गुजरात। उत्तर गुजरात के पाटण की प्राचीन नक्काशीदार रानी की वाव वल्र्ड हेरिटेज की सूची में शामिल हो गई। कतर की राजधानी दोहा में जारी संयुक्त राष्ट्र, शैक्षिक, वैज्ञानिक और सांस्कृतिक संगठन की विश्व विरासत समिति के 38वें सत्र में रविवार को इसकी घोषणा की गई। गौरतलब है कि इससे पहले वर्ष 2004 में पंचमहल जिले में स्थित चांपानेर पावागढ़ किले को भी यूनेस्को विश्व विरासत सूची में शामिल किया जा चुका है। इस सात मंजिला बावड़ी का निर्माण 1022 से 1063 ई की अवधि में हुआ। तत्कालीन राजवंश की रानी उदयमति ने पति भीमदेव की याद में इसका निर्माण करवाया था। यह बहुमूल्य धरोहर सात शताब्दियों तक गाद में दबी रही। इसके बाद भारतीय सर्वेक्षण विभाग ने इसे अनूठे ढंग से संरक्षित किया है। यूनेस्को ने इस वाव को तकनीकी विकास का एक ऐसा उत्कृष्ट उदाहरण माना है, जिसमें भूमिगत जल के उपयोग तथा जल प्रबंधन की बेहतरीन व्यवस्था है। रानी की वाव के अलावा दक्षिण कोरिया की नामहंसानसियोंग चीन की ग्रंाड कैनाल और सिल्क रोड को भी विश्व धरोहर में शामिल किया गया है।
सोलंकी राजवंश की रानी उदयमति ने पति भीमदेव की याद में करवाया था इसका निर्माण: रानी की वाव स्मारक वास्तुकला का वह बेजोड़ नमूना है, जो आधुनिक इंजीनियरिंग की दुनिया को भी आश्चर्यचकित कर सकता है। इसका निर्माण 10-11वीं सदी में सोलंकी राजवंश की रानी उदयमति ने पति भीमदेव की याद में करवाया था। यह प्रेम का प्रतीक कहलाती है। राजा भीमदेव सोलंकी वंश के संस्थापक और शासक थे। उन्होंने वडनगर पर 1021-1063 ई तक शासन किया। करीब 64 मीटर लंबी और 20 मीटर चौड़ी यह बावड़ी 27 मीटर गहरी है। ज्यादातर सीढ़ी युक्त कुओं में सरस्वती नदी के जल के कारण कीचड़ भर गया है। निर्माण कार्य में नक्काशीदार पत्थरों का प्रयोग किया गया है। अभी भी वाव के खंभे और उन पर उकेरी गई कलाकृतियां सोलंकी वंश और उनके वास्तुकला के चमत्कार के समय में ले जाती है।
भगवान विष्णु को समर्पित है नक्काशियां: वाव की दीवारों और स्तंभों पर अधिकांश नक्काशियां, राम, वामन, महिषासुरमर्दिनी, कल्कि आदि जैसे अवतारों के विभिन्न रूपों में भगवान विष्णु को समर्पित हैं। मूल रूप से बावड़ी सात मंजिल की थी, किंतु इसकी पांच मंजिलों को ही संरक्षित रखा जा सका है। रानी वाव की बनावट विशिष्ट श्रेणी की है। इसकी सीढिय़ां सीधी हैं, लेकिन इस पर बनी कलाकृतियां अपने आप में अनूठी हैं। सीढिय़ों पर बने आलिए तथा मेहराब हालांकि अब टूट-फूट चुके हैं, लेकिन फिर भी वे तत्कालीन समय की समृद्ध कारीगरी के दर्शन करवाते हैं। वाव की दीवारों पर लगी कलात्मक खूटियां भी दिलकाश हैं।
30 किलोमीटर लम्बी सुरंग भी थी: इस वाव मे एक छोटा द्वार भी है, जहां से 30 किलोमीटर लम्बी सुरंग निकलती है। हालांकि अब यह अब पत्थरों व कीचड़ से अवरोधित हो गई है। इसके बारे में ऐसा भी कहा जाता है कि इसे रानी उदयमती ने ही बंद करवा दिया था। यह सुरंग पाटण के सिद्धपुर शहर को निकलती है। सुरंग का निर्माण पराजय के दौरान भागने के लिए करवाया गया था। सुरंग का निर्माण भी इस तरह किया गया था कि इसकी जानकारी सिर्फ रानी और उनके विश्वस्त सैनिकों को ही थी। यानी की महल पर कब्जा होने के बाद भी दुश्मन उनकी तलाश कर पाने में असमर्थ थे।
महेसाणा जिले से 25 मील दूर स्थित पाटण प्राचीन समय में गुजरात की राजधानी हुआ करती थी। भीमदेव प्रथम और सिद्धराज जयसिंह जैसे प्रतापी शासकों की वजह से पाटण का न सिर्फ वैभव बढ़ा बल्कि ऐतिहासिक पुस्तकों में इसका नाम बार-बार आता है।