जमशेदपुर. महात्मा गांधी मेमोरियल (एमजीएम) हॉस्पिटल के दो जूनियर डॉक्टरों के प्रयास से एक नवजात की जिंदगी बच गई। वह भी फिल्म थ्री इडियट्स की तर्ज पर। अस्पताल में मैकेनिकल वेंटिलेटर मशीन (कीमत 3.50 से चार लाख रुपए) नहीं थी। डॉक्टरों ने देसी जुगाड़ पर महज 100 रुपए की खर्च पर डिवाइस (उपकरण) तैयार किया और सूझबूझ से एक शिशु की जान बचा ली।
ये दोनों चिकित्सक हैं डॉ मनीष कुमार भारती और डॉ रविकांत। दोनों बालीगुमा बागान एरिया निवासी सिदाम राय व उनकी पत्नी अंबिका राय के लिए फरिश्ता बन गए हैं। इधर, अस्पताल में भी डॉक्टरों के प्रयास की जमकर सराहना हुई।
क्या है मामला
अंबिका राय ने बुधवार को एमजीएम अस्पताल में एक शिशु को जन्म दिया। प्रसव के पूर्व ही गर्भ में शिशु ने गंदा पानी पी लिया था, जो श्वास नली के जरिए फेफड़े में चला गया था। इससे शिशु का सांस लेना और हृदय का काम करना बंद हो गया था। विशेषज्ञों के अनुसार, मेडिकल साइंस में इस स्थिति को सिवेरियन बर्थ कहा जाता है। प्रसव के बाद शिशु की हालत देख डॉक्टर व नर्स घबरा गए। इस तरह की स्थिति में शिशु के इलाज के लिए मैकेनिकल वेंटिलेटर मशीन की जरूरत थी। यह उपकरण एमजीएम अस्पताल में नहीं है। डॉक्टरों ने परिजनों को बच्चे को फौरन बड़े अस्पताल ले जाने की सलाह दी, लेकिन राय दंपती ने आर्थिक स्थिति का हवाला देते हुए असमर्थता जताई। इस पर डॉ मनीष व डॉ रविकांत ने अस्पताल में उपलब्ध संसाधन से कृत्रिम उपकरण (सी-पैप मशीन) तैयार की। इस उपकरण को तैयार करने में 100 रुपए के सामान का इस्तेमाल किया गया। उनके प्रयास से शिशु की जान बच गई। चिकित्सों के अनुसार, अब शिशु की हालत खतरे से बाहर है।
अंबिका राय ने बुधवार को एमजीएम अस्पताल में एक शिशु को जन्म दिया। प्रसव के पूर्व ही गर्भ में शिशु ने गंदा पानी पी लिया था, जो श्वास नली के जरिए फेफड़े में चला गया था। इससे शिशु का सांस लेना और हृदय का काम करना बंद हो गया था। विशेषज्ञों के अनुसार, मेडिकल साइंस में इस स्थिति को सिवेरियन बर्थ कहा जाता है। प्रसव के बाद शिशु की हालत देख डॉक्टर व नर्स घबरा गए। इस तरह की स्थिति में शिशु के इलाज के लिए मैकेनिकल वेंटिलेटर मशीन की जरूरत थी। यह उपकरण एमजीएम अस्पताल में नहीं है। डॉक्टरों ने परिजनों को बच्चे को फौरन बड़े अस्पताल ले जाने की सलाह दी, लेकिन राय दंपती ने आर्थिक स्थिति का हवाला देते हुए असमर्थता जताई। इस पर डॉ मनीष व डॉ रविकांत ने अस्पताल में उपलब्ध संसाधन से कृत्रिम उपकरण (सी-पैप मशीन) तैयार की। इस उपकरण को तैयार करने में 100 रुपए के सामान का इस्तेमाल किया गया। उनके प्रयास से शिशु की जान बच गई। चिकित्सों के अनुसार, अब शिशु की हालत खतरे से बाहर है।
अब क्या है स्थिति
जूनियर डॉक्टरों द्वारा बनाए गए कृत्रिम उपकरण की मदद से पाइप के जरिए शिशु के शरीर से गंदा पानी निकाला जा रहा है। पूरी तरह गंदगी निकलने के बाद शिशु स्वस्थ हो जाएगा।
जूनियर डॉक्टरों की सूझबूझ से बची जान
जूनियर डॉक्टर मनीष कुमार भारती व डॉ रविकांत की सूझबूझ से शिशु की जान बच पाई है। नवजात को शिशु वार्ड में लाते वक्त उसकी धड़कन बंद थी। शरीर भी ठंडा हो गया था। उसे देख सभी परेशान हो गए थे। दोनों डॉक्टरों ने उपलब्ध संसाधनों से फौरन एक कृत्रिम उपकरण (सी-पैप) बनाकर इलाज शुरू किया। लगभग तीन घंटे के प्रयास से बच्चे की जिंदगी बचा ली। बच्चा अब खतरे से बाहर है।
डॉ अजय कुमार, शिशु रोग विशेषज्ञ, एमजीएम अस्पताल
जूनियर डॉक्टर मनीष कुमार भारती व डॉ रविकांत की सूझबूझ से शिशु की जान बच पाई है। नवजात को शिशु वार्ड में लाते वक्त उसकी धड़कन बंद थी। शरीर भी ठंडा हो गया था। उसे देख सभी परेशान हो गए थे। दोनों डॉक्टरों ने उपलब्ध संसाधनों से फौरन एक कृत्रिम उपकरण (सी-पैप) बनाकर इलाज शुरू किया। लगभग तीन घंटे के प्रयास से बच्चे की जिंदगी बचा ली। बच्चा अब खतरे से बाहर है।
डॉ अजय कुमार, शिशु रोग विशेषज्ञ, एमजीएम अस्पताल