हमारे देश में आजकर बेईमानी व भ्रष्टाचार की बड़ी चर्चा है। असलियत तो यह है कि 16वीं लोकसभा के चुनाव इसी मुद्दे पर लड़े जा रहे हैं। लगता है कि सारा भारत भ्रष्ट हो गया है। नेता भ्रष्ट हैं, नौकरशाह भ्रष्ट हो गया है, इस भारत में कौन भ्रष्ट नहीं है? मगर ऐसे भ्रष्टकाल में भी देश में करोड़ों लोग ऐसे हैं, जिन्हें भ्रष्टाचार अब भी छू तक नहीं पाया है। भ्रष्ट होना तो बहुत निकृष्ट काम है, वे लोग ईमानदार बने रहने के लिए अपनी कुर्बानियां करने के लिए भी तैयार रहते हैं। ऐसे ही एक ईमानदार स्वाभिमानी ऑटो रिक्शा चालक का किस्सा यहां मुंबई में मेरी जानकारी में आया। मैंने यह समझा कि मेरे असंख्य पाठकों को मैं यह बात बताऊं, ताकि उनके दिल से निराशा के बादल छंटे और उनके दिल में यह आशा जगे कि भारत में अब भी करोड़ों लोग ऐसे हैं, जिन्हें चाहे दो वक्त की रोटी भी ठीक से नसीब नहीं होती हो, मगर वे अपने ईमान को पैसे के लिए डिगने नहीं देते।
यह किस्सा है मुंबई की गरीब बस्ती में रहने वाले रिक्शा चालक, आसिफ अल्लाबख्श शेख का। इस आसिफ शेख को सड़क पर एक बटुआ पड़ा मिला। उसमें 20 हजार रूपए नकद थे, कई बैंकों के क्रेडिट कार्ड थे और कार का ड्राइविंग लाइसेंस था। ड्राइविंग लाइसेंस पर उसने बटुआ मालिका का नाम बढ़ा। अनंतशयनम नाड़कर्णी। लाइसेंस पर पता भी था। नाड़कणी ने अपने बटुए में 20 हजार रूपए इसलिए रखे हुए थे कि उनको पारिवारिक पार्टी का उसी दिन बिल चुकाना था। उन्हें जैसे ही पता चला कि उनका पर्स कहीं खो गया है, उन्होंने अपने क्रेडिट कार्ड ठप्प करा दिए और फिर वे लंच पार्टी में व्यस्त हो गए।
उधर ऑटो रिक्शा वाले आसिफ शेख ने नाड़कणी का पता ढूंढा और अपने रिक्शे से वह नाड़कर्णी के परिसर में आयोजित लंच-स्थल पर पहुंच गया, लेकिन चौकीदारों ने न केवल अंदर जाने से मना किया, बल्कि उसे वहां से भगा भी दिया। नाड़कणी से मिलने नहीं दिया। आसिफ शेख दूसरे दिन नाड़कर्णी के फ्लैट पर पहुंच गया। नाड़कर्णी को विश्वास नहीं हुआ कि कोई व्यक्ति उनका गुमा हुआ बटुआ लौटाने उनके घर पहुंच जाएगा। वह गद्गद् हो गए। उन्होंने आसिफ शेख को इनाम के तौर पर कुछ रूपए देने चाहे, लेकिन आसिफ शेख ने रूपए लेंने से इंकार कर दिया। फिर, उन्होंने आसिफ शेख को ऑटो रिक्शा के चार चक्करों के पैसे देने चाहे, तो आसिफ ने फिर मना कर दिया और कहा कि मैं सिर्फ सवारी के पैसे लेता हूं। आपसे यह रूपए कैसे ले सकता हूं? और फिर उसने हाथ जोड़े और चला गया।
यह आसिफ शेख स्नातक है। वह ऑटो रिक्शा चलाकर अपने पिता की मदद करता है। उसके दो भाई-बहन भी हैं। घर का खर्च मुश्किल से चल पाता है। भाई की आंखें नहीं हैं। आसिफ शेख चाहता है कि उसे किसी टैक्सी कंपनी में ड्राइवर की नौकरी मिल जाए, तो उसके घर का खर्च ठीस से चल जाए। ऐसे लोग भी हैं, हमारे देश में।
इसके आधार पर हम क्या निष्कर्ष निकालें? यही कि देश में ज्यादातर आम आदमी ईमानदार हैं। इनमें से बहुत से ऐसे भी होंगे, जिन्हें अपना सही काम कराने के लिए कभी न कभी किसी को घूस देनी पड़ी होगी, मगर इन लोगों के बार ेमें यह बात दावे से कही जा सकती है कि इन्होंने घूस ली कभी नहीं होगी। इस घटना के आलोक में हमारा दूसरा निष्कर्ष यह है कि भ्रष्ट केवल वहीं होता है, जो लोभी होता है, जिसकी इच्छाएं बढ़ती चली जाती हैं। ऐसे लोग देश में कम हैं, मगर वे ऐसी जगहों पर बैठे हैं कि केवल वही दिखते हैं और उनके आचरण को ही राष्ट्रीय आचरण मान लिया गया है। वरना देश में ईमानदारी कम नहीं है।