जैसे ही चुनाव आते हैं तो राजनीति का स्वाद चख चुके लोग सत्ता कि भूख में इतने पागल हो जाते हैं कि वह दल बदलने में भी गुरेज नही करते उन्हे इस बात का भी भान नही रहता हैं कि कल तक जिस विचार धारा की आलोचना किया करते थेे और वही विचारधारा अच्छी हो जाती हैं न कोई सिद्धांत न कोई जमीर न कोई सोच सिर्फ और सिर्फ अपने व्यक्तिगत हित।
वर्तमान परवेष में एक बात और देखने में आ रही हैं जो लोग पार्टी में मंत्री विधायक और सांसद रहें हैं पार्टी ने उन्हे नीचे से ऊठा कर देश की जनता के भाग्य के फैसले के लिए थोप दिया जबकि बह उस योग्य नही थे चुनाव के समय वही नेता उसी पार्टी के खिलाफ अपने महत्वकाक्षां के चलते सड़को पर दिखई देते हैं । और दलबदल लेते हैं।