भोपाल। जन्म और मरण परमात्मा का खेल भर है, इस बीच हम उसके दिए इशारो पर नाचते रहते है। यह एक आध्यात्मिक विचार भर है, लेकिन जब भी हम किसी अनहोनी को जीवन में घटित होते देखते है, तो यह विचार प्रभावी हो जाता है। बाकी जब हम भौतिक सुखों मेें लिप्त रहते है तो विज्ञान और अपने जीवन पर गर्व करते हुए जीते है। जिसका प्रभाव अन्य लोगों के जीवन पर पड़ता है लेकिन हम मूक रहकर या दूसरे की व्यर्थता का बोघ करते हुए गर्वित होते रहेते है। भारतीय फिल्म जगत आजादी के बाद से भारतीय समाज खासकर युवा वर्ग के लिए आदर्श के समान रहा है। फिल्मी हस्तियों जिन्हें सेलीब्रेटी कहा जाता है, युवाओं के लिए आधुनिक ढंग से जीने का बहाना बनते रहे है। यह हर समय होता रहा है, यही कारण है कि युवतियों के लिए हीरोईन तो युवकों के हीरों बोलने चालने से लेकर पहनावे और शारीरिक बदलाव का माध्यम यह सेलीब्रेटी होते रहे है। लेकिन जब इन्हीं आदर्शो में हमारी नजर में खोट दिखाई देता है तो वह भी देश के युवाओं के लिए जीन का संबल बनता रहा है। ऐसे में समाज को आदर्श में ढालने की व्यवस्था चरमराती दिखाई देती है।
यहां हम बात कर रहे फिल्म अभिनेत्री श्रीदेवी के निधन पश्चात उभरते सवालों की। जैसा कि दो दिन पहले हुई दुबई में उनकी मौत पर छाई धुंध सोमवार को साफ होती दिख रही है। जैसा कि बताया जा रहा है उनकी मौत हार्ट अटेक वह भी जब वे या तो नहा रही थी या पानी के टब के पास उपस्थिति थी, और वे टब में बेहोशी की हालत में गिर गई और उनकी मौत हो गई। संदेह और सवालों का सिलसिला लंबे समय तक चलता रहेगा। लेकिन जैसा कि पहले से विदित है कि चाहे फिल्मी हस्ती परवीन बाबी, दिव्या भारती और फिर ओम पुरी की मौत हुई और सवाल उठे और समय के साथ दफन हो गए। लेकिन व्यक्तिगत जीवन और मौत के बाद समाज के लिए जिस अंदेशे न ेआज घेरा है वह है श्री देवी के खून में अल्कोहल के अंश मिलना। यानि वे किसी न किसी परिस्थियों में अल्कोहल ले रही थी। जैसा कि स्वभाविक है कि इन सेलीब्रेटियों के जीवन में शराब जीवन चर्या का हिस्सा हो जाती है। उनके अनुसार समाज के युवा अल्कोहल की गिरफ्त में आ गिरते और भांति-भांति के दुखों के भागी बनते है।
श्रीदेवी की अभिनय क्षमता का लोहा एक समय में पूरे फिल्म जगत में नहीं बल्कि भारतीय समाज ने माना और उन्हें पहली फीमेल सुपर स्टार का तमगा दिया गया है। जिसके कारण उनके नाम से ही फिल्मों का चलना तय हो जाता था। हीरों प्रधान संस्कृति में पहली बार उन्होंने ऐसा कदम रखा कि एक महिला के नाम पर फिल्मों की लोकप्रियता एवं इनकम का ग्राफ ऊंपर नीचे हुआ। उनकी शख्शियत को देखते हुए भारत सरकार ने उन्हें पदमश्री पुरस्कार से नवाजा। जिसकी वास्तव मे ंहकदार थी। परमात्मा उनकी आत्मा को शांति प्रदान करे। बेतवांचल परिवार उनकी आत्म शांति के लिए शोक सहित श्रद्धांजलि व्यक्त करता है।
लेकिन सवाल यह उठ रहा है कि आखिर भारतीय समाज शराब का आदी होने के साथ ही इसे शर्म का नहीं बल्कि शान का प्रतीक मानने लगा है। इससे भारतीय युवा पीढ़ी पर पडऩे वाले प्रभाव का आंकलन समाजसेवियों, सेलीब्रेटियों और भारत सरकार को भी करना चाहिए। कहा जाता है कि सेलीब्रेटी या संपन्न संस्कृति मे ंप्रवेश कर चुके महानुभाव शराब को स्टेटस सिंबल और तनाव मुक्ति का कारण बताते हुए सेवन को महत्व देते है। लेकिन वे न केवल अपने व्यक्तिगत शरीर मन ओर आत्मा को कष्ट साध्य बना रहे होते है। वहीं कहीं न कही युवा पीढ़ी को भी इस दल-दल में धकेल रहे होते है। राजीव गौस्वामी के एक एलबम सुराही में वे गाते है कि हमने जी भरके पी, तुमने बिलकुल न पी, तुम भी मर जाओंगे हम भी मर जाएंगे। लेकिन बात यह कि क्या हम मरने के लिए ही जी रहे है। हम तो यहीं कहेंगे कि वो घबरा के कहते है कि हम मर जाएंगे, मरकर भी न पाया चैन तो किधर जाएंगे। इसके लिए सभी को अल्कोहल के अंश को दंश बनाने से रोकना बड़ी जिम्मेदारी है। रहा सवाल श्रीदेवी की मौत से उठने वाले परदों का तो वे तो समय के साथ उठते गिरते रहेंगे। लेकिन परवीन बाबी, दिव्या भारती, ओम पुरी के साथ कई टेलीविजन कलाकारों और अब पहली फीमेल सुपर स्टार श्रीदेवी की मौत के कारण क्या समाज के लिए सबक नहीं है। श्रीदेवी को एक बार फिर परम श्रद्धांजलि।