Sunday, October 19

जिम्मेदारी लेना सीखें शासकीय विभाग,सरकारों पर सफेद हाथी न बने कर्मचारी

भोपाल। मामला चाहे मप्र शासन के कर्मचारियों को हो या केन्द्र शासन का थोड़े बहुत अंतर से दोनों ही सरकारों के मुलाजिम कागजी पूर्ति भर करने के कायल रहे है। समाज को कुछ अतिरिक्त देने की भावना इनके मन से तिरोहित है। यहीं कारण है कि हर कर्मचारी अपने विभाग में समय से पहुंचकर हस्ताक्षर करने से लेकर घर पहुंचने की आपाधापी में ज्यादा रहते है। इस मामले में केन्द्र सरकार के अधीन बैंकों की कार्यप्रणाली को देखा जाए या पोस्ट आफिस की कार्यप्रणाली सभी में शासकीय दबदबा कायम रखते हुए लिखित व्यवस्था को चलाने का काम हो रहा है। इस बीच सीधे जृडऩे वाली जनता की चिंता किसी को नहीं है। चिंता अलबत्ता वेतन आयोगों की अनुशंसाओं पर है, चिंता लाखों का वेतन पाने के बाद कितना ऐरियर मिलना है ओर अभी तक नहीं मिला है। बाकी जनता के कामों पर जैसे संविधान के सारे नियम लागू होते नजर आते है। नैतिकता जैसे गायब है और समय की पाबंदी या नियमों का दखल जनता के कामों में होता है। कुछ इसी तरह की कार्यप्रणाली मप्र शासन के सैकड़ों की संख्या में स्थापित विभागों में देखी जा सकती है। एक तो जिला मुख्यालय या अधिकतम तहसील मुख्यालयों में विभागों की गतिविधियां होती है, बाकी ग्रामीण अंचलों में विभागों की कार्यप्रणाली कार्यक्रमों, योजनाओं के कुछ पल क्रियान्वयन तक होती है। ऐसे में किसी भी जिले अन्तर्गत बसने वाली जनता को विभागों की सेवाओं के लिए जिला मुख्यालय तक पहुंचना पड़ता है। तब वह उस कार्य की परिधि में आता है। इसके बाद भी काम हो जाएगा, इसकी संभावना कम ही होती है। कारण जिला मुख्यालयों पर विराजमान कर्मचारी देवता या तो टेबिल पर मौजूद ही नहीं होते है, या फिर फाइलों के ढेरों के बीच दूसरी ही दुनिया में मशगूल होते है। कई विभाग केवल विधानसभा प्रश्र, चुनावी प्रक्रिया या नेताओं के आसपास से होने वाले कार्यो को प्राथमिकता के तौर पर करते दिखाई देते है। इसमें कलेक्टर से लेकर पूरा राजस्व अमला, सुरक्षा वाले मुद्दे पर पुलिस प्रशासन की कार्यप्रणाली नजर आती है। यदि ध्यान दिया जाए तो जिला मुख्यालयों पर कम से कम पचास और अधिकतम सौ विभाग भी कार्य कर रहे होते है। लेकिन चर्चा में केवल चार पांच विभाग राजस्व, पुलिस, नगरीय निकाय, शिक्षा और स्वास्थ्य विभाग ही आते है। बाकी के विभाग अपने कछवा कवच में समाते हुए  बिना चर्चा के काम कर रहे होते है। इनकी कार्यप्रणाली का मामला यह है कि इन विभागों में कब कर्मचारियों की नियुक्ति होती है यह भी जनता को पता नहीं चल पाता है। पदोन्नति, ट्रांसफर और अन्य मसलों की बात तो छोड़ ही दीजिए। फिर इनकी जानकारी यदाकदा मीडिया से मिल पाती है। इसलिए यह विभाग कम चर्चा अधिक खर्चा की तर्ज पर काम करते रहते है। जैसे परिवहन विभाग, खनिज विभाग, आबकारी, वन विभाग शासन के लिए राजस्व जुटाने वाले विभाग माने जाते है। जिसमें खाओं और खिलाओ, जब जरूरत हो तो काम दिखाओं की तर्ज पर चल रहे होते है। कृषि विभाग प्राकृतिक आपदाओं में ही जमीं पर दिखाई देता है। ऐसे में उम्मीद की जानी चाहिए कि सारे विभाग यदि पूरी तत्परता से जितना मिल रहा उतना ही काम करते जाए तो प्रदेश की व्यवस्था ठीक हो सकती है।