Friday, September 26

हिन्दी भारतीय भाषाओं के करीब आकर ही समृद्ध हो सकती है

एक परिवार में भाषा बोली के अंतर्संबंधों का यह एक उदाहरण है। उस परिवार में तीन भारतीय भाषा बोलियों का चलन रहा है। जो भी परिवार गतिशील होता है, उसमें यह स्थिति आमतौर पर देखने को मिल सकती है। उस परिवार में पिता मध्यप्रदेश में सागर के हैं, इसीजिए बुंदेली उनकी बोली है। इसके सिवाय शायद वे दूसरी कोई भी भाषा बोली नहीं जानते। मां राजस्थान की है और वह भी पिताजी की तरह मारवाड़ की बोली के अलावा दूसरी कोई भाषा बोली आज भी नहीं जानती, जबकि वह बिहार के भोजपुरी इलाके में पिछले 35 वर्ष से ज्यादा समय से रह रही है। तीसरी तरफ इन मां पिता के बेटे बेटी घर में केवल एक भाषा बोली भोजपुरी बोलते हैं। सबसे मजेदार बात यह देखने को मिली है कि एक दूसरे से सभी खुद को अपनी भाषा-बोली में व्यक्त करते हैं और एक दूसरे को समझने बूझने में कभी कोई दिक्कत नहीं हुई। मिश्रण केवल भाषा के स्तर पर ही नहीं हुआ, बल्कि कई स्तरों पर हुआ है। जैसे उस परिवार में भोजपुरी इलाके का मशहूर खाना लिट्टी-चोखा बनता है, परवह थोड़ा सा भिन्न होता है। उस लिट्टी चोखा के साथ दाल भी बनती है। राजस्थान का मशहूर लोक खाना दाल बाटी चूरमा है। वहां भोजपुरी व राजस्थानी खाने के हिस्से इस तरह से मिले रहते हैं, जैसे वे यदि एक साथ न हों तो भोज्य अधूरा लगता है। इस भाषाई विकास का एक पहलू और है, जो भारतीयता की दृष्टि से बहुत महत्पूर्ण है। जैसे-जब उस परिवार का एक सदस्य किसी सिख से मिलता है, तो उसके लिए उसकी भाषा समझ के दायरे में होती है, पंजाब के कई शब्द जैसे-माड़ा, उडीकना, मुटियार आदि वह अपने परिवार में भी इस्तेमाल करता है। भातर के बारे में कहा जाता है कि हर चार कोस पर यहां भाषा बोली बदल जाती है। यह परिवर्तन एकता को दर्शाता है। हर चार कोस के बाद भाषा बोली बदलने का मतलब हर बोली भाषा एक दूसरे से जुड़ी हुई है। के भाव के अंश समाहित हैं।
मगर इन भारतीय भाषा-बोलियों में एक दूसरे के शब्दों का चलन नहीं बढ़ा है, बल्कि इनमे जितनी ज्यादा दूरी बढ़ी है, उनमें अंग्रेजी के शब्दों की पैठ उतनी ही ज्यादा हुई है। कोई भी भारतीय भाषा ऐसी नहीं होगी, जिसे इस्तेमाल करने वाला मध्यम वर्ग अंग्रेजी के बिना कोई वाक्य पूरा करता हो। मध्यम वर्ग का एक हिस्स ापहले जान बूझकर अंग्रेजी के शब्दों का इस्तेमाल भले करता रहा हो, पर अब तो उसकी यही भाषा हो गई है। कई ऐसे शब्द हैं, जिसे अंग्रेजी में जानने के अलावा भारतीय मध्यम वर्ग अपनी भाषा बोली के पर्याय शब्दों को जानता तक नहीं है।
भारतीय समाज में अंग्रेजी का इस्तेमाल आमतौर पर खुद को बड़ा दिखाने और आपसी संवाद से तीसरे आम भारतीय को काटकर रखने के लिए होता रहा है, जबकि यह नहीं कहा जा सकता है कि एक दूसरे की भाषाओं बोलियों के सीखने सिखाने जानने समझने में कोई बुनियादी समस्या है। पंजाब से बेंगलुरू पढऩे गया लाली फर्राटेदार कन्नड बोलने लगा है, पर उसके पास सिर्फ कन्नड नहीं आई है, अभी की कन्नड़ अपने साथ अंग्रेजी के शब्दों को भी लाई है। वह बांग्ला भी बोलता है उसके साथ रहने वाला लडग़ा बंगाल से आया है, जबकि पहले वह पंजाबी के अलावा दूसरी भाषा बोली जानता नहीं था। यह उसके साल डेढ़ साल की उपलब्धि है, जबकि इंजीनियरिंग का छात्र लाली अब भी अंग्रेजी सहजता से नहीं बोल पाता। भारतीय भाषाओं की कहानियों की अध्येता सपना बताती हैं कि भारतीय समाज के यथार्थ बोध, मानवीय भावों, सामाजिक स्थितियों और उनकी अभिव्यक्ति में और कोई नहीं है।