भोपाल। ऐसा सुना है कि जब देश आजाद हुआ तो देश के कुछ समझदार नेताओं ने गांधी जी के सामने देश का प्रधान बनने का आग्रह भरा निवेदन किया था। कुछ देर गांधी जी असमंजस में रहे फिर उन्होंने साफ कह दिया कि नहीं मेरे जीवन में राजनीति का स्थान उतना ही था कि मैं विदेशी सत्ता को देश से बाहर निकालने का माध्यम भर बन सकूं। इसी तरह उन्होंने कांग्रेस को भी खत्म करने की बता कह दी थी। ताकि कांग्रेस आजादी की लड़ाई का दूसरा नाम बनकर इतिहास में दर्ज हो सके। लेकिन चूंकि उस वक्त जिस उम्र में थे, वैसे में उनके मन का संतत्व जागा और उन्होंने राजनीतिक विसात पर अपने कदम नहीं बढ़ाए। यहीं कारण है कि समय ने गांधी को तो महात्मा गांधी बना दिया लेकिन कांग्रेस राजनीतिक दांव पैंच में उलझकर अपने नाम को खोने लगी है।
यहां इतना ही कहना चाहते है कि महानता प्राप्त करने में जो संघर्ष और प्रसव पीड़ा भोगना होती है, उससे ज्यादा महत्वपूर्ण उस महानता को बचाए रखने की जद्दोजहद महत्वपूर्ण है। यहां हम अपनी बात को आगे बढ़ाते हुए वर्तमान में भारतीय योगी से उद्योगपति तक का सफर करने वाले बाबा रामदेव की ओर इशारा करते हुए कह रहे है कि उनकी कुछ दबी इच्छाएं गलतियों का रूप लेकर उनकी वर्तमान महान छवि को नुकसान पहुंचा सकती है।
खास टीव्ही चेनलों पर बाबा रामदेव की आत्मकथा आधारित वायोपिक सीरियल का शुभारंभ हो चुका है। जिसके जरिए बाबा रामदेव के बालपन में संघर्ष को दिखाने का नाटकीय रूपांतरण चल रहा है। हो सकता है कि इससे समाज के कुछ लोग उनकी महानता को और ज्यादा महत्व देने लगे लेकिन जातीय विदू्रपता से उभर रहे भारतीय समाज में फिर से एक जातीय संषर्ष और विषादता की उभरने का खतरा दिखाई देने लगा है। सोसल मीडिया पर आ रही खबरों से बाबा रामदेव पर बन रही वायोपिक की सच्चाई पर सवाल खड़े होने लगे है। जिससे बाबा का सर्वमान्य चेहरा किसी खास खांचे में सिमटता नजा आने लगा है। हम पहले भी अपने आलेख के जरिए जता चुके है कि यह खतरा न केवल बाबा के लिए बल्कि बाबा द्वारा चलाए पूर्ण स्वदेशी आंदोलन के लिए हो सकता है। केवल फायदा होगा तो विदेशी आकाओ, विदेशी कंपनियों को और भारतीय संस्कृ ति से परहेज करने वालों पर। यहां हम एक बात कहना चाहेंगे कि बाबा के प्रोडक्टों पर पहले से ऊंगली उठना शुरू हो चुकी थी। जितना घी, दूध, दही, मक्खन बाबा एंड कंपनी द्वारा देश और विदेश में बेंचा जा रहा है। उतना दुग्ध उत्पादक गौ धन कहां है।
ऐसे में सवाल उठ रहा है कि जिस महानता को योग और रोग भगाने के साथ भारतीय जनमानस ने संघर्षी के रूप में बाबा को स्वीकार किया है। वह महानता पर उनकी बायोपिक विराम लगाने के लिए ग्रहण भी न लगा दे।