
भले ही हम सांप को दूध पिलाकर उसकी प्रवृति बदलने की कोशिश करते हों पर वह अपने मूल स्वभाव को नहीं छोडता। यही हाल कश्मीर में रह रहे कश्मीरी मुसलमानों का है। वह भारत की भूमि का अन्न खाते हैं, भारत की मदद पर निर्भर रहते हैं, भारत के पर्यटन पर गुजरबसर करते हैंऔर गाना पाकिस्तान का गाते हैं। जिन सैनिकों ने अपनी जान की बाजी लगाकर दिन और रात एक करके भीषण बाढ़ से निकालकर नया जीवन देने के बाद भी ये कश्मीरी उन पर पत्थर और गोलियां बरसाते हैं।
हाल ही में आतंकवादी घटना में शहीद हुए कर्नल राय को जिस तरह से धोखे से मारा है वह इन कश्मीरियों की मानसिकता को दर्शता है। धोखे से हमला करना इनकी फितरत सी बन गई है। आतंकवादी के जनाज़े में कश्मीरी मुसलमानों की शिरकत ने यह साबित कर दिया कि यह उसी नाग की तरह हैं जिसे दूध पिलाने से अमृत निकलने वाला नहीं हैं। यह तो हमारी संस्कृति है जो इन नागों को भी हम दूध पिलाने में लगे हुए हैं जबकि इतिहास साक्षी है कि राजा हरिसिहं के साथ कश्मीरी सैनिकों ने कैसे धोखा दिया था और उस धोखे के परिणामस्वरूप आज कश्मीर के हालात से हम जूझ रहे हैं। काश समय रहते हमारे राजनेताओं ने तुष्टिकरण की रणनीति न अपनाई होती तो आज ये दिन नहीं देखने पड़ते पर इतिहास की गलतियों से हमें सबक लेना चाहिए और इस तरह की मानसिकता वाले लोगों पर कठोर कार्रवाई करनी चाहिए। जिससे आने वाली नस्ल भी सबक ले सके। नहीं तो इसी तरह हम विश्वासघातियों के द्वारा परास्त होते रहेंगें।
इतिहास की गलतियों को आखिर हम कब तक दोहराते रहेंगे। यह प्रश्र हर बार उस समय खडा दिखाई देता है जब हम इस तरह की घटनाओं का सामना करते हैं यह पहला मौका नहीं है कि जब कश्मीर की आवाम ने किसी आतंकवादी को शहीद कहा हो ऐसी कई घटनाएं कश्मीर घाटी के अंदर घटती हैं जिससे भारत के स्वाभीमान को ठेस पहुंचे। हम यह जानते है कि कश्मीर घाटी में किसी भी तरह की गतिविधि भारत के द्वारा यदि की जाती हेै तो उसका अंतरराष्ट्रीय महत्व होता है पर हमें यह भी नहीं भूलना चाहिए कि भारत के स्वाभीमान से बढकर कुछ भी नहीं है क्योंकि विगत दिनों आईएसआई के झंडे घाटी के अंदर लेहराए गए उससे यह साबित होता है कि घाटी में रहने वाला मुसलमान भारत की भूमि के साथ छल करता है कहीं न कहीं उसके मन में भारत से प्रेम नहीं है पर दु:ख की घड़ी में वह भारत के आगे हाथ फैलाता है पर समझना भारत सरकार को है। ऐसे लोगों के साथ कैसा व्यवहार किया जाए।