कार्तिक मास के कृष्ण पक्ष में पुष्य नक्षत्र का आना बहुत ही शुभ माना जाता है। इस दिन खरीदी का विशेष महत्व है, क्योंकि ऐसी मान्यता है कि पुष्य नक्षत्र में खरीदी गई कोई भी वस्तु लंबे समय तक उपयोगी बनी रहती है तथा शुभ फल देती है। इस दिन यदि माता लक्ष्मी की पूजा की जाए तो घर में स्थाई रूप से धन-संपत्ति का वास रहता है। इस बार 3 नवंबर, मंगलवार को मंगल पुष्य का शुभ योग बन रहा है। इस दिन माता लक्ष्मी की पूजा इस प्रकार करें-
पूजा विधि
पूजा के लिए किसी चौकी अथवा कपड़े के पवित्र आसन पर माता महालक्ष्मी की मूर्ति को स्थापित करें। पूजन के दिन घर को स्वच्छ कर पूजा-स्थान को भी पवित्र कर लें एवं स्वयं भी पवित्र होकर श्रद्धा-भक्तिपूर्वक महालक्ष्मी की पूजा करें। श्रीमहालक्ष्मीजी की मूर्ति के पास ही एक साफ बर्तन में केसरयुक्त चंदन से अष्टदल कमल बनाकर उस पर गहने या रुपए भी रखें तथा एक साथ ही दोनों की पूजा करें। सबसे पहले पूर्व या उत्तर की ओर मुख करके स्वयं पर जल छिड़के तथा पूजा-सामग्री पर निम्न मंत्र पढ़कर जल छिड़कें-
ऊं अपवित्र: पवित्रो वा सर्वावस्थां गतोपि वा।
य: स्मरेत् पुण्डरीकाक्षं स बाह्याभ्यन्तर: शुचि:।।
य: स्मरेत् पुण्डरीकाक्षं स बाह्याभ्यन्तर: शुचि:।।
उसके बाद जल-अक्षत (चावल) लेकर पूजन का संकल्प करें-
संकल्प- आज कार्तिक मास के कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि, मंगलवार है। मैं जो कि अमुक गोत्र (अपना गोत्र बोलें) से हूं। मेरा अमुक नाम (अपना नाम बोलें) है। मैं श्रुति, स्मृति और पुराणों के अनुसार फल प्राप्त करने के लिए और अपनी मनोकामना पूरी करने के लिए मन, कर्म व वचन से पाप मुक्त होकर व शुद्ध होकर स्थिर लक्ष्मी प्राप्त करने के लिए महालक्ष्मी की पूजा करने का संकल्प लेता हूं। ऐसा कहकर संकल्प का जल छोड़ दें।
अब बाएं हाथ में चावल लेकर नीचे लिखे मंत्रों को पढ़ते हुए दाहिने हाथ से उन चावलों को लक्ष्मी प्रतिमा पर छोड़ते जाएं-
ऊं मनो जूतिर्जुषतामाज्यस्य बृहस्पतिर्यज्ञमिमं तनोत्वरिष्टं यज्ञ समिमं दधातु। विश्वे देवास इह मादयन्तामोम्प्रतिष्ठ।।
ऊं अस्यै प्राणा: प्रतिष्ठन्तु अस्यै प्राणा: क्षरन्तु च।
अस्यै देवत्वमर्चायै मामहेति च कश्चन।।
ऊं अस्यै प्राणा: प्रतिष्ठन्तु अस्यै प्राणा: क्षरन्तु च।
अस्यै देवत्वमर्चायै मामहेति च कश्चन।।
अब इन मंत्रों द्वारा भगवती महालक्ष्मी का षोडशोपचार पूजन करें।
ऊं महालक्ष्म्यै नम: – इस नाम मंत्र से भी उपचारों द्वारा पूजा की जा सकती है।
प्रार्थना- विधिपूर्वक श्रीमहालक्ष्मी का पूजन करने के बाद हाथ जोड़कर प्रार्थना करें-
सुरासुरेंद्रादिकिरीटमौक्तिकै-
र्युक्तं सदा यक्तव पादपकंजम्।
परावरं पातु वरं सुमंगल
नमामि भक्त्याखिलकामसिद्धये।।
भवानि त्वं महालक्ष्मी: सर्वकामप्रदायिनी।।
सुपूजिता प्रसन्ना स्यान्महालक्ष्मि नमोस्तु ते।।
नमस्ते सर्वदेवानां वरदासि हरिप्रिये।
या गतिस्त्वत्प्रपन्नानां सा मे भूयात् त्वदर्चनात्।।
ऊं महालक्ष्म्यै नम:, प्रार्थनापूर्वकं समस्कारान् समर्पयामि।
सुरासुरेंद्रादिकिरीटमौक्तिकै-
र्युक्तं सदा यक्तव पादपकंजम्।
परावरं पातु वरं सुमंगल
नमामि भक्त्याखिलकामसिद्धये।।
भवानि त्वं महालक्ष्मी: सर्वकामप्रदायिनी।।
सुपूजिता प्रसन्ना स्यान्महालक्ष्मि नमोस्तु ते।।
नमस्ते सर्वदेवानां वरदासि हरिप्रिये।
या गतिस्त्वत्प्रपन्नानां सा मे भूयात् त्वदर्चनात्।।
ऊं महालक्ष्म्यै नम:, प्रार्थनापूर्वकं समस्कारान् समर्पयामि।
प्रार्थना करते हुए नमस्कार करें।
समर्पण- पूजन के अंत में कृतोनानेन पूजनेन भगवती महालक्ष्मीदेवी प्रीयताम्, न मम।
समर्पण- पूजन के अंत में कृतोनानेन पूजनेन भगवती महालक्ष्मीदेवी प्रीयताम्, न मम।
यह वाक्य बोल कर समस्त पूजन कर्म भगवती महालक्ष्मी को समर्पित करें तथा जल छोड़ दें व माता लक्ष्मी से घर में निवास करने की प्रार्थना करें।
जिन लोगों की कुंडली में मंगल ग्रह अशुभ फल दे रहा है, वे यदि मंगल पुष्य के योग में कुछ विशेष उपाय करें तो लाभ मिल सकता है। ये उपाय इस प्रकार हैं-
करें मंगल यंत्र का पूजन
मंगल पुष्य के योग में मंगल यंत्र की स्थापना कर प्रतिदिन विधि-विधान से उसका पूजन करना चाहिए। इस यंत्र की अचल प्रतिष्ठा होती है।
मंगल यंत्र के लाभ
राजनीति, गृहस्थ जीवन, नौकरी पेशा आदि क्षेत्रों में परेशानी होने पर इस यंत्र की प्रतिष्ठा कर पूजा करने से सभी समस्याएं समाप्त हो जाती हैं तथा सुख-समृद्धि प्राप्त होती है। इस यंत्र के सामने सिद्धि विनायक मंत्र का नित्य जाप करने से सुख-समृद्धि प्राप्त होती है। मंगल यत्र की स्थापना के बाद प्रतिदिन इसके सामने बैठकर नीचे लिखे मंत्रों का जाप करना चाहिए। ये मंत्र इस प्रकार हैं-
– ओम् मंगलाय नम:
– ओम् भूमिपुत्राय नम:
– ओम् ऋणहन्त्रये नम:
– ओम् धनप्रदाय नम:
– ओम् स्थिरासनाय नम:
– महाकामाय नम:
– सर्वकाम विरोधकाय नम:
– लोहिताय नम:
– लोहितागाय नम:
– सांगली कृपाकराय नम:
– धरात्यजाय नम:
– कुजाय नम:
– भूमिदाय नम:
– भौमाय नम:
– धनप्रदाय नम:
– रक्ताय नम:
– सर्वरोग प्रहारिण्ये नम:
– सृष्टि कर्ते नम:
– वृष्टि कर्ते नम:
– ओम् भूमिपुत्राय नम:
– ओम् ऋणहन्त्रये नम:
– ओम् धनप्रदाय नम:
– ओम् स्थिरासनाय नम:
– महाकामाय नम:
– सर्वकाम विरोधकाय नम:
– लोहिताय नम:
– लोहितागाय नम:
– सांगली कृपाकराय नम:
– धरात्यजाय नम:
– कुजाय नम:
– भूमिदाय नम:
– भौमाय नम:
– धनप्रदाय नम:
– रक्ताय नम:
– सर्वरोग प्रहारिण्ये नम:
– सृष्टि कर्ते नम:
– वृष्टि कर्ते नम: