प्रदीप अंकल
देश में इन दिनों एक समाचार प्रमुखता से दिखाया जा रहा है चीन भारत की सीमा में घुस आया है, चीन की हिमाकत को देखों, चीन रेल लाईन बिछा रहा है, चीन ने स्टेम्प बीजा देना शुरू किया, चीन के हेलीकॉप्टर भारतीय सीमा में घुसे बगैरा-बगैरा। फिर दो चार लोग पकड़ कर उनसे इस बारे में प्रतिक्रिया ली जाती है वो इस तरह करते हैं मानो भारत अभी हाल ही जाए और चीन को सबक सिखा दे। कुछ तो बिचारे ऐसा करते हैं जैसे कोई साधारणस खेल हो चीन को सबक सिखाना। पर एक बड़ा प्रश्न यह उठ रहा है कि आखिर चीन ऐसा क्यों कर रहा है, यह सोचना होगा कि चीन भारत से ज्यादा संपन्न देश है। चीन ने आज विश्व बाजार में अपनी धाक जमा रखी है, चीन के हौंसले इतने बुलंद क्यों है इस पर ध्यान देने की आवश्यकता है और उससे सीखने की भी आवश्यकता है।
आज हम चीन से मुकाबला करना चाहते हैं कोई बड़ी बात नहीं है हम कर सकते हैं पर सबसे बड़ी दिक्कत तो यह है कि हमारे अंदर राष्ट्र प्रेम नहीं है। हम मुफ्तखोर हो चुके हैं हमें फ्री की आदतें पड़ चुकी हैं, हम आलू, प्याज, टमाटर से बाहर नहीं निकल पा रहे हैं, हमारी रगों में भ्रष्टाचार का खून चढ़ चुका है। हार काम में हम जुगाड़ देखते हैं, साधारणसा काम भी हम ले-दे कर कराना चाहते हैं। हमारे आंतरिक ढांचे में दीमक लग चुकी है। सरकारी बाबू से लेकर अधिकारी तक गैर जिम्मेदार हो गए हैं। हम स्वार्थी हैं, हमारे पास इक्क्षाशक्ति का अभाव है, हमारे अंदर देश प्रेम नहीं है, सरकारें चाहे कोई हों पर हम संकट में सरकार के साथ खड़े दिखाई नहीं देते हैं। हमारे अंदर त्याग की भावना खत्म हो गई है। हमारे देश का जिम्मेदार मीडिया देश की जनता को अलू ,प्याज पर डिवेट कराने में व्यस्त रखता है और सरकारों को राष्ट्र हित में निर्णय लेने में परेशानी खड़ी करता है। क्योंकि सरकार जब आलू, प्याज से बहार निकलेगी तभी नई तकनीक के बारे में सोच सकती है। तभी शत्रुओं से लडऩे की योजना बना सकती है। हम तमाम बातें करते हैं पर जरासा त्याग करने तैयार नहीं रहते और सपना देखते हैं चीन का सामना करने का।
हो सकता है यह बात किसी को न गबार गुजरे पर हकीकत यही है कि आज हम भारत को विकसित बनाने में योगदान नहीं दे रहे हैं। जिस तरह से आज भारतीय नागरिक बात-बात पर चक्का जाम कर रहा है, बात-बात पर तोड़ खोड़ कर रहा है और बात-बात पर आगजनी कर रहा है। ऐसे में सरकारें वोट बैंक की खातिर कठोर कदम उठाने से बचती हैं जिसका लाभ विद्रोही मानसिकता के लोग उठा रहे हैं। जिस तरह से राष्ट्रीय संपत्ती को नुकसान पहुंचाते हैं उससे एक समृध राष्ट्र की कल्पना कैसे की जा सकती है। कहीं धार्मिक उनमाद चल रहा है तो कहीं जातिगत राजनीति चल रही है। देश के कर्णधार बस कुछ जानते हुए भी इन गंभीर समस्याओं से देश को बहार नहीं निकाल पाते हैं। ऐसे में जिसकी जैसी मर्जी वैसे जीने में विश्वास रखता है पर जब हम दूसरे मुल्कों की तरक्की देखे हैं तो हमारा भी मन करता है कि हमारा देश भी संपन्नशाली हो उसकी ओर कोई निगाह उठा के न देख सके पर इसके लिए हर भारतीय को त्याग का गुण पालना होगा। यदि देश में कोई वस्तु महंगी होती है तो क्या हमारा फर्ज नहीं कि हम कुछ दिन के लिए उस वस्तु का सेवन करना कम कर दें। जिससे मांग और पूर्ति का अंतर बरा-बर हो जाए। तभी भारत दूसरे मुल्क को अपनी भाषा में जबाब देने का जजबा पैदा कर सकता है।