कोरोना तुम यूं ही आते रहना….देखोना तुम्हारे आने से सव जगह कैंसा सन्नाटा हे,शांत ..,कलकल करती नदियां ..आकाश मे छटकते तारे..निर्मल वहती हवा ..प्रकृति का सुन्दर रुप तुम्हारे आने से ही सम्भव हुआ हे…वेवजह का कोलाहल शादी समारोह मे बजते डीजे से आज चारों ओर शांति हे पक्षियों का सुरीली आबज साफ सुनी जा सकती हे…तुम क्या जानो.. तुमनें न जाने कितनी… जीवनसंगिनीओं की आशा पूरी की हे,….जो अक्सर अपने जीवनसाथी के साथ ,…कुछ पल विताने की आशा मन मे पाले हुए थी..पर बिचारी समय के अभाव मे उसे पूरा नहीं कर पाती थी ..बैसे आपके आने का प्रभाव अकेले जीवनसंगिनीओं…. ,पर पडा हो ऐसा नहीं हे..जीवनसाथी भी आपके इस उपहार से बर्षों बाद अपनी पत्नी के हाथ का भोजन ग्रहण कर पा रहे हे..अक्सर दौड-भाग की जिंदगी मे आधे से ज्यादा जिंदगी तो कैंटीन के भोजन से निकल गई।अव जाके थोडा सुकून मिला हे…कितना अच्छा लग रहा हे , ..ना कोई सिकवा ओर ना कोई शिकायत.. थोडे ही संसाधन मे सुकून का अहसास ,चाह कर भी घर मे कोई फरमाइश नहीं कर रहा… ,सवे पता हे ..कि बहार तुम जो हो..तुम वाकई मुझे तो बरदान साबित हुए हो..जव से तुम आये हो तव से रुपयों ने भी जेब से निकलना बंद कर दिया हे..उन्हें भी तुम्हारे होने का अहसास हो चला हे. …..

वाकई तुम हो तो प्रभावशाली.. तुमनें उन लोगों को भी जमीन पर ला दिया.. जो..चांद पर प्लाटिंग कर रहे थे..जिनकी मिशाइल हवा से बातें किया करती थी…जिनके हवाईजहाज दुनिया से आंखमिचौली खेला करते थे..जहां कभी रात नहीं होती थी ..वहां तुम्हारे पहुचने से हमेशा के लिए सो गये..न जाने तुमने कितनों के स्वाभीमान को जमीनदोज कर दिया.. कल तक जो दुनिया को आंखें दिखाया करता था ,आज वो अपनी आंखें गीली कर खडा हे..
पर..जरा ये तो बताओ तुम कैसे निष्ठुर हो ,तुम ये भी नहीं देखते ये ऊचा हे ये नीचा है..ये बढा हे ,ये छोटा हे..तुम तो अमीरी, गरीबी का भी भेद नहीं करते… तुम से सव डरते हे. ..तभी तो देखोना कैसे दुबके बैठे है , सबकुछ वंद करके ,यहां तक की ट्रेनें तक वंद हे ,उद्योग धन्धे ,व्यापार ,व्यवसाय चारो ओर तुम्हारे ही डर का साया हे ,डर इतना कि अव बार बार हाथ धो रहे है, सब्जी धोकर रख रहे हे ,जरा सा भी अपरिचित दिखा उसे शंका की दृष्टि से देख रहे है,..घर का हो य बाहर का सभी से दूरी वना रखी हे…मरने पर भी दूर से ही संवेदना दे रहे हे….,अर्थी को कांधा लगाने बाले भी बमुश्किल इकट्ठा हो रहे हे..दफनाने बाले भी जला रहे हे,..कैसा तुम्हारा तांडव चल रहा हे… ,कोई ये बताने कि स्थिति में भी नहीं है ..कि ये कव रुकेगा…,दूसरों को भविष्य बताने बालों को खुद के भविष्य की पडी हे…72हूरों के पास पहुंचाने बाले खुद निकल लिए है..
पर अभी भी कुछ लोगों मे तुम्हारा डर बिल्कुल नहीं हे ..वो आज भी मानवता को शर्मसार किये हुए है..जो तुम्हारे प्रकोप से बचाने का प्रयास कर रहे हे वो उन्हें ही अपना शिकार बना रहे हे,…..जाहिलपन की हरकत से मानव होने पर ही प्रश्न खडे कर रहे है…कुछ लोग अपने धर्म के लिए पगला रहे हे..तुम्हारे प्रकोप से वचाने के लिए सरकार ने सभी धर्मिक ,तीर्थ क्षेत्र वंद कर दिये हे …,पर अतिवादी लोग सरकार के आदेश को ताक पर रखकर धार्मिक स्थलों पर देखे जा रहे हे ..इतना ही नहीं खिडकी का तक सहारा लिया जा रहा हे… ऐसा कैसा धर्म जो राष्ट्र के नियम नहीं सिखाता…
ऐसा नहीं लगता की तुमने आने मे देर कर दी …बैसे बताते हे तुम सौ साल मे आते हो…छोटे मोटे रुप मे तो तुम आते ही रहते हो..कभी स्वाइन फ्लू वनकर …कभी प्लैग बनकर ओर ना जाने क्या क्या नाम से आते रहते हो ..पर इसबार तो तुम पूरे विराट रुप मे आये हो…जरा सा स्पर्श मे ही अतिथि वन जाते हो….पर तुम्हारा नाम तो नोवेल कोरोना तो गलत रखा ..तुम सर्वोत्तम कैसे हो सकते हो ,तुम तो डर्टी हो ..तुम्हारा नाम तो डर्टी होना चाहिए ..खैर तुम्हारे आने से आध्यात्मिक लोगों को कोई फर्क नहीं पढा …वो तो तुम मे भी भगवान का रुप देख रहे हे ..उनके लिए तो सरकार न रामायण ओर महाभारत का पुनः प्रसारण करा दिया..