भोपाल। त्रिपुरा में चुनाव के दौरान जनता ने एक विचारधारा को अस्वीकार किया और दूसरी विचारधारा को स्वीकार करते हुए लोकतंत्र को संबल प्रदान किया। ऐसा होना स्वभाविक एवं लोकतंत्र की मजबूती में जनता का सहयोग माना जाएगा। लेकिन चुनाव जीतने के बाद किसी भी दल के कार्यकर्ताओं ने जिस तरह का व्यवहार किया वह प्रतीत होता है कि लोकतंत्र में विचारधारा की जीत नहीं कही जा सकती है, बल्कि किसी खास विचारधारा की हत्या कहीं जाएगी। ऐसे में यह सफल और सुफल लोकतंत्र के हित में बात नहीं है। किसी विचारधारा से सहमत होना या न होना एक बात है, लेकिन दूसरी विचारधारा को मिटाने का प्रयास करना सही नहीं माना जा सकता है। इस पर चिंतन और विचार होना चाहिए। यह समय की आवश्यकता भी है और लोकतंत्र की सफलता के लिए जरूरत भी।