नेताजी ने लंदन से 1935 में पब्लिश हुई अपनी किताब ‘Indian Struggle’ में लिखा है कि भारत को ऐसा पॉलिटिकल सिस्टम चाहिए, जिसमें फासीवाद और कम्यूनिज़म का मेल हो। इसे उन्होंने साम्यवाद कहा था। नेताजी ने 1935 में रोम की यात्रा की थी, ताकि अपनी किताब की कॉपी इटली के तानाशाह मुसोलिनी को भेंट कर सकें। नेताजी उसे बहुत पसंद करते थे और उसके ‘आदर्शों’ पर आजीवन चलना चाहते थे।
बोस थोड़े प्रतिक्रियावादी विचारों के थे और इसी वजह से महात्मा गांधी और पंडित नेहरू जैसे शांतिवादी नेताओं से उनकी नहीं बनती थी। मगर इनके बीच टकराव 1935 में नहीं, काफी पहले हो गया था।
बोस ने साल 1928 में कलकत्ता में इंडियन नैशनल कांग्रेस के सालाना अधिवेशन का आयोजन किया था। वहां पर उन्होंने 2,000 से ज्यादा वॉलंटियर्स के साथ फुल मिलिट्री स्टाइल में गार्ड ऑफ ऑनर का आयोजन किया था। इनमें से कुछ अफसरों की यूनिफॉर्म में थे और उनके कंधे पर धातु के बिल्ले लगे हुए थे। अपने लिए बोस ने कलकत्ता से ऑपरेट करने वाली ब्रिटिश कंपनी से ब्रिटिश मिलिट्री ऑफिसर की ड्रेस सिलवाई थी। उन्होंने फील्ड मार्शल की बैटन भी ली हुई थी। इस सेरिमनी में नेताजी ने जनरल ऑफिसर कमांडिंग का टाइटल अपनाया हुआ था। गांधी जी ने हैरान होकर इस पूरे इंतजाम को ‘सर्कस’ करार दिया था। मगर बोस का सैन्यवाद के लिए प्रेम आगे भी जारी रहा।