Wednesday, September 24

अमित शाह को उत्तर प्रदेश एक चुनौती

मोहित सिंह
Mohan bhagwat modirss shakhaलखनऊ। कुदरत की शान ऐसी होती है कि सूखे दरख्त पर भी हरियाली छा जाती है। ठीक वैसे ही आम जनता में भी ऐसी जान होती है कि वो किसी को भी पल में जमीन दिखा देती है तो किसी को आसमां पर बैठा देती है। ऐसा ही कुछ तकरीबन दो महीने पहले भारत में देखने को मिला जब जनता ने कीचड़ में समा चुके कमल को अपनी धार से ऐसा खिलाया कि इसके सिम्बल को लेकर गुजरात के नरेन्द्र मोदी और राष्टï्रीय स्वयं सेवक संघ की बाछें खिल गयीं। संघ के संस्थापकों को वर्षों पुराने सपने को देश के जनमानस ने मात्र 6 महीनों में मोदी लहर को आंधी में तब्दील कर दिया और मोदी को सबसे बड़े लोकतंत्र का बादशाह बना दिया। संघ के स्वयं सेवकों में उर्जा उत्पन्न हुई सत्ता से दूर रही भाजपा को आभामण्डल से बड़े-बड़े धराशाही हो गये। इस अजीब-ओ-गरीब तिलस्म से जहां अन्य पार्टियों के परखचे उड़ गये वहीं संघ का नागपुर मुख्यालय रौशन हो गया। उत्तर प्रदेश, उत्तराखण्ड, बिहार, राजस्थान, गुजरात में अन्य दलों को जनता ने नकार दिया। इस नकारने के पीछे जो शक्ति काम कर रही थी वो थी गुजरात के पूर्व गृह मंत्री अमित शाह और उनके हाईटेक समर्थकों की। राजस्थान में जहां ग्वालियर की राजकुमारी ने कांग्रेस साम्राज्य को नेस्तनाबूत कर दिया वहीं मोदी के गुजरात में मोदी की करिश्माई आंधी ने और बिहार, उप्र, उत्तराखण्ड में अमित शाह का ऐसा जादू चला कि विरोधियों की सांसे ऊपर नीचे होने लगी जो आज भी उसी दशा में है। लेकिन इन सबके बावजूद मोदी सरकार के 50 दिन के कार्यकाल ने देश के सामने अजीबो गरीब दृश्य दिखाया जिससे आम जनमानस चौकन्ना तो हुआ ही नेहरू, इंदिरा की सूख चुकी कांग्रेस में एक बार फिर बाती जल उठी। उत्तराखण्ड जहां कांग्रेस का नामोनिशान मिट गया था।
वहीं उपचुनाव में तीनों सीटों पर उसका वर्चस्व फिर कायम हो गया। प्रश्न उठता है कि ऐसा आखिर कैसे और क्यों हुआ। अमित शाह के अध्यक्ष की कुर्सी सम्भालते ही ऐसा दृश्य क्यों उभरा, इसमें कहीं कोई पार्टी के अन्दर विराजमान कुछ तथाकथित शाह विरोधी खेमे को तो चाल नहीं या फिर जनता ने फैसला दिया। हालांकि इस विषय पर नागपुर से लेकर आंध्र प्रदेश, दिल्ली के संघ कार्यालयों में खूब मंथन हुआ भी और आज भी इस पर बड़ी शिद् दत से विचार किया जा रहा है। मोदी भी इस मंथन में शामिल हैं। संघ और मोदी इस बात से विचलित नहीं हैं कि उत्तराखण्ड के विधान सभा उपचुनाव में वे बाजी हार गये, लेकिन अब संघ, पार्टी आलाकमान खासकर मोदी और अमित शाह को इस बात की फिक्र सता रही है कि आने वाले समय में होने वाले विधानसभा चुनाव में बिहार महाराष्टï्र, हरियाणा और सबसे खास उ.प्र. का 2017 जिसमें अमित शाह और उनके हाईटेक समर्थकों के उम्मीदे बंधी है। खबरों के अनुसार प्रदेश में भाजपा को कमजोर न होने देने के लिये अमित शाह ने अपने खास लेफ्टिनेंट सुनील बंसल को प्रदेश में पहले ही भेज दिया है और अब जल्द ही प्रदेश इकाई में परिवर्तन का दौर शुरू हो सकता है। गौरतलब हो कि पिछले दिनों अमित शाह और संघ चालक मोहन भागवत के बीच हुई लगभग 1 घंटा 22 मिनट की बातचीत में ये प्लानिंग (रणनीति तैयार की गई जिसमें देश के लगभग हर प्रांत में संघ से जुड़े रहे पुराने स्वयं सेवकों जो पत्रकारिता क्षेत्र से जुड़े रहे हैं या वर्तमान में भी जुड़े हैं उन्हें संगठन में लाने का जी तोड़ प्रयास कर उन्हें जिम्मेदारी सौंपी जाये। इस निर्णय के पीछे संघ के बहुत नायाब सोच सामने उभरकर आयी है। स्वयं सेवक रहे पत्रकारों को जोडऩे से पार्टी को इनसे अपने प्रचार का लाभ मिलेगा दूसरा ऐसे स्वयं सेवकों को इसी बहाने सम्मान भी मिल जायेगा। इसी उद् देश्य के तहत अब अमित शाह और उनकी कैबिनेट काम करेगी। दूसरा ब्लू प्रिंट जो तैयार किया गया है उसमें अब नौजवान स्वयं सेवकों को भी संगठन का दायित्व सौंपा जायेगा। तरुण स्वयं सेवक अब संगठन का काम देखेंगे साथ ही वे संघ के कार्य में अपना योगदान देते रहेंगे। इतना ही नहीं अब संगठन में बरसों से जमे वृद्घ हो चुके नेताओं को अब सिर्फ कार्यालय की गतिविधियों में लगाया जायेगा। और जहां उनके अनुभव की आवश्यकता पड़ेगी उन्हें उस काम में लगाया जायेगा। इन्हीं सब विषयों की एक बड़ी फाइल लेकर 19 जुलाई को पार्टी के राष्टï्रीय अध्यक्ष लखनऊ आ रहे हैं। वैसे इन सब फैसलों से संगठन के कर्ताधर्ता सुनील बंसल प्रदेश इकाई के वरिष्ठï नेताओं और राजधानी में संघ के वरिष्ठïों को इसकी जानकारी दे चुके हैं। इन सब तमाम पहलुओं पर पार्टी कार्यालय में ताबड़तोड़ मीटिंगें भी हो चुकी हैं। बस इंतजार है तो सिर्फ अमित शाह का। इसके साथ ही बिहार के मामले में भी संघ की तरफ से ब्लू पिं्रट तैयार किया जा चुका है इस ब्लू प्रिंट में बिहार के मुख्यमंत्री के पद के लिये लगभग नाम तय कर लिया गया है जिसको जल्द ही प्रोजेक्ट कर दिया जायेगा। सूत्रों की मानें तो बिहार के मुख्यमंत्री के लिये जो नाम सामने आ रहा है वो सबसे पहले नम्बर पर रूढ़ी का दूसरे नम्बर पर नंद किशोर यादव और तीसरे का सुशील कुमार मोदी है लेकिन इस सब नामों में रूढ़ी के नाम पर संघ भी लगभग तैयार हो गया है।