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रातनपंथी रिवाजों को छोड़ आधुनिकता की ओर चलने की रफ्तार गुर्जर समाज में बाकियों के मुकाबले धीमी है। गुर्जरों को अपने अतीत पर बेहद गर्व है लेकिन भविष्य की कोई साफ योजना उनके पास नहीं है। यह समुदाय आधुनिकता की दौड़ में आगे भी निकलना चाहता है लेकिन अपनी पुरानी रूढ़ियों, परंपराओं और कुरीतियों को छोड़ना भी नहीं चाहता।
सामाजिक नजरिए से गुर्जर देश की मध्यम किसान जातियों के वर्ग में आते हैं। जाट, यादव, राजपूत, भूमिहार, कुर्मी आदि जातियों के करीब-करीब बराबर ही इनकी गिनती होती है। इन बिरादरियों का हुक्का भी एक है। इनके बीच बेटी का संबंध तो नहीं है, पर रोटी का संबंध जरूर है। चौधरी चरण सिंह ने 'अजगर' के नारे पर अपना राजनीतिक आंदोलन खड़ा किया था। अजगर यानी अहीर, जाट, गुर्जर और राजपूत। अगर आज शिक्षा, सत्ता, संपत्ति और सरकारी नौकरियों में हिस्सेदारी के आधार पर आकलन करें तो गुर्जर दूसरी समकक्ष...