मध्यप्रदेश में कर्मचारी आयोग के गठन की मांग एक बार फिर उठने लगी है। कर्मचारियों ने इस संबंध में CM शिवराज सिंह चौहान को चिट्ठी (पत्र) भी लिखी है। जिसमें कहा कि कर्मचारी कल्याण समिति की बजाय सरकार कर्मचारी आयोग का ही गठन करें। वहीं, संविदाकर्मियों के लिए नीति बनाने, अनुकंपा नियुक्ति के नियमों में बदलाव, आवास, दैनिक वेतनभोगी को नियमित करने समेत 10 सूत्रीय मांगों को भी पूरा करने की बात कही है।
इंक्रीमेंट और महंगाई भत्ता बढ़ाने के मुद्दे पर जुलाई से अक्टूबर के बीच कर्मचारियों ने सरकार को घेरा था। अक्टूबर में सरकार ने कर्मचारियों को तोहफा दे दिया था। इसके बाद आंदोलन खत्म कर दिया गया, लेकिन अब कर्मचारियों ने आयोग के गठन के साथ अन्य मांगें उठाई है।
कर्मचारी आयोग के गठन प्रमुख मांग
मध्यप्रदेश अधिकारी-कर्मचारी संयुक्त मोर्चे ने CM शिवराज सिंह चौहान को पत्र लिखकर प्रमुख रूप से प्रदेश में कर्मचारी आयोग के गठन की मांग उठाई है। मोर्चा के प्रदेश अध्यक्ष जितेंद्र सिंह ने बताया, वर्ष 2013 में विधानसभा चुनाव के घोषणा पत्र में BJP ने अधिकारी-कर्मचारियों की वेतन विसंगति एवं क्रमोन्नति-पदोन्नति आदि के युक्ति-युक्तिकरण के लिए आयोग के गठन की बात कही थी। सरकार ने रिटायर्ड मुख्य सचिव अजय नाथ की अध्यक्षता में आयोग का भी गठन किया था। यह आयोग अच्छे तरीके से काम कर रहा था। इसी बीच आयोग अध्यक्ष ने पद से इस्तीफा दे दिया। इससे आयोग के कार्य शिथिल हो गए।
अब समिति पर विचार, लेकिन यह ठीक नहीं
मोर्चे द्वारा सीएम को लिखे पत्र में कहा गया कि सरकार ने आयोग की परिकल्पना बंद कर दी और अब पुनः कर्मचारी कल्याण समिति की परिकल्पना पर विचार किया जा रहा है। वहीं, समिति के अध्यक्ष के पद पर किसी सेवानिवृत्त कर्मचारी को अध्यक्ष का दायित्व दिए जाने की तैयारी की जा रही है, जो ठीक नहीं है। क्योंकि समिति को कोई संविधानिक/वैधानिक अधिकार न होने के कारण वह कर्मचारियों के वेतन विसंगति, क्रमोन्नति एवं अन्य विषय पर नियमानुसार निर्णय नहीं ले पाती है। पिछले 15 साल में देखने में आया है कि समिति के पूर्व अध्यक्षों का कर्मचारी संगठनों से ठीक तरह से संवाद नहीं रहा। वहीं, वाद-विवाद के मामले भी सामने आए। इसलिए आयोग का गठन करना उचित रहेगा।
मोर्चा ने इन मांगों को भी रखा
- जिला मुख्यालयों पर आवास बने।
- दैनिक वेतनभोगी कर्मचारियों को रिक्त स्थानों पर नियमित करने के लिए आरक्षण नीति हो।
- 50 वर्ष से अधिक उम्र के सरकारी कर्मचारियों को अखिल भारतीय सेवाओं के अधिकारियों की तरह अनिवार्य वार्षिक स्वास्थ्य जांच हो।
- संविदा कर्मचारियों के लिए ‘मानव संसाधन’ नीति बने।
- कर्मचारी कल्याण कोष हो।
- कर्मचारियों को तृतीय समयमान वेतनमान का लाभ दिया जाए।
- अनुकंपा नियुक्ति के नियमों में परिवर्तन हो।
- कार्यभारित कर्मचारियों की सुविधाओं में विस्तार किया जाए।
- अच्छा काम करने वाले शिक्षक व कर्मचारियों को राष्ट्रीय या अंतराष्ट्रीय सम्मेलनों में भी शिक्षण एवं प्रशासनिक विधि और ट्रेनिंग दी जाए।
- सरकारी सेवाओं को होम लोन उपलब्ध कराने के लिए बैंक से MOU हो। सरकार गारंटर बने। सरकार के सेवाकर्मी की आय के आधार पर 30 लाख रुपए तक का लोन न्यूनतम दर पर मिले।