Tuesday, September 23

स्वयं शिव रहते हैं यहां, इसीलिए इसे कहते हैं ब्रह्मांड का केंद्र

7179_untitled-22उज्जैन। यदि आप अपनी भागमभाग और तनाव भरी जिंदगी से कुछ पल प्रकृति की गोद में बिताना चाहते हैं, तो कैलाश मानसरोवर एक बेहतर जगह है। पूरे हिमालयी क्षेत्र में यह सबसे ज्यादा आध्यात्मिक संवेदना वाला माना जाता है। शिवपुराण में इसे ब्रह्मांड का केंद्र कहा गया है। कैलाश पर्वत तिब्बत में स्थित एक पर्वत श्रेणी है। इसके पश्चिम, दक्षिण में मानसरोवर और रक्षातल झील हैं। यहां से कई महत्वपूर्ण नदियां निकलतीं हैं ब्रह्मापुत्र, सिन्धु, सतलुज आदि।
हिन्दू धर्म में इसे पवित्र माना गया है। कहा जाता है कि यहां शिव को साक्षात महसूस किया जा सकता है। इसे गणपर्वत और रजतगिरि भी कहते हैं। मानसरोवर की यात्रा व्यास, भीम, कृष्ण, दत्तात्रेय आदि ने की थी। इसक अलावा कई ऋषि मुनियों के यहां निवास किया है। कुछ लोगों का कहना है कि आदि शंकराचार्य ने इसी के आसपास कहीं अपना शरीर त्याग किया था। शिवपुराण में इसे ब्रह्मांड का केंद्र कहा गया है। जैन धर्म में भी इस स्थान का महत्व है। वे कैलाश को अष्टापद कहते हैं। कहा जाता है कि प्रथम तीर्थकर ऋषभदेव ने यहीं निर्वाण प्राप्त किया था। बौद्ध साहित्य में भी मानसरोवर का उल्लेख मिलता है। कैलाश पर्वतमाला कश्मीर से लेकर भूटान तक फैली हुई है। ल्हा चू और झोंग चू पर्वत माला के बीच कैलाश पर्वत है। जिसके उत्तरी शिखर का नाम कैलाश है। इस शिखर की आकृति विराट् शिवलिंग की तरह है। पर्वतों से बने षोडशदल कमल के बीच यह स्थित है।
कैसे पहुंचे कैलाश मानसरोवर- कैलाश मानसरोवर जाने का मन बनाने में और वहां तक पहुंचने में बहुत फर्क है, क्योंकि ये यात्रा बहुत मुश्किल कही जाती है। हिमालय की चोटियों के बीच से गुजरता ये रास्ता बेहद ही खतरनाक होता है। साथ ही, मौसम खराब होने का खतरा भी बना रहता है। कैलाश पर्वत तक जाने के लिए दो रास्ते हैं। एक रास्ता भारत में उत्तराखंड से होकर जाता है, लेकिन ये रास्ता बहुत मुश्किल है। दूसरा रास्ता जो थोड़ा आसान है, वो है नेपाल की राजधानी काठमांडू से होकर कैलाश जाने का रास्ता। हम आपको बताते हैं कि नेपाल के रास्ते भगवान शिव के घर कैलाश मानसरोवर कैसे पहुंचे।
यात्रा का पहला दिन:- सबे पहले दिल्ली में सारी औपचारिकताएं पूरी की जाती है। फिर हैल्थ चैकअप के बाद आपको सीधे काठमांडू ले जाया जाएगा। आप चाहें तो काठमांडू में एक दिन रूक कर अगले दिन से यात्रा आगे बढ़ा सकते हैं। अधिकतर लोग यहां पशुपतिनाथ जी के दर्शन के बाद ही कैलाश के दर्शन के लिए आगे का सफर शुरू करते हैं। काठमांडू से सुबह-सुबह कैलाश के लिए सफर शुरू हो जाता है। काठमांडू से तकरीबन एक घंटे की यात्रा के बाद फे्रंडािशप ब्रिज पर मानसरोवर यात्रियों की यहीं पर कस्टम क्लियरेंस और पासपोर्ट की जांच चीनी अधिकारी करते हैं।
यह पुल नेपाल चीन की सीमा पर है। सभी कागजात की जांच होने के बाद यात्रा आगे बढ़ती है। यात्रा का पहला पड़ाव नायलम होता है। नायम तिब्बत में है और समुद्र तक से इसकी ऊंचाई 3700 मीटर है। नायलम पहुंचने के बाद अक्सर लोग एक दिन यहां अपने शरीर को वातावरण के अनुकूल करने के लिए रूकते हैं।
कहते हैं कि आस्था में इतनी ताकत होती है कि मुश्किल से मुश्किल रास्ता भी आसान हो जाता है। श्रद्धालुओं को इसका एहसास भी होने लगता है। गाड़ी से आपको कारवां प्रतिदिन 260-270 किलोमीटर की दूरी तय करने का लक्ष्य लेकर चलता है। दूर-दूर तक फैला सन्नाटा और वीरानी, खामोशी का ऐसा मंजर पैदा कर देती है। यहां हर यात्री खुद-ब-खुद खामोश भगवान शिव के एहसास को महसूस करने लगता है।