Monday, October 20

राज्यसभा सभ्य लोगों का सदन या संसद में घुसपैठ का पिछला द्वार

भोपाल। हमारे देश में संविधान के मुताबिक संसदात्मक लोकतंत्र प्रणाली को अपनाया गया है। जिसके अनुसार दो सदन उच्च सदन यानि राज्य सभा और निम्र सदन लोकसभा को माना जाता है। यानि राज्य सभा जहां इंग्लेण्ड की तरह राजाओं यानि लार्डो बुद्धिजीवियों, विज्ञानियों एवं समाज का बौद्धिक क्षेत्र में प्रतिनिधित्व करने वाले लोगों को अपनी राय और मशविरा रखने का सदन माना जाता है। लोकसभा जनता द्वारा सीधे मतदान के जरिए भेजे जाने वाले राजनीतिक दलों के विजेता यानि सांसदों का सदन है। जिनके द्वारा देश की राजनीतिक, आर्थिक, सामाजिक, सुरक्षा, शिक्षा, विज्ञान विकास की संभावनाओं का कानून के रूप में सामने लााया जाता है। राज्य सभा की बौद्धिकता एवं लोकसभा की कर्मण्यता से देश का स्वरूप बनता है। लेकिन राज्य सभा जैसे जनता से नकारे, लेकिन राजनीतिक फायदे वाले लोगों को संसद तक पहुंचाने वाला पिछला गेट बन चुकी है। जहां भी लोकसभा की तरह ही अबौद्धिक और अनुपयोगी बहसे होती है। जहां भविष्य का दरबाजा नहीं खटखटाया जाता है बल्कि राजनीतिक दल अपने लिए उपयोगी लेकिन जनता के लिए अनुपयोगी व्यक्तियों को बिठाती है। अब फिर राज्यसभा के चुनाव होना है, राजनीतिक दल विधायकों के आंकड़ों के बिठाते हुए अपने पराजित सूरमाओं को राज्य सभा और फिर मंत्री मंडल तक पहुंचाने की कवायद करेंगे। इससे समाज को अलग और सुविधापूर्ण जिंदगी देने के लिए राजनीति से अलग पहचान बनाने वाले लोग राज्य सभा तक पहुंचेंगे। बल्कि ऐसे वे लोग पहुंचेंगे जो किसी खास राजनीतिक पार्टी के लिए अपनी उपयोगिता साबित करने में सक्षम होंगे।