भोपाल। ऐसा माना जाता है कि पुरूषों की तुलना में महिलाएं ज्यादा संवेदनापूर्ण होती है। ऐसे में स्वयं महिलाएं, बच्चे, शिक्षा और स्वास्थ्य विभाग में महिलाओं की उपस्थिति ज्यादा श्रेयस्कर मानी जाती है। कारण इन विभागों में संवेदनाओं की पूर्ति अत्यंत आवश्यक है। हमारा तो मानना है कि सेना को छोड़कर बाकी सभी विभागों में राजनीति भी महिलाओं की उपस्थिति ज्यादा नहीं तो बराबरी वाली होनी ही चाहिए। हाल ही विश्व महिला दिवस के मौके पर भोपाल मंडल की भोपाल बिलासपुर ट्रेन में बतौर प्रयोग महिलाओं को कमान सौंपी गई। यह पहल तो सराहनीय है ही साथ ही इसको आगे बढ़ाते हुए महिलाओं को पूरी ट्रेन की साल भर के लिए कमान सौंपी जानी चाहिए। रेलवे को महिलाओं के प्रति संवेदनशील बनाने के लिए भी महिलाओं की जरूरत होगी। क्योंकि वे ही महिलाओं की परेशानियों से लेकर अन्य दुविधाओं को सही ढंग से समझ सकती है। देखने मे ंआता है कि रेलवे कई ट्रेनों में महिला कोच लगाकर उनकी यात्रा को सुलभ बनाने का काम करता है। लेकिन इससे राहत कम आफत ज्यादा होती है। इसके एवज में रेलवे आरक्षण में और टिकिट बिक्री में महिलाओं को आरक्षण दिया जाना चाहिए ताकि ट्रेनों में यात्रियों में महिलाओं का प्रतिशत बढ़ाया जा सके। साथ ही महिला या विकलांग कोचों की जगह जनरल कोचों की संख्या बढ़ाना चाहिए ताकि आम यात्रियों के लिए बैठने के लिए जगह मयस्सर हो सके। हमारे यहां आम तौर पर महिलाओं को बैठने की जगह देने की संवेदनात्मक परंपरा है। यदि सीटे ज्यादा होंगी तो महिलाओं के प्रति यह संवेदना का विस्तार हो सकेगा। साथ पुरूषों में महिलाओं के प्रति सम्मान बढ़ेगा। वास्तव में कानून या नियम नहीं बल्कि संवेदनाओं से चलने वाला समाज ही आदर्श बन सकता है। इसी तर्ज पर कई ट्रेनों को महिला लोको पायलट से लेकर गार्ड तक के लिए सौंपा जाना चाहिए ताकि संवेदनाओं की हवा ट्रेनों में यात्रियों तक पहुंच सके। जय हिंद….