दूरदर्शन पर रामायण सीरियल का कल आखिर एपीसोड था, ओर वह आखिरी एपीसोड ने आखिरी तक आंसू आने को मजबूर कर दिया, तेतीस वर्ष जीवन का लम्बा समय होता हे,इस समय मे न जाने कितने लोग दुनिया से चले गये होंगे ओर न जाने कितनों ने जन्म लिया होगा ओर न जाने कितने ऐसें भी सौभाग्यशाली होंगे जो दूरदर्शन पर रामायण का प्रसारण दूसरी बार देख रहे होंगे।

जिंदगी की आपाधापी ओर बदलते परिवेश मे अव कम ही परिवार ऐसें होंगे जहां घर मे बैठ कर सनातन संस्कृति पर चर्चा होती हो ,रामायण का पाठ होता हो ।पैसा कमाने कि मानसिकता ने आज की पीढी को अपनी संस्कृति से दूर किया हे , दूसरे घरों मे बुजुर्गों का न होना भी बच्चों को सांस्कृति से दूर रखने कि वजह बना है।
कहने मे यह अजीब लगेगा ,पर सच तो है ,ही कोरोना के आने से जहां कुछ नुकसान हुआ है ,वही कुछ फायदे भी कोरोना के चलते लॉकडाउन हुआ ओर लॉकडाउन के चलते दूरदर्शन पर रामायण सीरियल का प्रसारण ओर रामायण आने के बाद मानो एक पॉजिटिव माहौल ने जन्म लिया हो ।सबसे बढी बात तो ये है आज की पीढी ने रामायण देखकर अपने अनसुलझे प्रश्नों के उत्तर पा लिए ,अक्सर सनातन पर कुतर्क करनेवाले भी अव मौन हे।
जिसने दूसरी बार रामायण का प्रसारण देखा उसके लिए दोनों ही क्षण अद्भुत रहे हे क्योंकि कुछ लोग उस समय नाबालिग रहे होंगे ,रामायण के गूढ़ रहस्यों को लेकर काफी कुछ समझ से परे होगा ।पर अव वह उस उम्र मे हे ,जव उन्हें रामायण के हर एक बात सारगर्भित लगती हे ,आखिर एपीसोड मे भगवान जव अपने धाम को जा रहे होते हे ,तो बरबस ही आंखों से आंसू टपकने लगते हे ।यही हे सनातन संस्कृति ओर यही हैं सनातन संस्कार ।
