कलगी और तुर्रा के निशानों के साथ निकले लोग, दोनों पक्षों ने दोहे और छंदों से किए कटाक्ष
सिरोंज। होली की दूज पर शनिवार रात को शहर में पारंपरिक तौर पर कलगी-तुर्रा के निशान निकाले गए। कलगी और तुर्रा के निशानों के साथ लोगों ने छोटे-बड़े नगाड़ों का वादन भी किया। आयोजन को देखने बड़ी संख्या में लोग बाजार में एकत्रित दिखाई दिए। होली की दूज पर शहर में कलगी-तुर्रा आयोजन की परंपरा रही है।
शास्त्रार्थ में काशी के विद्वानों पर सिरोंज के विद्धानों के विजय स्मरण के लिए आयोजित इस उत्सव में कलगी और तुर्रा के निशान मुख्य बाजार में निकाले गए। शाम छह बजे रावजी पथ एवं गणेश की अथाई क्षेत्र से कलगी के निशान निकलना शुरू हुए। करीब 30 फीट ऊंचे मुख्य निशान के साथ में झांझ और मंजीरों के वादन के बीच गायक लोक गीतों का गायन भी करते चल रहे थे। निशानों के छोटे-बड़े नगाड़े भी लोगों ने हाथ में थाम रखे थे। जिनका लोग बारी-बारी से वादन करते चल रहे थे। वादन के इस क्रम में ताल से ताल मिलाने की प्रतियोगिता भी चलती दिखाई दी।
दूसरी ओर शहर के हाजीपुर और कष्टम पथ इलाके से तुर्रा पक्ष के लोग भी शाम होते ही अपना निशान लेकर निकलेे। तुर्रा पक्ष के लोग भी लोक गीत का गायन करते हुए चल रहे थे। रात 10 बजे बड़ा बाजार इलाके में दोनों ही पक्षों का आमना-सामना हुआ। इसके बाद दोनों ने एक-दूसरे पर एक घंटे तक दोहे और छंदो से कटाक्ष किए। प्रशासन द्वारा दोनों पक्षों की सीमा रेखा भी तय की गई थी। आसपास बड़ी संख्या में पुलिस के जवान तैनात रहे।
दूसरी ओर शहर के हाजीपुर और कष्टम पथ इलाके से तुर्रा पक्ष के लोग भी शाम होते ही अपना निशान लेकर निकलेे। तुर्रा पक्ष के लोग भी लोक गीत का गायन करते हुए चल रहे थे। रात 10 बजे बड़ा बाजार इलाके में दोनों ही पक्षों का आमना-सामना हुआ। इसके बाद दोनों ने एक-दूसरे पर एक घंटे तक दोहे और छंदो से कटाक्ष किए। प्रशासन द्वारा दोनों पक्षों की सीमा रेखा भी तय की गई थी। आसपास बड़ी संख्या में पुलिस के जवान तैनात रहे।
इतिहास : काशी के विद्वानों से जीते थे सिरोंज के विद्वान
किंवदंतीहै कि मध्यकाल में देशभर में शास्त्रार्थ करते हुए काशी के विद्वान सिरोंज भी आए थे। यहां पर उन्होंने सिरोंज के विद्वानों से भी शास्त्रार्थ किया। देश भर में जीतने वाले काशी के विद्वान सिरोंज के विद्वानों से पराजित हो गए। जिसके फलस्वरूप काशी के विद्वान अपने साथ लेकर आए निशान और शास्त्र सिरोंज में ही छोड़ गए थे। कलगी-तुर्रा पर्व सिरोंज के विद्वानों की इसी जीत का स्मरण है। इसमें कलगी पक्ष शक्ति का तथा तुर्रा पक्ष शिव का प्रतीक माना जाता है।
किंवदंतीहै कि मध्यकाल में देशभर में शास्त्रार्थ करते हुए काशी के विद्वान सिरोंज भी आए थे। यहां पर उन्होंने सिरोंज के विद्वानों से भी शास्त्रार्थ किया। देश भर में जीतने वाले काशी के विद्वान सिरोंज के विद्वानों से पराजित हो गए। जिसके फलस्वरूप काशी के विद्वान अपने साथ लेकर आए निशान और शास्त्र सिरोंज में ही छोड़ गए थे। कलगी-तुर्रा पर्व सिरोंज के विद्वानों की इसी जीत का स्मरण है। इसमें कलगी पक्ष शक्ति का तथा तुर्रा पक्ष शिव का प्रतीक माना जाता है।
प्रशासन द्वारा दोनों पक्षों की सीमा रेखा भी तय की गई थी। आसपास बड़ी संख्या में पुलिस के जवान तैनात रहे