भोपाल। आठ मार्च विश्व महिला दिवस के रूप में एक अवसर है कि हम अपनी मां को, अपनी बहन को, अपनी पत्नी को और अपनी बेटी को सम्मान देना सीखे। हमारा यह विचार विश्व साकार हो, इसका विस्तार समाज देश की सीमाओं को लांघकर विश्वव्यापी हो। तभी विश्व बंधुत्व कुटुम्बकमïï् और विश्व भगिनी कुटुम्बकम में तब्दील हो सकता है। समय-समय पर कवियों ने नारी की शक्ति को अपने विचारों में आकार दिया है। प्रसाद कहते है कि नारी केवल तुम श्रद्धा हो, विश्वास रजत पग तल में, पीयूष श्रोत सी बहा करो, अवनि और अंबर तल में। मैथलीशरण गुप्त कह उठते है नारी तेरी यहीं कहानी, आंचल में दूध और आंखों में पानी। वहीं आदर्श के मूर्तिकार कहीं दुर्गा, सरस्वती और लक्ष्मी के रूप में नारी को दिखाते है। लेकिन सब एक जगह चूक जाते है कि आदर्श में दिखना दिखाना एक बात है और यथार्थ में नारी का पलना दूसरी बात है। केवल यह तभी संभव है जब हम में यानि पुरूष में बुद्ध की करूणा का वास हो जाए तभी नारी का पलना पालना और पलने में मददगार हो सकता है। बाकी देश के आंकड़े दिखाते है कि लिंगानुपात क्या कह रहा है, बलात्कार, उत्पीडऩ की घटनाएं क्या बयां कर रही है। यह तो आदर्श की कहानी नहीं हो सकती है। यथार्थ की व्यर्थता भले ही हो। मां का ममत्व भाव केवल बेटियों में नहीं बल्कि बेटों में पल्लवित होना चाहिए तभी नारी शक्ति को असली शक्ति मिल पाएगी। याद रखे नारी की सुरक्षा का मुद्दा पुलिस, कानून और आत्मरक्षा के गुर सीखने भर से नहीं जुड़ा है बल्कि यह इतिहास से नहीं बल्कि वर्तमान में जीने वाले समान भावधारा, विचारों के सकारात्मक परिवर्तन से संभव होगा। आओ इस दिशा में एक पहल हम भी करें। मां तो मां होती है, जब ममता विश्व आकार ले…….।