दिल्ली। सनातन धर्म के साथ कहीं कोई शाजिस तो नहीं रची जा रही। आदि गुरू शंकाराचार्य जी का इस तरह ब्यान आना शंका को जन्म दे रहा है। वो भी ऐसे वक्त पर जब इराक में मुसलमान आपस में एक दूसरे को मारने पर अमादा है। इस्लाम धर्म पर वहां प्रश्न चिन्ह खड़ा दिखाई देता नजर आ रहा है। सांई भगवान है या नहीं ये विषय अलग है। सांई के मंदिर बने ये भी अलग विषय है। उस पर सार्वजनिक बहस की जगह समझाईस से काम चल सकता था क्योंकि जगत गुरूओं का काम भी सनातन कि रक्षा करना है। पर इस दिशा में कोई ठोस प्रयास जगत गुरूओं द्वारा किये दिखाई नहीं देते हैं। पर आज सनातनियों के सामन ऐसा प्रश्नचिन्ह लाकार खड़ा कर दिया। यदि जगत गुरू का साथ दे तो दिक्कत नहीं दे तो दिक्कत। यदि हम सांई भक्तों द्वारा सांई को भगवान मानने की बात करें तो सांई मंदिर और सांई व्यवस्था भी वर्षोंं से चल रही है और इस बीच देश में कई बार सिंघहस्थ व कुंभ के आयोजन हो चुके और कई बार धर्म संसद भी लग चुकी पर इस विषय को अभी तक नहीं उठाया गया। इसके अलावा देश के मठाधीसों द्वारा भी कभी ऐसा प्रतीत नहीं हुआ कि वह सनातन धर्म से हटने या विमुख होने वाले लोगों को सनातन धर्म के प्रति जुड़ाव के लिए प्रेरित कर रहे हों या उनको कोई मार्गदर्शन दिया जा रहो।
आज जिस तरह से अन्य धर्मगुरू, जगतगुरू शंकराचार्य जी के इस मत से सहमत है कि सांई भक्त जिस तरह से हिंदू देवी देवताओं और सनातन व्यवस्था के अनुसार सांई की पूजन करने लगे उस पर आपत्ति दर्ज कि जा रही है। खैर अब ये पूरा मामला हिंदू धर्म को बांटता दिखाई देता नजर आ रहा है। क्योंकि जो इराक में घट रहा है वो भी तो धर्म को लेकर ही है जबकि दोनों एक ही धर्म के हैं। ऐसे में ऐसा लगता है कि इस तरह कि बात सामने आना और ऐसे समय पर तो निश्चित ही इसके पीछे कोई बड़ा कारण हो सकता है। हम यदि श्रीमत भागवत कि बात करें तो उसमें साफ-साफ लिखा है कि कलयुग कि जैसे-जैसे अभिवृद्धि होगी वैसे-वैसे अनेक धर्म बनेंगे लोग अपने हिसाब से वेदों कि व्यख्या करेंगे मन माने ढंग से धर्म का आचरण करेंगे। वेदों का उपहास करेंगे, स्वयं ही पण्डित बनने का ढोंग करेंगे, धर्म-जाति का भेद खत्म होगा।
आज जगत गुरू शंकराचार्य जी द्वारा भले ही सांई भक्तों की पूजन पद्धती को लेकर उठाए गए सवाल से देश में एक भूचाल सा आ गया है पर यदि जगत गुरू शंकराचार्य जी इसी तरह अन्य कथावाचकों और मनमाने ढंग से आचरण कर रहे साधू-संतों पर नकेल कसते तो आज आशाराम बापू जेल में नहीं होते। ऐसा लगता है कि देश में बदलती सरकार के साथ इस तरह की बात सामने लाकर देश की सरकार को एक मुशीबत खड़ी जा रही है।