भोपाल। जब भी देश में कोई बड़ा घोटाला सामने आता है, और उसके तार राजनीतिक गलियारे से जुड़ते है। निश्चित ही एक सप्ताह के भीतर कोई ऐसा सिगुफा छेंड़ दिया जाता है, ताकि पूरी मीडिया को काम मिल सके और जनता का ध्यान मुख्य घोटाले से हटकर दूसरी ओर केवल और केवल चर्चाओं में बंट सके। शायद इन दिनों पीएबी घोटाले के साथ पूर्व वित्तमंत्री कार्ति चितंबर वाले घोटाले के उछलने और कार्यवाही का समय था, लेकिन त्रिपुरा जीत के उन्माद में भाजपा कार्यकर्ताओं की कथित मूर्ति भंजक प्रतिक्रिया ने समय की विचारधारा को एक बार फिर से बदल दिया है। पूरी मीडिया का ध्यान त्रिपुरा से होते हुए दक्षिण के पेरियार की प्रतिमा भंजन और फिर मैरठ में अंबेडकर की प्रतिमा भंजन पर लगा हुआ है। सभी दलों के माननीयों के साथ लंबी चर्चाओं का दौर मीडिया का प्रमुख शगल हो चुका है। इन दिनों नीमो को तवज्जों नही है। माल्या, ललित मोदी और अब कार्ति चितंबर पर किसी का ध्यान नहीं है। देश एक बार फिर मूर्ति भंजन क्रिया में उलझ गया है। गौ वंश बचाना, वंदे मातरम कहलाना, लव जिहाद, भारत माता की जय के साथ राम मंदिर बनाने से जैसे कई मुद्दे भाजपा के लिए जनता का ध्यान बंटाने वाले होते है। वहीं दलित अत्याचार, महिला अत्याचार, अहिष्णुता और देश की संस्थाओं का भगवाकरण विपक्ष का हथियार बन जाते है। मीडिया को पर्याप्त मसाला मिल जाता है। ताकि एक सप्ताह तक मामले को खींचा जा सके साथ ही नये मुद्दों की तलाश और पुराने घोटालों पर पर्दा डाला जा सके।