Sunday, October 19

जनता की चिंता किसी को भी नहीं सरकारी विभागों में तालाबंदी सी

विदिशा। विदिशा जिला मुख्यालय पर इन दिनों कलेक्ट्रेट के आसपास हड़ताली कर्मचारियों के तंबु लगे है। जिनके द्वारा अपनी मांगों को लेकर काम बंद कर विरोध का विगुल फूंका हुआ है। लोकतंत्र में अपनी मांगों को रखने का तरीका सही ठहराया जा सकता है। कर्मचारियों को भी हक है कि वे अपनी जायज मांगों को लेकर हड़ताल करे, काम बंद करे और धरना प्रदर्शन कर सरकार पर अन्याय रोकने के लिए दबाव बनाए। लेकिन जिस जनता के पैसे सरकारों के हाथों फिर कर्मचारियों के पास मोटे वेतन के रूप में पहुंचते है। क्या उस जनता के हितों को नजर अंदाज करना न्याय संगत है। क्या जनता के कामों से निश्चित समयावधि में करना इनका दायित्व नहीं है। ध्यान रहे कि कम्प्यूनिष्ट रूस में वहां के मजदूर और कर्मचारी चाहे कम्प्यूनिज्म के पुरोधा लेनिन की जयंती हो दो घंटे अधिक काम कर देश के लिए समर्पित कर देते थे। जापान जैसे देश में वहां के कर्मचारी और जनता के कारण ही देश का विकास और समृद्धि तय होती है। लेकिन भारत ही ऐसा देश है जहां मांगों को मनवानेे के लिए जनता को सताने की प्रवृत्ति देखी जाती है। इसमें सरकार की भी बड़्ी गलती है कि वह जायज मांगों को समय रहते मानती क्यों नहीं वहंी नाजायज मांग करने वालों पर दण्ड का चाबुक क्यो ंनहीं चलाती है।
इन दिनों आंगनबाड़ी कार्यकर्ताओं, संविदा स्वास्थ्य कर्मचारियों और जिला सहकारी कर्मचारियों की हड़ताल जारी है। इसके पहले संविदा शिक्षकों और पटवारियों ने हड़ताल कर प्रशासन को झु़काने का प्रयास किया। लेकिन राजनीतिक दल, प्रशासन, नौकरशाही, समाजसेवी सहित बुद्धिजीवी वर्ग इस बात पर गौर नहीं कर रहे है कि आखिर उनकी मांगों को मनवाने के तरीके से जनता का कितना नुकसान हो रहा है। जहां शासकीय कामों के लिए किसान मजदूर सहित अन्य उपभोक्ता भटकते रहते है। इतने समय में वे घर का काम करे तो जीवन स्तर को उठाने का काम कर सकते थे। लेकिन वे विभागों के चक्कर लगा रहे है। वैसे भी बिना भ्रष्टाचार के जनता का काम नहीं होता है। इससे सभी वाकिफ है, लेकिन कभी जनता की सुनवाई नहीं होती है। फिर वहीं कर्मचारी संगठन के स्तर पर आंदोलन का मार्ग पकड़ लेते है। और जनता का नुकसान होता है। क्यों न इस पर नीति तय हो कि जिनको आंदोलन करना है वे अपना वेतन कटवाकर अंादोलन करें। यदि सरकार सही मांगो ंको समय से नहीं सुनती है तो वह कर्मचारियों को डबल वेतन देकर मांग पूर्ति करें। लेकिन चुनावी साल में अड़ी बाजी का खेल को रोकना ही होगा। इसके लिए सरकार राजनीतिक दल की नहीं बल्कि प्रदेश सरकार को सोचना होगा। क्यों न कर्मचारियों को पुलिस और सेना की तर्ज पर आंदोलन की स्वीकृति को बंद करना होगा। तभी जनता को उसका हक मिल सकेगा।