
बिहार में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी, कांग्रेस नेता राहुल गांधी, मुख्यमंत्री नीतीश कुमार समेत सत्ताधारी व विपक्षी दलों के नेता ‘हुंकार’ भर चुनावी एजेंडा सेट करने में जुट गए हैं। वहीं बिहार की जनता को विधानसभा चुनाव का बेसब्री से इंतजार है। इस बार का चुनाव वैसे भी खास रहने वाला है। वजह है, ऑपरेशन सिंदूर, एनडीए व इंडिया ब्लॉक में सीधी टक्कर और चुनावी रणनीतिकार से नेता बने प्रशांत किशोर की चुनावी घमासान में सीधे तौर पर एंट्री।
पिछले महीने पीएम मोदी ने की थी दो बड़ी सभाएं
दरअसल, बिहार में विधानसभा चुनाव के लिए सियासी पिच तैयार होने लगी है। प्रधानमंत्री मोदी ने पिछले एक महीने के दौरान दो बड़ी सभाएं बिहार में की है। मोदी पाकिस्तान की ओर से किए गए आतंकी हमले और जवाबी ऑपरेशन सिंदूर को लेकर आक्रामक भी रहे हैं। मोदी किसी भी हालत में एनडीए को बिहार का चुनाव जिताना चाहते हैं।
राहुल गांधी ने जातिगत जनगणना और आरक्षण पर दिया जोर
वहीं कांग्रेस नेता राहुल गांधी भी न्याय संवाद जैसे कार्यक्रमों के साथ लगातार बिहार जा रहे हैं। राहुल का जोर रोजगार के साथ जातिगत जनगणना और आरक्षण की सीमा 50 फीसदी से अधिक करने पर है।
नीतीश कुमार : दबदबा कायम रखने की चुनौती
मुख्यमंत्री नीतीश कुमार का दबदबा पिछले 20 साल से बना हुआ है। नीतीश के सामने खुद को इस बार अपने दबदबे को साबित करने की बड़ी चुनौती है। नीतीश की सेहत को लेकर भी सवाल खड़े होते रहे हैं। इस बीच जेडीयू समर्थक नीतीश के बेटे निशांत कुमार को आगे बढ़ाने में जुटे हुए हैं। बिहार में कई जगह जेडीयू के होर्डिंग्स व पोस्टरों में निशांत को प्रमुखता से स्थान मिल रहा है।
ऑपरेशन सिंदूर के बाद पहला चुनाव
पहलगाम आतंकी हमले और ऑपरेशन सिंदूर के बाद देश का पहला चुनाव बिहार में होगा। जिस तरह से भाजपा ऑपरेशन सिंदूर को लेकर सेना के साथ पीएम मोदी को श्रेय देने का नैरेटिव सेट कर रही है, लगता है कि बिहार के चुनाव में यह प्रमुख मुद्दा बनेगा। यह अलग बात है कि चुनाव में इसका कितना फायदा भाजपा और एनडीए को मिलेगा। वहीं कांग्रेस व राजद ऑपरेशन सिंदूर को मुद्दा बनाना गलत बता रहे है।
सीटों का बंटवाराः हर गठबंधन में उलझन
एनडीए में भाजपा, जद (यू), एलजेपी रामविलास, हिंदुस्तानी अवाम मोर्चा और राष्ट्रीय लोक मोर्चा जैसे दल है। 243 सीटों वाले बिहार में सीटों का बंटवारा करना एनडीए के लिए आसान नहीं होगा। वहीं इंडिया ब्लॉक में कांग्रेस, राजद, विकासशील इंसान पार्टी व वामपंथी दल शामिल है। इस बार कांग्रेस अधिक सीटों पर लड़ने के प्रयास में है। इसके चलते सीटों का बंटवारा उलझन भरा होगा। मुख्यमंत्री चेहरे को लेकर भी दोनों ही गठबंधनों में सवाल उठते रहे है।
पीके खुद के लिए बना पाएंगे सफल रणनीति?
भाजपा, टीएमसी समेत कई अन्य दलों के रणनीतिकार रह चुके प्रशांत किशोर (पीके) बिहार के विधानसभा चुनाव में जनसुराज पार्टी के माध्यम से चुनावी राजनीति में कूदने जा रहे हैं। देशभर की निगाह इस बात पर है कि जातिगत चुनावी चक्रव्यूह के बीच क्या पीके खुद के लिए सफल चुनावी रणनीति बना पाएंगे।