Sunday, October 19

दलाई लामा हमारी आत्मा जैसे, चीन वैश्विक शरीर जैसा है

भोपाल। गत दिनों चीन के महत्वपूर्ण मंत्री ने यह कहकर संदेश देने का प्रयास किया है कि यदि भारत चाहे तो हिमालय भी दोस्ती को नहीं रोक सकता है। इसके मायने समझने वाले समझ गए है। कारण भारत और चीन की मैत्री दो महा राष्ट्रों की एक साथ बढऩे की कामना वाली है। जैसे अमेरिका और रूस दोस्ती की बातें करे तो उनके राष्ट्रीय अहं कब टकरा जाए, यह कहना मुश्किल है। भले ही भारत की विस्तार वादी नीति नहीं हो लेकिन चीन की विस्तार वादी नीति हमेशा वैचारिक और वैश्विक वैमनस्यता के रूप में दिखाई देने लगती है। इसलिए चीन कभी भी भारत के लिए भरोसेमंद साथी नहीं बन सकता है। चीन की दोस्ती किसी गुण्डे और सज्जन की दोस्ती जैसी है। यही हाल भारत और चीन का है। यहां यह बताना लाजिमी है कि जैसे कि संकेत मिले है, भारत सरकार ने चीनी दबाव के चलते दलाईलामा के कार्यक्रमों में हस्तक्षेप या परिवर्तन किया जा रहा है। यह दुर्भाग्य पूर्ण घड़ी कहीं जा सकती है। कारण दलाईलामा की वैचारिक शक्ति भारत से निकली है, वहीं चीन से नहीं। इस कारण दलाईलामा आरंभ से ही चीन के लिए अहं टकराव का विषय रहा है। ऐसे में भारत सरकार को दलाईलामा के बारे में विचार करने के लिए देश के अंदर विद्वानों, सुरक्षा सलाहकारों से सलाह लेना लाजिमी होगा, न कि चीन के दबाव को महसूस करने वाला। दबी हम वैश्विक स्तर पर चीन का मुकाबला कर सकेंगे।