Sunday, October 19

मप्र की कब तक उधारी में विकास यात्रा कंगाली में उधारी की अमीरी शादी जैसा बजट

भोपाल। मप्र सरकार के माननीय जयंत मलैया जी ने लोक लुभावन बजट पेश करने का प्रयास किया है। यह मप्र की शिवराज सरकार के तीसरे कार्यकाल का आखिर बजट था। हमेशा की तरह फिर मांग उठी कि कर्मचारियों को कुछ नहीं दिया गया। किसानों को बजट में प्रावधान रखा, लेकिन अधिकांश वह वजट है जिसे समय पूर्व लागू किया जा चुका है, जैसे भावांतर योजना पर खर्च। आगामी चुनावों को देखते हुए माननीय वित्तमंत्री अपने आप को असहाय मानते हुए जोर लगाते दिखाई दिए है। कारण प्रदेश में जन्म लेने वाला बच्चा भी सरकारी नीतियों के कारण कर्ज में ही पैदा हो रहा है। बाकी जीवन तो उसका कर्जदार के रूप में बीतना ही है। गृहिणियों को राहत के नाम पर घर के मुखिया को अनायास मिलने वाली राहत इस बार गायब है। न तो पैट्रोल डीजल जीएसटी में आया न ही टैक्स कम हुए। ऐसे में यात्रा चाहे दुपहिया वाहन की हो या चार पहिया वाहन से महंगी होती रहेगी। इस बजट में वित्तमंत्री जी ने उल्लेख किया है कि मप्र सरकार पर उधारी बकाया होने के कारण बजट में ज्यादा प्रावधान रखना मुनासिब नहीं होगा। राजनीतिक दलों ने अलबत्ता अपने परपंरागत ढंग से सराहना और निंदा के शब्दाबलियों से बयानों के अंलकरण सजाए है। हम नहीं समझते कि अखबारों में छपने वाले और चैनलों पर चलने वाले नेताओं के बजट पर दिए बयानों को कोई गंभीरता से लेता है। हालाकि हालात तो ऐसे हो गए है, कि मुख्यमंत्री जी की घोषणाओं को भी पार्टी के लोग जो तालियां बजाकर या मेजे थपथपाकर अपना काम करते है, बाकी लोग गंभीरता से लेना बंद कर दिए है। शायद इसका भी परिणाम मुंगावली और कोलारस के परिणाम सामने आए है। यहां की जनता ने एक सांसद पूर्व महाराज की बात तो सुनी लेकिन असली महाराज मामा जी की बात को अनसुना कर दिया है। क्योंकि मामाजी ने प्रदेश को घोषणाओं के नाम पर काफी उधारी में ला दिया है। कर्ज तो चुकाना ही होगा। अगली सरकारों को और प्रदेश की जनता को महंगाई के रूप में।