पहाड़ीपर जाने के लिए करीब पांच सौ साल पुरानी सीढिय़ों का पता चल गया है। पुरातत्व नगरी उदयपुर की पहाड़ी पर जिले की एक मात्र हजरत अली दरगाह है। पहाड़ी पर जाने के लिए लोग पगडंडी का इस्तेमाल करते हैं। पगडंडी से चंद लोग ही पहाड़ी चढ़ने का साहस जुटा पाते थे। अब सीढ़ियां मिल जाने से दरगाह तक सभी श्रद्धालु जा सकेंगे।
तहसील मुख्यालय से 16 किलोमीटर दूर स्थित पुरातत्व नगरी में पहाड़ी के ऊपर मुस्लिम समाज में शेर खुदा के नाम से विख्यात हजरत अली और बीबी फातिमा की सदियों पुरानी दरगाह बनी हुई हैं। प्राचीन किवदंती के अनुसार इसी पहाड़ी पर जिन्नातों को हजरत अली ने दर्शन दिए थे। उनके दर्शन पाकर जिन्नात इतने अभिभूत हो गए थे कि उन्होंने कोहनियां मार-मार कर पहाड़ को दो हिस्सों में बांट दिया था। वर्तमान में यह पहाड़ी अली बाबा के नाम विख्यात है।
पहाड़ी के दोनों हिस्से इस प्रकार दिखाई देते हैं जैसे उनको आपस में जोड़ दिया गया हो। जिन्नातों ने हाथ की कोहनियों से जहां पहाड़ पर चोटें मारी वहां सदियां गुजर जाने के बाद भी कोहनियों के निशान मौजूद हैं। उदयपुर के आसपास 84 गांव के लोग शादी के पश्चात आज भी पहाड़ी पर स्थित हजरत अली की दरगाह पर तबरूख चढ़ाने और आशीर्वाद लेने आते हैं। दरगाह की सबसे बड़ी बात यह है कि जहां हजरत अली ने जिन्नातों को दर्शन दिए वहां उनके पैरों के निशान अब भी मौजूद हैं।
श्रद्धालुओं ने इस स्थान पर छोटा सा मजार बना दिया। आज भी बाहर से कई श्रद्धालु चादर चढ़ाने और मन्नत मांगने आते हैं। इसी दरगाह के पास बीबी फातिमा का स्थान भी बना हुआ है। जहां केवल महिलाएं जाती हैं। वहां पुरुषों का प्रवेश वर्जित है। जिन महिलाओं की संतान नहीं होती वह संतान की मन्नत लेकर पहुंचती हैं। इतना महत्वपूर्ण स्थान होते हुए वहां पहुंचने का कोई व्यवस्थित मार्ग नहीं था