Saturday, October 18

जहां कभी डर था, वहां अब सेल्फी है; पहलगाम-श्रीनगर में देर रात तक रौशनी

श्रीनगर का दिल लाल चौक, युद्ध के दौरान सबसे ज्यादा खामोश था। दिन ढलते ही अंधेरे और आशंका दोनों उतर आते थे। शाम 7 बजे जो जगह सुनसान हो जाती थी, वो अब रात 11 बजे तक रौशन है।

लाल चौक पर रात 11 बजे भी कैमरे के फ्लैश चमक रहे हैं। पांच हफ्ते पहले यहां खामोशी की चादर ने सन्नाटा ओढ़ लिया था। पहलगाम, जहां अप्रैल की गोलीबारी के बाद जिंदगी थम सी गई थी, अब फिर से पर्यटकों की आवाजाही से सब कुछ पटरी पर लौटता दिख रहा है। पहलगाम से लेकर गुलमर्ग तक, श्रीनगर से लेकर सोनमर्ग तक पर्यटक लौट रहे हैं और उनके साथ लौट रहा है घाटी का खोया हुआ आत्मविश्वास। 22 अप्रैल को हुए पहलगाम आतंकी हमले ने कश्मीर की रगों में दौड़ते पर्यटन को पलभर में जकड़ लिया था। ऑपरेशन सिंदूर के दौरान चप्पे-चप्पे पर सुरक्षा बढ़ी, बाद में घाटी धीरे—धीरे डर के साए से निकलने लगी। सीजफायर के 51 दिन बाद कश्मीर में फिर से रौनक लौटने लगी है। रेस्टोरेंट खुल चुके हैं, मार्केट में लोगों की भीड़ है, घाटी में पर्यटकों के जोश ने गोली के डर को मिटा दिया है।

श्रीनगर का दिल लाल चौक, युद्ध के दौरान सबसे ज्यादा खामोश था। दिन ढलते ही अंधेरे और आशंका दोनों उतर आते थे। शाम 7 बजे जो जगह सुनसान हो जाती थी, वो अब रात 11 बजे तक रौशन है। वहां अब लोग टहलते हैं, सैलानी फोटो खिंचवाते हैं। दुकानों के शटर अब देर रात तक खुले रहते हैं। सुरक्षा की मौजूदगी अब बैकग्राउंड में है, सेल्फी फ्रेम में नहीं। जे एन गुप्ता लखनऊ के रहने वाले हैं। पिछले एक हफ्ते से परिवार के साथ श्रीनगर टूर पर आए हैं। उनका कहना है कि यह आतंक के आकाओं को जवाब है, हम कश्मीर नहीं, अपने घर , अपना देश घूमने आए हैं।

गौरव, राजू और कुंदन झा, बिहार में पटना के रहने वाले हैं। दोस्तों के साथ ग्रुप में कश्मीर घूमने आए हैं। आने के बाद कैसा लग रहा है? इस सवाल का जवाब देते हुए बताते हैं कि डर नहीं लगा। यहां की वादियों को सिर्फ अभी तक फिल्मों में देखा था। अब सामने देखकर अलग ही रोमांच आता है। हम नहीं आएंगे तो फिर कौन आएगा। फॉरेन टूरिस्ट भी तो हमें देख कर ही आएंगे। हां, कुछ लोग अभी पहलगाम नहीं जा रहे हैं लेकिन गुलमर्ग और सोनमर्ग जाने वालों की संख्या बढ़ गई है।

पहलगाम की घाटी में पर्यटकों की चहल-पहल एक बार फिर से शुरू हो गई है। 20 दिनों से मार्केट में रेस्टोरेंट, घाटियों में गूंजती कैमरे क्लिक की आवाज, मैगी के स्टालों पर लगी कतारें और पार्कों में लोगों की चलती बेखौफ फैमिली पार्टी यह सब बताने के लिए काफी है कि भय की गिरफ्त अब ढीली पड़ चुकी है और पर्यटकों का जोश हाई है। कुपवाड़ा के रहने वाले मोहम्मद इकबाल सेफ कहते हैं, ‘पिछले 20 दिनों से दुकानें और मार्केट खुलने लगे हैं। अब पहलगाम में, टूरिस्ट, नौकरी और उम्मीद तीनों की वापसी हुई है।”

3 जुलाई से बाबा बर्फानी के दर्शन के लिए अमरनाथ यात्रा शुरू होने वाली है। हजारों श्रद्धालु अमरनाथ यात्रा के लिए घाटी की ओर रुख करेंगे। यह यात्रा धार्मिक यात्रा के साथ-साथ कश्मीर की इकोनॉमी में भी इजाफा करती है। सेना, पैरामिलिट्री फोर्स की कड़ी सुरक्षा व्यवस्था के बीच यात्रा शुरू होने वाली है।

बैसरन घाटी को अभी भी आम आवाजाही के लिए बंद रखा गया है। यह वो इलाका है, जिसे अक्सर ‘मिनी स्विट्जरलैंड’ कहा जाता है, फिलहाल यहां सन्नाटा है। स्थानीय लोगों के मुताबिक सुरक्षा एजेंसियां इसे अभी ‘सेंसिटिव जोन’ मान रही हैं और अगला निर्णय उच्च स्तरीय समीक्षा के बाद ही लेंगी।