भोपाल। दिल्ली में कचरे निष्पादन प्रणाली पर सवाल खड़े करते हुए राष्टीय हरित न्यायाधीकरण एनजीटी द्वारा सरकार से पूछा है। आखिर कदम क्यो ंनहीं उठाए जा रहे है। सवाल पूछना लाजिमी है, राज्य सरकार को जबाव देना भी लाजिमी होगा। कागजी पूर्तियां चलती रहेगी। क्योंकि जिस तरह गत वर्ष दिल्ली में डेंगू, चिकुनगुनिया जैसी बीमारियों का प्रकोप हुआ। उसके बाद मौसमी मार से दिल्ली वासी परेशान हुए। वह केवल वहां की परेशानी भर नहीं है। चाहे हमारा भोपाल हो या छोटे-छोटे उपनगर हर जगह कचरे का निष्पादन एक महत्वपूर्ण सवाल है। इस ओर दिल्ली ही नहीं बल्कि हर प्रदेश की सरकार ध्यान नहीं देती है और न ही नगर निगम और नगरपालिकाओं का रवैया दीर्घकालीन निष्पादन कला अपनाने का होता है। एक जगह जो किसी गांव की सरहद होती है, वहां कचरा फैंका जाता है, जब ग्रामीण और किसान परेशान होने लगते है और आवाज उठाई जाती है तो दूसरे गांव की सरहद को कचरा निष्पादन का ठिकाना बना लिया जाता है। इसी असफलता का नतीजा भोपाल के भानपुर कचराघर में हुई आगजनी की घटना है। इसी की निशानी दिल्ली में घूरे के पहाड़ों का ढहना और हुए नुकसान के रूप में देखा जा सकता है। इसके लिए दीर्घकालीन और व्यवस्थित नीति केन््रद से लेकर राज्य सरकारों और नगरीय निकायों तक बनाना समय की जरूरत है।
