भोपाल। देश में सुविधा सबको चाहिए पर मुफ्त में, देश में विकास सब देखना चाहते हैं पर मुफ्त मे, ट्रेन में सफर का आनंद सब लेना चाहते हैं पर मुफ्त में, देश को विदेशों जैसा देखना चाहते हैं पर मुफ्त में। ये है देश के लोगों की मानसिकता क्योंकि आजादी के इन 60-65 वर्षों में देश के नागरिकों ने मुफ्त की सेवा लेकर ये इतने मुफ्तखोर हो गए हैं। कि जरासा भी देश में आर्थिक परिवर्तन होता है तो देश के चंद लोग चिल्लाना शुरू हो जाते हैं। देश में 60 सालों के विकास की तुलना एक महीने के शासन से करना शुरू कर देते हैं।
दु:ख इस बात का है कि देश का जिम्मेदार मीडिया भी ऐसे लोगों की प्रतिक्रियाएं दिखाने लगता है जिसे मोहल्ले का ज्ञान भी नहीं होता। वह राष्ट्रीय व अंतराष्ट्रीय मुद्दों पर अपनी राय देना शुरू कर देते हैं और मीडिय़ा उसे पूरे दिन दिखा दिखा कर कान पका देता है। जब विकास की बात होती है तो विकास त्याग मांगता है पर त्याग करने को कोई तैयार नही है। देश की संपन्नता, देश के वैभव, देश की सुरक्षा, देश की सुविधा सभी का भोग करना चाहते हैं, पर त्याग नहीं करना चाहते। रेल किराये को लेकर जहां मीडिया ने बबाल मचा रखा है यहां यह समझना भी जरूरी है कि देश में आज रेल्वे ने विगत 10 वर्षों से किराये में बृद्धि नहीं की इसके चलते आज भारतीय रेल घाटे का सौदा बनी हुई है। बावजूद इसके रेल आज हमारी आवश्यकताओं की पूर्ति करती है अभी तक के रेल मंत्रियों के निर्णयों के चलते रेल्वे की हालत खराब कर दी है। देश में न तो संतुष्टिपूर्ण रेल लाईनें बिछपाईं हैं और न ही सुरक्षा की व्यवस्था हो पाई है। आज रेल देश की धड़कन है और इस धड़कन को आधुनिक करने के लिए देशवासियों को त्याग तो करना ही पड़ेगा। तभी हम अन्य देशों की तुलना में खड़े हो सकगें।