Sunday, October 19

सत्ता कि महत्वकांक्षा और वदलते पाले

kalam-1जैसे ही चुनाव आते हैं तो राजनीति का स्वाद चख चुके लोग सत्ता कि भूख में इतने पागल हो जाते हैं कि वह दल बदलने में भी गुरेज नही करते उन्हे इस बात का भी भान नही रहता हैं कि कल तक जिस विचार धारा की आलोचना किया करते थेे और वही विचारधारा अच्छी हो जाती हैं न कोई सिद्धांत न कोई जमीर न कोई सोच सिर्फ और सिर्फ अपने व्यक्तिगत हित।
वर्तमान परवेष में एक बात और देखने में आ रही हैं जो लोग पार्टी में मंत्री विधायक और सांसद रहें हैं पार्टी ने उन्हे नीचे से ऊठा कर देश की जनता के भाग्य के फैसले के लिए थोप दिया जबकि बह उस योग्य नही थे चुनाव के समय वही नेता उसी पार्टी के खिलाफ अपने महत्वकाक्षां के चलते सड़को पर दिखई देते हैं । और दलबदल लेते हैं।