Monday, September 22

एक संत जो आज भी है युवाओं के आदर्श -स्वामी विवेकानंद

betwaanchal news
betwaanchal news

“उठो, जागो और लक्ष्य पाने तक मत रूको।” करीब डेढ़ सौ साल पहले लिखा स्वामी विवेकानंद का ब्रह्म वाक्य आज युवाओं को आगे बढ़ने का हौसला देने के लिए काफी है।

प्राचीन भारत से लेकर आज तक यदि किसी शख्सियत ने भारत के हर युवा को प्रभावित किया है तो वो है स्वामी विवेकानंद। एक ऎसा व्यक्तित्व, जो डेढ़ सौ साल बाद भी युवाओं की ताकत है उनका आदर्श है। उनके कहे अनमोल वचन आज भी युवाओं में जोश भरने का काम करते हैं। उन पर लिखे साहित्य का एक-एक शब्द जोश और हिम्मत का पर्याय है। गुरूदेव रवीन्द्रनाथ टैगोर कहते थे कि यदि आप भारत को जानना चाहते हैं तो विवेकानन्द को पढिए। उनमें आप सब कुछ सकारात्मक ही पाएंगे, नक ारात्मक कुछ भी नहीं। देश के कल्याण और स्वयं को ऊर्जावान बनाने के लिए हर युवा को विवेकानंद साहित्य जरूर पढ़ना चाहिए। उनके अनमोल वचन और बोध कथाएं हर किसी को राष्ट्रहित के लिए कुछ कर गुजरने और खुद का आत्मविश्वास बढ़ाने के लिए प्रेरित करती हैं। उनका साहित्य सकारात्मकता सोच बढ़ाने का सबसे बड़ा स्रोत है।

असाधारण और प्रेरक थे स्वामी विवेकानंद

एक बेहतर कम्युनिकेटर, प्रबंधन गुरू, आध्यात्मिक गुरू, वेदांतों का भाष्य करने वाला संन्यासी, धार्मिकता और आधुनिकता को साधने वाला साधक, अंतिम व्यक्ति की पीड़ा और उसके संघषोंü में उसके साथ खड़ा सेवक, देशप्रेमी, कुशल संगठनकर्ता, लेखक-संपादक, आदर्श शिष्य जैसी न जाने कितनी छवियां स्वामी विवेकानंद से जुड़ी हैं। हर छवि में वे अव्वल नजर आते हैं। देश का नौजवान आज भी उन्हें अपना हीरो मानता है। कोई डेढ़ सौ साल से भी पहले कोलकाता में जन्मे विवेकानंद और उनके विचार अगर आज भी प्रासंगिक बने हुए हैं तो समय के पार देखने की उनकी क्षमता को महसूस कीजिए, उनके भावों में बहकर देखिए।

स्वामीजी का युवाओं को संदेश
आत्मविश्वास है कामयाबी की सीढ़ी: 
स्वामीजी कहते थे कि आज के दौर में नास्तिक वह है, जिसे खुद पर भरोसा नहीं, न कि वह जो भगवान को न मानें। उनके अनुसार वह व्यक्ति सफल है, जिसे खुद पर विश्वास हो।
रहें आशावादी: स्वामीजी हमेशा युवाओं को सकारात्मक सोच के साथ प्रसन्न रहने के लिए प्रेरित करते थे। उनका मानना था कि आशावादी सोच हो तो समस्याएं संबल बन जाती हैं।
पुरूषार्थी बनें, भाग्यवादी नहीं: स्वामीजी के अनुसार किस्मत भी उन पर ही मेहरबान होती है, जो खुद कुछ करने की कुव्वत रखते हैं। भाग्य के भरोसे न बैठें, बल्कि पुरूषार्थ यानी मेहनत के दम पर खुद की किस्मत बनाएं।
देशहित के लिए भी सोचें: विवेकानंद का मानना था कि स्वहित के साथ हर उस काम को प्राथमिकता दें जिसमें राष्ट्रहित हो, देशहित में ही स्वहित समाहित होना चाहिए। courtesy patrika