Tuesday, October 21

हर दिन हो महिला दिवस

क्या हम साल में एक दिन महिला दिवस मनाकर अपने कर्त्तव्य की इतिश्री कर देते हैं क्या हमें महिलाओ के सम्मान के लिए एक दिन की आवश्यकता हैं | ऐसे प्रश्न आज इसलिए खड़े हो रही हैं की भारत जैसे देश में जहा पर आदिकाल से महिलाओ को बराबर का सम्मान दिया जाता रहा हैं और उनके सम्मान पर आंच के चलते युद्ध जैसी परिस्थितियों का भी सामना करना पड़ा हैं |

हां यह अलग बात हैं की बीच के कालखंड में महिलाओ पर अत्याचार भी बहुत हुए हैं जो एक सभ्य समाज के लिए कही से भी उचित नहीं कहा जा सकता और इन दिनों भी पुरुषो ने तो मानसिकता धारण कर रखी हैं वह भी सोचने पर मजबूर करती हैं क्योँकि जिस भारत में महिलाओ को इतना सम्मान दिया गया जहा बेटिया माँ भगवती के रूप में पूजी गयी और बहु बनते ही उन्हें महालक्ष्मी का दर्जा दिया गया हो उस देश में जब रेप अत्याचार दुराचार जैसी घटनाएं सुनाई देती हैं तो निश्चित ही बड़ा कष्ट होता हैं इसलिए सिर्फ एक दिन महिला दिवस मनाकर महिलाओ को सम्मान नहीं मिल सकता वल्कि यह सतत आचरण में आने वाला व्यवहार से ही महिलाओ के प्रति सामान का भाव निरूपित हो पायेगा |

क्योँकि एक सभ्य समाज में महिलाओ का बहुत बड़ा योगदान हैं क्योँकि वह निर्माण करने में सक्षम हैं और वह एक आदर्श पुरुष का निर्माण भी वही करती हैं |

कहा जाता हैं की महिला आवला होती हैं पर इतिहास गवाह हैं की जब वह अपना भीबत्स रूप धारण करती हैं तो इतिहास के पन्नो में दर्ज हो जाती हैं भारत के इतिहास में पन्नाधाय से लेकर झांसी की रानी लक्ष्मीबाई जैसी सैकड़ो बिरंगनाओ नेसमय समय पर पुरुषो के बरावर आकर अपना योगदान दिया हैं |

आज के परिपेक्ष में देखे तो आज महिला किसी भी क्षेत्र में पीछे नहीं हैं वस आवश्यकता हैं तो समाज को इसके प्रति दृष्टि कोष बदलने की इसलिए महिला दिवस पर ही महिला का सम्मान काके अपने कर्तव्य को न निभाय आइल आगे भी अपने व्यवहार में उनके प्रति सामान पैदा करे तो ये हमारा समाज एक नहीं दिशा पा सकता हैं