आज आये दिन महिलाओं के वस्त्रों को लेकर वबाल मचा हुआ है कोई कम वस्त्रों की वकालात करता है तो कोई आलोचना। कोई संस्कृति की दुहाई देता है तो कोई अपराधों के लिए कारण भी इसी को मान रहा है, पर अब इस बदलते समाज में सच बोलना भी एक परेशानी बन गया है। क्योंकि महिलाएं अपनी स्वतंत्रता की दुहाई देने लगी हैं। उनके तर्को के आगे पुरूष भी शर्मा जाते हैं पर सच को झुटलाया नहीं जा सकता। महिलाओं को जितनी स्वतंत्रता प्राप्त होती जा रही है। उतनी ही वह अपने आपको स्वतंत्रत करती जा रही हैं। कभी महिलाओं के आभूषणों के तौर पर माथे की बिंदी, हाथों के कंगन, गले में मंगलसूत्र, कमर में करधोनी, पैरों में पायलेें और बिछिया हुआ करती थीं। पर बदलते समय में ये सब अब पुराने समय व रूढी प्रथा की निशानी मानी जाने लगी। जबकि पुराने विचारों वालों का तर्क माने तो उनका कहना था कि औरत एक शक्ति है उसको मर्यादा में बांधने के लिए सिर से लेकर पैर तक व्यवस्था के तौर पर उसके आभूषण थे। जो उसे मर्यादा की याद दिलाते रहते थे। पर जैसे-जैसे महिलाओं ने मांग का सिंदूर, माथे की बिंदी, गले का मंगलसूत्र, हाथों के कंगन कमर की करधोनी, पैरों की पायल और बिछिया को त्यागा वैसे-वैसे ही वह ज्यादा स्वतंत्रत होना शुरू हो गई। यहां तर्क यह भी दिया जाता है कि आखिर महिलाओं को ही पाबंदी क्यों पुरूषों को क्यों नहीं। इस पर पुराने तर्क रखने वाले लोग सिर्फ यही कहते हैं कि महिला आदिशक्ति के रूप में है इसलिए उसको मर्यादा के आभूषण से बांधा गया है।
हम आज के तारतम्य में बात करें तो आपको यह मानना होगा कि बदलते समय मेें लोगों में आधुनिक पेहनावे को अपनाया जा रहा है। पर यह देश योग वाला देश है भोगवाला देश नहीं। जिस देश में भोगता को ही प्रधानता है वहां यह संभव है कि कौन क्या पहने हुए है उससे उन्हें कोई फर्क नहीं पड़ता। किंतु उनकी मानसिकता भी महिलाओं के प्रति अच्छी नहीं है। यदि महिलाएं यह बात करती हैं तो कि हम कुछ भी पहने पुरूषों
को क्यों आपत्ती है पर उन माताओं बहनों को यह समझना होगा कि इस सृष्टि का निर्माण अकेले महिला या पुरूष ने नहीं किया है। यह दोनों के सहयोग से ही निर्माण हुआ है, महिला और पुरूष दोनों ही एक दूसरे के प्रति आकर्षण का भाव रखते हैं। ऐसे में कैसे संभव है कि यदि कोई महिला अर्धनग्र वस्त्र पहने हो और पुरूष का आकर्षण उसकी तरफ न हो या कोई पुरूष इस तरह के वस्त्र पहने हो जिसकी तरफ किसी महिला का आकर्षण न हो यह बात समझ से परे है। अब यदि कोई महिलाओं को उत्तेजित वस्त्र न पहने की सलाह देता है तो उसे यह कहकर मत नकारियें कि यह तो रूढीवादी लोग हैं। धर्म और संस्कृति की बात करते हैं, पर सच यही है कि धर्म मर्यादा का पाठ पाढ़ता है और संस्कृति उसको जीवित रखती है। जो लोग महिलाओं की स्वत्रंता की बात करते हैं वो लोग उसी तरह हैं जिस तरह टेनिस खेलने वाली खिलाड़ी का फोटो सामने से ना खिंच कर खेलने वाले खिलाड़ी का फोटो नीचे से खींचते हैं जिससे उसके अंग वस्त्र दिखाई दें। उस खेल में इतने छोटे वस्त्रों को रखा गया है इससे उनकी मानसिक्ता समझ सकते हैं।
दुर्भाग्य इस देश का है अब कुछ भी सलाह देने का मतलब है एक हजार आलोचक तैयार करना। क्योंकि चौबीस घंटों चलने वाले न्यूज चैनलों के पास कोई काम नहीं रहता और वह किसी भी बात पर चर्चा शुरू कर देते हैं। यदि समाज को अच्छी दिशा देने की कोई बात करता है तो न्यूज चैनल उसे नकारात्मक भाव से दिखा कर कहने वाले को ही कटघरे में खड़ा कर देते हैं।
