नईदिल्ली। देश के एकमात्र मुस्लिम बहुल राज्य जम्मू-कश्मीर के लिए इस महीने की 23 तारीख बहुत अहम हो सकती है। इस दिन राज्य की राजनीति में ऐतिहासिक बदलाव की नींव पड़ सकती है। 23 जून को बीजेपी के विचाराधारा पुरूष श्यामा प्रसाद मुखर्जी की 61वीं पुण्यतिथि है। भारतीय जनसंघ के संस्थापक श्यामा प्रसाद मुखर्जी की 1953 में जम्मू-कश्मीर को विशेष राज्य का दर्जा दिए जाने का विरोध करते हुए मौत हो गई थी। बीजेपी की जम्मू-कश्मीर इकाई की कोशिश है कि इस साल मुखर्जी की पुण्यतिथि का इस्तेमाल प्रदेश में बीजेपी सराकर बनाने के अभियान की शुरूआत के तौर पर की जाए। पार्टी कोशिश कर रही है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को इस दिन राज्य में बुलाया जाए और पार्टी के मिशन 44 का आगाज किया जाए। देश के अन्य राज्यों के उलट जम्मू-कश्मीर में विधानसभा की मियाद 6 साल की होती है। यहां इस साल नवंबर-दिसंबर में चुनाव होने हैं।
भाजपा का मिशन 44
बीजेपी ने जम्मू-कश्मीर में इस साल होने वाले विधानसभा चुनाव को ध्यान में रखते हुए एक ऐसे राज्य में जीत का सपना बुनना शुरू कर दिया है, जहां कुछ महीने पहले तक उसने जीत की कल्पना तक नहीं की थी। लेकिन अब पार्टी ने जम्मू-कश्मीर राज्य विधानसभा की 87 सीटों में से बहुमत के लिए जरूरी कम से कम 44 सीटों को जीतने की योजना बनाई है। पार्टी ने इसे ही मिशन 44 का नाम दिया है।
राज्य में सबसे बड़ी पार्टी बनी बीजेपी
अगर लोकसभा चुनाव को पैमाना बनाया जाए तो जम्मू-कश्मीर में बीजेपी ने 6 में से 3 सीटें जीती हैं। 32.4 फीसदी वोट के साथ सबसे बड़ी पार्टी के तौर पर उभरी है। उसे कुल 10.15 लाख वोट मिले। बीजेपी की तुलना में कांग्रेस को 22.9 फीसदी यानी 8.15 लाख वोट, पीपल्स डेमोकै्रटिक पार्टी को 20.5 फीसदी यानी 7.3 लाख वोट, नेशनल कॉन्फ्रेंस को 11.1 फीसदी यानी 4 लाख वोट मिले। इन्हीं नतीजों ने बीजेपी की उम्मीदें बढ़ा दी हैं।
जीत का फॉर्मूला:- बीजेपी ने जम्मू-कश्मीर विधानसभा में परचम फहराने के लिए केंद्र की तर्ज पर मुख्यमंत्री के नाम का पहले से ही एलान करने की योजना बनाई है। इसके अलावा राज्य में पैंथर्स पार्टी जैसे राजनीतिक दलों को साथ लेकर एक अभेद्य सामाजिक और राजनैतिक समीकरण बनाने पर भी विचार किया जा रहा है। यह कुछ वैसा ही होगा जैसा लोकसभा चुनाव 2014 में उत्तर प्रदेश में बीजेपी और अपना दल के बीच गठबंधन को जबर्दस्त फायदा हुआ था। बीजेपी की रणनीति यह है कि अगर वह बहुमत के आंकड़े से पीछे रह भी जाए तो भी वह सूबे की सबसे बड़ी राजनीतिक पार्टी बनकर उभरे।