भोपाल। पूर्वी राज्यों त्रिपुरा, मेघालय और नागालेण्ड में हुए चुनावी परिणामों पर नजर डाले तो अब जनता बदलाव चाहती है। सभी को मौका देकर वह परखना चाहती है। जातीय, धार्मिक और कथित राष्ट्रभक्ति की धारा पर जनता की मुहर नहीं है। बल्कि बदलाव की बयार है। राजस्थान, मप्र के उपचुनावों में विपक्ष की जीत और नितांत पूर्वी राज्यों जहां पर कई दशक से सरकार में जमी पार्टियों को जनता ने यह सोचने मजबूर कर दिया है कि आज की प्रगति केवल सड़क बिजली या पानी देने तक सीमित नहीं रही है। बल्कि युवा पीढ़ी को आत्मनिर्भर बनाने के साथ तकनीकी और रोजगार के क्षेत्र में संबल देने वाली प्रवृत्ति है या नहीं है। यदि देखा जाए तो स्थानीय पार्टियों, कम्यूनिष्ट और बहुद हद तक कांग्रेस से जनता का मोहभंग हुआ है। हाल फिलहाल केन्द्र शासित भाजपा की मोदी सरकार के वादों को परखने के साथ जनता अपने हित में किए जाने वाले कामों को भी देखना चाहती है। यहीं कारण है कि लोकसभा के बाद यूपी और अब त्रिपुरा के चुनाव इस बात को लक्षित है कि एक बार तुम भी पूर्ण बहुमत के साथ राज्य करलो ताकि बाद में यह सवाल न उठे कि हमारे पास बहुमत की सरकार न होने के कारण ऐसा नहीं कर सके। एक बात ध्यान देने वाली है कि अभी तक राष्ट्रीय दल भाजपा को ही सत्ता संभालने का पूरा मौका नहीं मिल सका है। यहीं कारण है कि इस बार जनता भाजपा को पूरा मौका देना चाहती है। गुजरात जहां पर भाजपा की सरकारें रही है, वहां जनता ने चेतावनी भी दी है कि आगे से ऐसा नहीं चल सकेगा। तुम भले ही कहो देश को कांग्रेस मुक्त करना है, लेकिन जनता जानती है कि कब किसी दल को कितना मौका दिया जाना है। मेघालय में स्पष्ट बहुमत न होने के कारण सत्ता की खींचतान फिर से विधायकों की खरीफ फरोख्त में बदलेगी। जहां तक है भाजपा इसम मामले में कांग्रेस को पीछे छोडऩे वाली है, जैसा कि उसने गोवा में यह करिस्मा कर दिखाया है।
एक बात ओर ध्यान देने वाली है कि जिस राजनीतिक अनैतिकता की शुरूआत की थी, वह अब चरम पर पहुंचने लगी है। कांग्रेस को भाजपा उसी के अनैतिक हथियारों से परास्त करती दिखाई दे रही है। जिसमें भाजपा के द्विनेता नरेन्द्र मोदी और अमित शाह किसी से पीछे नहीं रहना चाहते है। वाचालता में वे पहले से ही किसी के पीछे नहीं है बल्कि कुछ ज्यादा ही आगे है। लेकिन जहां कांग्रेस को यह चेतावनी समझना होगी कि उसके द्वारा पहले फैंके अनैतिकता के प्यादे अब उसके वजीरों को खाने लगे है। बार-बार राजा बदलने से जीतना संभव नहीं है। कांग्रेस को अपना जनाधार बढ़ाने के लिए कार्यकर्ता केडर बढ़ाना होगा, वहीं भाजपा को समझना होगा कि अब जनता धार्मिक राजनीति को न चाहकर विकास की राजनीति को अपनाने का संदेश दे रही है। यदि उसने भी कांग्रेस की तर्ज पर राजनीति को चमकाने का प्रयास किया तो उसके वजीरों को जनता खुद परास्त कर सकती है। कम्प्यूनिस्टों का जैसे विश्व धरातल के बाद भारत में अस्तांचल होने लगा है। आज की परिस्थितयां जिसमें कम्यूनिज्म का आका रूस और बाद में कम्यूनिटीक केपिलिज्म आधारित चीन की प्रवृत्ति और परिवर्तन से हमारे यहां के कम्यूनिष्टों को भी सींखना होगा।