कभी न कभी कहीं न कहीं, मतलब, केंद्र में नहीं, तो राज्य में ही सही, सत्ता का सुख लूटकर अपनी अनीतियों का जनविरोध बेपरदा कर चुकी हैं। इसीलिए वे अपनी पहचान को किन्हीं नीतियों स...
संपादकीय

तिब्बत पर चीन का कब्जा अवैध

अभी हाल ही में तिब्बत के धर्मगुरू दलाई लामा से अमेरिकी राष्ट्रपति बराक ओबामा ने मुलाकात क्या की, चीन बुरी तरह भन्नाया हुआ है। वैसे, यह कोई पहला मौका नहीं है, जब दलाई लामा किसी अमेरिकी राष्ट्रपति से मिले हों। सच तो यह है कि वे दुनिया के राष्ट्राध्यक्षों से हमेशा मिलते रहते हैं, पर चीन ऐसी मुलाकातों पर संतुलित प्रतिक्रिया ही देता आया है। ओबामा से भी 2011 में वे मिल ही चुके हैं, पर चीन ने तब भी कठोर प्रतिक्रिया व्यक्त नहीं की थी। लिहाजा, अब क्या हुआ, जो चीन भन्ना गया है? यह मामला कुल मिलाकर चोर की दाड़ी में तिनका जैसा ही है। चीन को पता है कि अमेरिका उसे नियंत्रित करने की कोशिश कर रहा है। जापान, आस्ट्रेलिया, दक्षिण कोरिया व वियतनाम को मिलाकर अमेरिका एक ऐसा गुट बना रहा है, जो चीन को नियंत्रित करेगा, उसे अपने घर तक सीमित रखेागा। दुनिय में उसका प्रभाव नहीं बढऩे देगा। यूं अमेरिका यह भी चाहता है कि...
संपादकीय

हिन्दी भारतीय भाषाओं के करीब आकर ही समृद्ध हो सकती है

एक परिवार में भाषा बोली के अंतर्संबंधों का यह एक उदाहरण है। उस परिवार में तीन भारतीय भाषा बोलियों का चलन रहा है। जो भी परिवार गतिशील होता है, उसमें यह स्थिति आमतौर पर देखने को मिल सकती है। उस परिवार में पिता मध्यप्रदेश में सागर के हैं, इसीजिए बुंदेली उनकी बोली है। इसके सिवाय शायद वे दूसरी कोई भी भाषा बोली नहीं जानते। मां राजस्थान की है और वह भी पिताजी की तरह मारवाड़ की बोली के अलावा दूसरी कोई भाषा बोली आज भी नहीं जानती, जबकि वह बिहार के भोजपुरी इलाके में पिछले 35 वर्ष से ज्यादा समय से रह रही है। तीसरी तरफ इन मां पिता के बेटे बेटी घर में केवल एक भाषा बोली भोजपुरी बोलते हैं। सबसे मजेदार बात यह देखने को मिली है कि एक दूसरे से सभी खुद को अपनी भाषा-बोली में व्यक्त करते हैं और एक दूसरे को समझने बूझने में कभी कोई दिक्कत नहीं हुई। मिश्रण केवल भाषा के स्तर पर ही नहीं हुआ, बल्कि कई स्तरों पर हुआ है।...
तेलंगाना, संसद और लोकतंत्र
संपादकीय

तेलंगाना, संसद और लोकतंत्र

पिछले वर्ष फरवरी माह में मैं जब पाकिस्तान में था, तब वहां की एक सुप्रसिद्ध शायरा ने अपनी एक कविता सुनाई थी, जिसमें वे कहती हैं कि हम पाकिस्तानियों को बहुत अफसोस है कि आप हिदुस्तानी हमारे जैसे होते जा रहे होँ पिछले कई दिनों से हमारी संसद में जो हो रहा है, उसे देखकर, सुनकर और पढ़कर न केवल पाकिस्तानी, बल्कि एशिया और अफ्रीका में रहने वाले करोड़ों लोगों को भी अफसोस हो रहा होगा कि हम इतने क्यों गिर गए हैं। द्वितीय महायुद्ध के बाद जितने देश साम्राज्यवादियों के चंगुल से मुक्त हुए, उनमें भारत ही एकमात्र ऐसा देश है, जहां लोकतंत्र और लोकतांत्रिक संस्थाएं मजबूत हुई हैं। कई नव स्वतंत्र देशों ने अपने यहां लोकतंत्र स्थापित किया था, पर उनमें से बहुसंख्यक देशों में यह व्यवस्था ज्यादा दिन तक नहीं टिक सकी। इस तरह के अनेक देशों में सता पर तानाशाहों ने कब्जा कर लिया, जिनमें पाकिस्तान, इंडोनेशिया, कांगो, म्यांम...