Monday, September 22

मजदूरों का दुर्भाग्य!

मजदूरों को लेकर राज्य सरकारों का रवैया बहुत ही गैरजिम्मेदाराना दिखाई दिया ।लॉकडाउन के बाद से ही राज्य सरकारें खासकर मजदूरों के प्रबंधन मे फेल रही है,लाखों लोगों को फ्री खाना के फोटो ओर विज्ञापनों ने मजदूरों की असली समस्या को दिखाया ही नहीं ।

दूसरे प्रशासन उन जाहिलों मे उलझा रहा जो लॉकडाउन को तोडने मे अपनी शान समझ रहे थे ,उन से जैसे तैसें निपटे तो तबलीगियो का जाहिलपन आ गया ,ओर इस जाहिलपन ने देश की व्यवस्था को बहुत नुकसान पहुंचाया शासन-प्रशासन को इनसे निपटने मे अपने सारे संसाधन लगाने पडे ओर इस बीच उस मजदूर की आश टूटती चली गई ।मकान मालिक को किराया चाहिए, मिल मालिकों ने काम से भगा दिया ,दो बक्त की रोटी की आश ओर असमंजस भरा जीवन पैदल चलने को मजबूर कर दिया।

दुर्भाग्य देखिए जिन तबलीगियो ने शासन को सहयोग तक नहीं किया फिर भी शासन उनकी खिदमत मे लगा रहा ओर वो विचारा मजदूर अपने गांव जाने की आश मे ।यहां सबसे ज्यादा दोषी नेता हे ये सिर्फ अपने वोटर को ही अपना बाप मानते हे ,इनकी भावनाएं उनके लिए ही होती है ।

दुर्भाग्य देखिए इस देश का नागरिक भी प्रदेश का होकर रह गया ,सव अपने अपने प्रदेश के नागरिकों की चिंता करने लगे क्या यह सव देश के नागरिक नहीं हे ओर यदि है तो दोहरा व्यवहार कैसा ।इन दिनों मजदूरों को लेकर राजनैतिक पार्टियां खूब राजनीति कर रही है ।मजदूरों को अपने घर पहुचाने के लिए किराए को लेकर जो हरकत राजनैतिक पार्टियां कर रही है वह वेहद शर्मनाक है ।इस पर राजनीति करना इस देश के लिए दुर्भाग्यपूर्ण है। इस समय यदि पूरा किराया यदि केन्द्र सरकार दे देती तो भी कोई फर्क नहीं पडता ,ओर राज्य भी दे रहे तो कोई अहसान नहीं कर रहे ये उनका भी फर्ज है। ओर यदि गैर भाजपा राज्यों मे किराया बसूला गया वह दुख पहुचाने बाला है।ओर यदि कोई राजनैतिक पार्टी किराया देने की बात करे वह सिर्फ राजनीति हे ।