Sunday, October 19

प्रकति का रौद्र रूप, जिम्मेदार कौन

बरसात आते ही चारो और खुशनुमा माहौल हो जाता हैं| रिमझिम करती वारिश प्रकति में नया संचार भर देती हैं | पर जब यही वारिश अपने स्वाभाविक रूप में बरसने लगे तो मानव जीवन के साथ – साथ जीव – जंतु वेहाल हो जाते हैं | विकास की संघी दौड़ ने प्राकृतिक संरचना के मूल रूप को बिगाड़ दिया हैं |

जिसके चलते मानव जीवन स्वयं संकट में घिरा नजर आने लगा हैं | आज जिस तरह से नदी नालो पर अतिक्रमण किया जाकर उनके मूल स्वरुप को बिगाड़ दिया हैं | उसी का परिणाम हैं कि आज चारो और त्राहि -त्राहि मची हुयी हैं | जल-जंगल-जमीन सभी को मानव जीवन ने अपनी हबस का शिकार बनाया हैं | जंगलो की बेरहम कटाई भी इस चुनौती का वड़ा कारण हैं

वक्त रहते इस विषय पर गंभीरता नहीं दिखाई दी तो वो दिन दूर नहीं जब अधिकांश मानव जाति प्राकृति के दंश को झेल नहीं पायेगी | शहरो के पास से बहने वाली नदियों को अतिक्रमण से मुक्त करना ही इस समस्या का स्थाई समाधान हैं | नदियों के उनके वास्तविक रूप में प्रवाहित होने देना ही सही निर्णय होगा |