Thursday, October 23

कष्ट दायक जीवन से मुक्ति का खुला द्वार मेडीकल बोर्ड की अनुमति से हटाए जा सकेंगे जीवन रक्षक साधन

भोपाल। इच्छा मृत्यु शब्द सुनते ही दो तरफा भावों का घेरा मन को घेर लेता है। इस बात को लेकर दुनिया में लंबे समय से बाद-विवाद होते रहे है। क्या व्यक्ति को इच्छा से जीवन त्यागने का अधिकार दिया जाना चाहिए या नहीं। यहां बात आत्म हत्या की नहीं हो रही है बल्कि उन परिस्थितियों की हो रही है जब जीवन मृत्यु से ज्यादा भयावह न केवल उस खुद व्यक्ति के लिए बल्कि समाज के लिए होने लगे।  तब की परिस्थितियों में इच्छा मृत्यु को स्वीकार लेना चाहिए या नहीं। इस पर मेडीकल साइंस और न्यायिक व्यवस्था में समान रूप से वाद विवाद चलता रहा है। जहां जीवन के पक्षधर या इच्छा मृत्यु की खिलाफत करने वाले साइंस के तौर पर यह कहते रहे है कि शायद जिस असाध्य रोग से पीडि़त व्यक्ति को आज इलाज संभव नहीं हो रहा है क्या कल साइंस की प्रगति के साथ इलाज मुहैया न हो सकेगा। ऐसे में समय पूर्व ही व्यक्ति को इच्छा मृत्यु देकर हम एक प्रकार से हत्या में ही सहयोगी हो रहे है। वहीं इच्छा मृत्यु के पक्षधर लोग उन लोगों के जीवन को आधार बनाकर इच्छा मृत्यु पर बल देते रहे है कि जो केवल अस्पतालों में असाध्य बीमारियों से ग्रसित होकर केवल स्वभाविक मृत्यु का इंतजार कर रहे है। उन्हें इच्छा मृत्यु की आज्ञा दी जानी चाहिए कारण उनके जीवन का मूल्य न केवल उनके लिए बचा रह गया बल्कि परिजनों, समाज और पूरी व्यवस्था के लिए व्यर्थ हो चुका है।
आखिरकार लंबी बहस और इंतजार के बाद सुप्रीम कोर्ट ने किसी भी व्यक्ति की इच्छा मृत्यु पर स्वीकृति के लिए मेडीकल बोर्ड की अनुमति पर देने की इच्छा पर मुहर लगा दी है। यहां गौरतबल है कि कई अस्पतालों में हादसों में मृत प्राय: मरणासन्न अवस्था में वर्षो से मृत्यु का इंतजार कर रहे है। चिकित्सा विज्ञान उनको मृत्यु की पीड़ा से बचाने के लिए उन्हें यंत्रों के सहारे जिंदा रखे हुए है। या केवल मृत सर्टीफिकेट देने की कवायद भर नहीं कर रहा है। बाकी उनका जीवन न तो उनके लिए न ही समाज के लिए उपयुक्त बचा रह गया है। इनको इच्छा मृत्यु की वकालत कर सुप्रीम कोर्ट ने सार्थक बहस पर विराम लगाया है।