Thursday, September 25

मुशर्रफ सजा से तो बच जाएंगे

एक देश के सेना प्रमुख और राष्ट्रपति रहे किसी व्यक्ति के लिए इससे बुरा और कोई दिन नहीं हो सकता है कि उसके खिलाफ देशद्रोह का मुकदमा चलाया जाए, मगर पाकिस्तान के पूर्व राष्ट्रपति और सेना प्रमुख रहे परवेज मुर्शरफ को फिलहाल ऐसे ही बुरे दिन देखने पड़ रहे हैं7 उनके ऊपर मुकदमे तो अनेक चल रहे हैं, मगर नवाज शरीफ का तख्ता पटल करने, संविधान को निलंबित करने मार्शल लॉ लगाने और लोकतंत्र की तौहीन करने के आरोप में उन पर देशद्रोह का मुकदमा चलना अब तो पक्का हो गया है, क्योंकि एक निचली अदालत ने उन पर इसके आरोप तय कर दिए हैं।
इसके उपरांत यह सवाल उठ खड़ा हुआ है कि आगे मुशर्रफ का होगा क्या? दरअसल, उन पर देशद्रोह का मुकदमा चलना है और उनके खिलाफ परिस्थितिजन्य साक्ष्य इनते हैं कि कहा जा रहा है कि उन्हें फंासी के फंदे पर भी लटकाया जा सकता है। आखिरकार इसके लिए किसी साक्ष्य की क्या जरूरत है कि नवाज शरीफ का तख्ता पटल करने के बाद ही परवेज मुशर्रफ अपने देश पाकिस्तान के राष्ट्रपति जबरन बन गए थे।
कुल मिलाकर यह तो वह तथ्य है, जिसको अदालत के साथ ही साथ पूरी दुनिया और पाकिस्तान की अवाम का एक छोटे से छोट बच्चा तक जानता है। मतलब, उनके खिलाफ सबूत पुख्ता हैं और संभव है कि कोर्ट उन्हें फंासी की सजा ही सुना दे। यद्यपि अभी यह मान लेना बहुत जल्दबाजी होगी कि अदालत इस हद तक जाएगी ही। इसका एक बड़ा कारण यह है कि परवेज मुशर्रफ भले ही उनके ही फॉर्म हाउस में बनाई गई जेल में कैद हों, मगर वह हैं, अब भी बहुत ही प्रभावशाली। पाकिस्तानी जानता में भी उनकी मदद करने वाले लोग मौजूद हैं, सेना में भी हैं और सबसे बड़ी बात यह है कि विदेशों में भी ऐसे लोग कम नहीं हैं, जो कि मुशर्रफ की मदद करना चाहते होंगे, इस संकट काल में।
चूंकि मुशर्रफ उस तबके से आते हैं, जो विभाजन के दौरान भारत से पाकिस्तान गया था। ऐसे लोगों को पाकिस्तान में मुहाजिर कहा जाता है। इस तबके के बड़े नेता अल्ताफ हुसैन हैं, जो फिलहाल लंदन में रहे हैं और वहीं से मुत्तहिदा कौमी मूवमेंट के नाम से जानी जाती थी। इसमें तो कोई संदेह नहीं है कि अल्ताफ हुसैन अगर पाकिस्तान में आ जाएं, तो मुकदमा उनके खिलाफ भी चलाया जाएगा, क्योंकि पाकिस्तान में उनको भी तो देशद्रोही माना जाता है। इसलिए कि ये अब भी भारत-पाक विभाजन को अवैध और अप्राकृतिक मानते हैं, लेकिन सच यह भी है कि वह पाकिस्तान आएंगे नहीं। इससे भी बड़ा सच यह है कि वह मुर्शरफ के पक्ष में हैं। वह अल्ताफ हुसैन ही हैं, जो परवेज मुशर्रफ के खिलाफ चलने वाले मुकदमों की मुखालफत करते हैं। ऐसे में अदालत चाहे जो भी करें, मगर नवाज शरीफ की सरकार मुशर्रफ को फांसी पर लटकाने से तो बचेगी ही, क्योंकि एक ओ तो उसे यह डर होगा कि ऐसा करने पर मुहाजिर उसके खिलाफ हो जाएंगे और दूसरी ओर यह डर भी होगा ही कि मुशर्रफ को फांसी देने की स्थिति में अल्ताफ हुसैन नवाज शरीफ और उनकी सरकार की पूरी दुनिया में ध्यान से सुनी जाती है। इधर फौज तो पेंच फंसाएगी ही। वैसे, अशफाक परवेज कियानी की जगह नवाज शरीफ ने राहील शरीफ को सेना प्रमुख बनाया है। माना जाता है कि ये नवाज के बहुत खास हैं। मगर सच यह है कि सेना प्रमुख सेना के अलावा और किसी का भी खास नहीं होता है और पाकिस्तानी फौज में इस समय भी परवेज मुशर्रफ के समर्थकों की तादाद कम नहीं है। इसके साथ ही यदि मुशर्रफ को फांसी दी गई, तो इसे फौज अपनी बेइज्जती ही मानकर चलेगी। यदि ऐसा हुआ ही, तो फिर यह आगे चलकर नवाज शरीफ के लिए घातक सिद्ध होगा। यहां तक कि उनकी सरकार का तख्ता भी नाराज फौज यदि पलट दे, तो इसमें हमें हैरत नहीं होनी चाहिए। कुछ कुछ ऐसा ही मामला विदेशों का भी है। हमें पता होना चाहिए कि परवेज मुशर्रफ अमेरिका, दुबई, ब्रिटेन और सऊदी अरब के शासकों को बहुत ही प्रिय लगते रहे हैं। जब उन्होंने नवाज शरीफ का तख्ता पलट किया था, तो सऊदी अरब ही बीच में आया था। उसी की पैरवी के कारण मुशर्रफ ने नवाज शरीफ को बख्श दिया था, वरना तो यह वही पाकिस्तानी है, जहां जनरल जिया उह हक ने जुल्फिकार अली भुट्टों का पहले तो तख्ता पलट किया था और फिर उनको फांसी पर भी चढ़ा दिया था। मतलब, नवाज मामले में सऊदी अरब यदि बीच में नहीं आया होता, तो मुशर्रफ नवाज शरीफ के सथ वहीं करते, जो कि उल हक ने जुल्फिकार अली भुट्टों के साथ किया था, न कि उन्हें देश निकाला देकर सऊदी अरब भागने देते, किसी भी सूरत में। ऐसे में लगता यही है कि एक समय सऊदी अरब की बात मानकर मुशर्रफ ने नवाज की जान बख्श दी थी, तो अब वैसा ही नवाज को भी करना होगा। उधर, ब्रिटेन और मेरिका जैसे देश भी नहीं चाहेंगे। कि मुशर्रफ की जान चली जाए।