Monday, November 10

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विदिशा से आई एक अच्छी खबर मेडीकल कॉलेज शुरू होने की प्रक्रिया तेज

विदिशा। विदिशा जिला मुख्यालय को एक बड़ी सौगात के रूप में मेडीकल कॉलेज उपलब्ध कराने के प्रयास सरकारी स्तर पर चल रहे है। हाल ही खबर आईं है कि मेडीकल कॉलेज में आगामी सत्र से कक्षाएं संचालित की जा सकती है। अब देखने वाली बात यह है कि मेडीकल कॉलेज के साथ स्थापित होने वाला अस्पताल आम लोगों के  रोगो को हरने में किस तरह मददगार साबित होगा। कारण पूरे प्रदेश में डॉक्टरों की कमी खासकर विशेषज्ञों की कमी का मुद्दा गहराता रहता है। प्रदेश के महानगरों से लेकर देश के महानगरों के होनहार बच्चे डॉक्टर बनकर अपनी सेवाएं महानगरों में ही देना पसंद करते है। उनके अपने निजी नर्सिंग होम होते है या वे किसी निजी नर्सिंग होम पर सशुल्क सेवाएं देना चाहते है। एमबीबीएस से एमडी तक के चिकित्सक गांवों में जाना और खासकर रूकना पसंद नहीं करते है। ऐसे में ग्रामीण अंचल आज भी स्वास्थ्य सुविधाओं से महरूम सा है। ऐसे में विदिशा जिला मुख्...
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सिर्फ हंगामों से न संवरेगा जनता का हित, कब तक न बदलेंगे व्यवस्था

प्रदीप राजपूत, अंकल, भोपाल। साल दर साल हमारे देश में घोटाले सामने आते है। घोटालों के उजागर होते ही चहुंओर विरोध और समर्थन के स्वर तेज होते-होते हंगामें तब्दील हो जाते है। इसके बाद फिर दूसरा घोटाला या बड़ी घटना सामने आ जाती है, लेकिन इस बीच जनता को जो नुकसान हो चुका होता है, उसकी भरपाई कहा हो पाती है। यह सवाल उठना लाजिमी है कि आखिर हंगामों के चलते भले ही जनमत को प्रभावित करने वाले तर्क गढ़े जाते है और जमकर मीडिया से लेकर संसद की सड़क तक उछाले जाते है। फिर सारा हंगामा संसद में पहुंच जाता है और बहुमत के आधार पर तर्को की दुहाई देकर मीडिया में छाए हंगामों को दफना दिया जाता है। इस दौरान हंगामों की वजह गायब हो जाती है। हंगामों के लिए अवसर देने वाली घटनाएं कहीं रसातल में खो जाती है। और देश प्रदेश की जनता राजनीतिक दलों की ओर नये हंगामों को हवा देने की कवायद की ओर नजरे टिका देती है। लेकिन सुधरती है ...
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एक तीर से दो निशाने- भाव बदलते ही अंतर यानि भावांतर योजना

भोपाल। मप्र सरकार द्वारा चुनावी साल में रूठे किसानों को मनाने की नई तरकीब निकाली है। जिसे भावांतर योजना कहा जा रहा है। लेकिन अभी तक यह किसी ने नही पूछा है कि सरकार और खासकर योजनावीर मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान भावांतर योजना में खर्च होने वाला पैसा कहां से लाएंगे। तरकीब निकालने में महारत हासिल करने वाली यह सरकार ने कभी यह बताना मुनासिब नहीं समझा कि वे जिन योजनाओं पर खर्च कर रही है, उसमें खर्च होने वाली राशि का बजट कहां से जुटाया जा रहा है। कुछ यहीं हाल किसानों को राहत पहुंचाती दिखाई देने वाली भावांतर योजना के साथ हो रहा है। भावांतर योजना के जरिए किसानों को मंडियों में मिलने वाले भावों के अंतर को पाटने का उपक्रम करने वाली भावांतर योजना में दिखाई देता है। जिस पर मीडिया से लेकर प्रचार प्रसार में करोड़ों रूपए पहले की तरह ही सरकार खर्च करती है। योजनाओं के क्रियान्वयन तंत्र को तैयार करने मे ंकर...
क्या महानता बचा पाओगेे मोरे बाबा, बायोपिक पर कोहराम मचना लाजिमी
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क्या महानता बचा पाओगेे मोरे बाबा, बायोपिक पर कोहराम मचना लाजिमी

भोपाल। ऐसा सुना है कि जब देश आजाद हुआ तो देश के कुछ समझदार नेताओं ने गांधी जी के सामने देश का प्रधान बनने का आग्रह भरा निवेदन किया था। कुछ देर गांधी जी असमंजस में रहे फिर उन्होंने साफ कह दिया कि नहीं मेरे जीवन में राजनीति का स्थान उतना ही था कि मैं विदेशी सत्ता को देश से बाहर निकालने का माध्यम भर बन सकूं। इसी तरह उन्होंने कांग्रेस को भी खत्म करने की बता कह दी थी। ताकि कांग्रेस आजादी की लड़ाई का दूसरा नाम बनकर इतिहास में दर्ज हो सके। लेकिन चूंकि उस वक्त जिस उम्र में थे, वैसे में उनके मन का संतत्व जागा और उन्होंने राजनीतिक विसात पर अपने कदम नहीं बढ़ाए। यहीं कारण है कि समय ने गांधी को तो महात्मा गांधी बना दिया लेकिन कांग्रेस राजनीतिक दांव पैंच में उलझकर अपने नाम को खोने लगी है। यहां इतना ही कहना चाहते है कि महानता प्राप्त करने में जो संघर्ष और प्रसव पीड़ा भोगना होती है, उससे ज्यादा महत्वपूर्...
कुरवाई, गंजबासौदा, लटेरी, विदिशा

जनप्रतिनिधि समझे नाम में क्या रखा है- बदहाल सड़के, बदहाली में सफर

गंजबासौदा। यहां हम जिस एक सड़क का जिक्र करने वाले है, वह दो शुभ और महान शब्दों का संगम भर नहीं है। उसका संस्कृति और महानता से लेना-देना है। शहर की महत्वपूर्ण सड़क और नये बस स्टेण्ड को सिरोंज मार्ग से जोडऩे वाली महाप्रताप चौक से लेकर तिरंगा तिराहे तक की सड़क अपनी बदहाली से जैसे महान शब्दों की प्रेमी नगर की जनता को जैसे मुंह चिढ़ा रही है। पिछले कई सालों से उपेक्षा का दंश झेल रही है बरेठ रोड वायपास मध्ययुग के महान नायक महाप्रताप और भारतीय ध्वज को तीन रंगों में पिरोने का अधिकार तिरंगा तिराहा तक की सड़क बदहाली के कारण आनंद का विषय नहीं बल्कि दुख मनाने का सबव बनी हुई है। इस सड़क पर चलने से होने वाली परेशानियों को आप एक बार अपने दुपहिया वाहन या पैदल तय कर खुद अनुभव कर सकते है। लेकिन महान शब्दों से जनप्रतिनिधियों और प्रशासन को जैसे परहेज है। इसी कारण महाराणा प्रताप चौक से तिरंगा तिराहे तक की सड़क ...
गंजबासौदा

हंसे भले ही नहीं मुस्कुराएगा किसान…..।

गंजबासौदा। ज्यों-ज्यों फरवरी माह की अंतिम गिनती होने लगी है, साथ ही होली पर्व की आमद मौसम के लिहाज से शुरू होने वाली है। मौसम ने करवट लेना शुरू कर दिया है। कारण पिछले दो दिनों से लोग स्वेटर और जर्किन छोड़ कम कपड़ों दिखाई देने लगे है। दिन में आसमान में तपता सूरज मौसम बदलने की तैयारी कर चुका है। आसमान का साफ होना दर्शाता है कि अब ठंडी हवाओं से मुक्त होकर गर्मी का अहसास करने का समय आने लगा है। सुबह और अल सुबह की सर्दी को छोड़कर अब घरों में पंखों की आवाजे भी मौसम बदलने की तस्दीक करने लगी है। वहीं ग्रामीण अंचलों में खासकर खेतों में नजर दौड़ाई जाए तो फसल कटाई का मौसम शुरू हो चुका है। कई जगह तो किसानों ने मसूर, तेवड़ा जैसी फसलों की कटाई कर थ्रेसिंग का काम भी कर लिया है। वहंी विदिशा जिले की खास पहचान चना भी कटने लगा है। अलबत्ता सिंचाई वाले क्षेत्रों में चना अभी भी हरियाली बिखेर रहा है। बाकी स्थान...
भोपाल संभाग

परीक्षा- पर-इच्छा को अपनी इच्छा बनाएं

इन दिनों हर स्तर पर परीक्षा का दौर शुरू हो चुका हैं। स्कूलों से लेकर कॉलेज स्तर और प्रतियोगिता परीक्षाओं के जरिए केरियर संवारने की जद्दोजहद में बच्चे डूबे हुए है। ऐसे में सफलता और असफलता के बीच बच्चों का मन झूल रहा है। इस मन पर अभिभावकों, स्कूलों और आसपास के शैक्षिक वातावरण का तेजी से प्रभाव पड़ रहा है।  इसी बीच कई बच्चे जहां सफलता को लेकर पूर्ण आशांवित होते है तो कई ऊहापोह की स्थिति में बने रहते है। ऐसे छात्रों के लिए परीक्षा हऊआ बनकर दिमाग में तूफान मचाती है। जिसके परिणाम पेपर खराब होने से लेकर परीक्षा परिणाम घोषित होने तक नुकसान के रूप में सामने आते है। फिर सवाल उठता है कि आखिर ऐसे बच्चों जिनके मन में सफलता और खासकर अपेक्षित सफलता का ग्राफ नीचे जाता दिखाई देता है,उनके साथ किसको क्या करना चाहिए। आओ हम इस पर विचार करते है। बोर्ड कक्षाओं की परीक्षाएं मार्च आरंभ होते शुरू हो जाएंगे। बच्चे ...
सौ करोड़ की बायोपिक, सवा करोड लोगों पर भारी 	बाबा रामदेव की आने वाली बायोपिक से होंगे कई दिल आहत
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सौ करोड़ की बायोपिक, सवा करोड लोगों पर भारी बाबा रामदेव की आने वाली बायोपिक से होंगे कई दिल आहत

प्रदीप राजपूत, अंकल, भोपाल। भारतीय परंपरा में सामाजिक जातीय व्यवस्था से परे या यूं क हे इस सबसे से ऊंपर उठने का नाम सन्यास और संतत्व ग्रहण करना माना जाता है। शायद इसीलिए संत कबीर ने इस दोहे के जरिए बताने का प्रयास किया है कि जाति न पूछो साधु की पूछ लीजिए ज्ञान, मोल करो तलवार का, पड़ी रहन दो म्यान। अर्थात संत यानि जातीय व्यवस्था से ऊंपर उठ चुका उत्कृष्ट व्यक्ति। ऐसी सामाजिक एवं भारतीय परंपरा रही है कि भारतीय संत अपनी पुरानी जिंदगी को विस्मृत कर समाज एवं धर्म को नई दिशा देेने का काम करता रहा है। इसी कारण हमारे प्राचीन संत हिमालय की कंदराओं से ज्ञान प्राप्त कर ही समाज का मार्गदर्शन करने के लिए जमीं पर उतर आते थे। लेकिन वर्तमान में जैसे बाबाओं और संतों को भी राजनीतिक पगडंडी पर कदम-ताल करने की सूझ रही है। जिससे न केवल संतत्व पर सवाल उठने लगे है। पिछले पांच दस सालों में आशाराम बापू, राम रहीम, बा...
सचिन ने क्रिकेट से संन्यास लेने के बाद समाज सेवा शुरू की।
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सचिन ने क्रिकेट से संन्यास लेने के बाद समाज सेवा शुरू की।

मुंबई । मास्टर ब्लास्टर सचिन तेंदुलकर ने क्रिकेट छोड़ने के बाद अब समाजसेवा की इच्छा जताई है। सचिन अब महाराष्ट्र के मराठवाड़ा में सूखे से प्रभावित किसानों की मदद करना चाहते हैं। देश के सर्वोच्च नागरिक पुरस्कार भारत रत्न से सम्मानित और राज्यसभा सांसद सचिन के निजी सहायक नारायण कनहान ने हाल ही में इसी सिलसिले में बीड जिले का दौरा भी किया है और यहां के कलेक्टर नवकिशोर राम से मुलाकात भी की ताकि पीड़ित किसानों की अधिक जानकारी जुटाई जा सके। कनहान ने यहां पत्रकारों से कहा, सचिन स्वतंत्र रूप से किसानों की मदद करना चाहते हैं और इसमें किसी तरह के राजनीतिक हस्तक्षेप के समर्थन में नहीं हैं। वह स्वयं ही इस पूरी मुहिम से जुड़े हुये हैं। जिला अधिकारियों ने भी सचिन के यहां के किसानों की मदद को लेकर चलाई जा रही मुहिम से जुड़ने की पुष्टि की है। विदेशों में लोग इस बारे में ज्यादा सचेत: सचिन में कहा कि उन्हो...
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जरा से बाचे को मंदिर के भर झाडिय़ो में ऐसे पड़ा था बाच अब जी रहय है ऐसी जिंगदी

थाईलैंड में श्रीबूनरङ्ग हल ही में येह बच्चा मंदिर के भर करीब 6 महीने पहले बरामद किआ गया है हलाकि येह बाच कौन का है और किसका है और किसने जनम दिया है अभी तक मालूम नहीं हुआ है फिलहाल इसलकी परवरिश मंदिर के साधु कर रही है बास्केट में मिला था बच्चा बतया जा रहय ह आ लोकल गार्ड को येह बच्चा एक पिंक कलर ई बास्केट में रखा मिला तथा फिर लोकल गार्ड ने उस बच्चे को उठा कर साधु के पास दे दिया और साधु ने उस अपने लिए है और अभी वह उसकी देखभाल कर रहा है साधु ने कह्या है की जरृरतमंदों की मद्दद करना मेरा कर्त्तव्य है में इस बच्चे को ढेर सारा प्यारफ़ और अच्छा भविष्य दूंगा येह बच्चा साधु के साथ 6 महीने से रहय है और साधु ने इसका नाम अदवान रखा है इस बाच का जेंडर और वास्तिवक उम्र का खुलासा नहीं हुआ है एक महिला का कहना है की जब तक इस बच्चा का परमानेंट घर नहीं मिलता येह मंदिर में शुरक्षित है साधु का कहना है अगर मुझ मं...